Friday, November 12, 2010

अस्थमा जानकारी एवं उपचार


अस्थमा एक ऐसी बीमारी है जहां पर स्वासनली या इससे संबंधित हिस्सों में सूजन के कारण फेफडे में हवा जाने के रास्ते में रूकावट आती है, जिससे सांस लेने में तकलीफ होती है| आपकी शरीर की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए हवा का आपके फ़ेफ़डों से अन्दर और बाहर आना-जाना जरुरी है। जब फ़ेफ़डों से बाहर हवा का प्रवाह रुकता है तो बासी हवा फ़ेफ़डों में बन्द हो जाती है। इससे फ़ेफ़डों के लिए शेस शरीर को प्रयाप्त आक्सिजन पहुंचाना कहीं मुश्किल हो जाता है। जब एलर्जन्स या इरिटेट्स स्वासनली में सूजे हुए हिस्से के संपर्क में आते है तो पहले से ही संवेदनशील स्वासनली सिकुडकर और भी संकरी हो जाती है जिससे व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी होने लगती है|

अस्थमा से जुडे लक्षण -
१ सांस का जल्दी-जल्दी लेना
२ सांस लेने में तकलीफ
३ खांसी के कारण नींद में रूकाबट
४ सीने में कसाव या दर्द

अस्थमा के कारण -
१. पुश्तैनी मर्ज - उन बच्चों में अस्थमा की शिकायत ज्यादा होती है जिनकी फैमिली हिस्ट्री अस्थमा की होती है।
२. एलर्जी - एलर्जी के कई कारण हो सकते हैं। मसलन, खाने-पीने की चीजों में रासायनिक खाद का ज्यादा इस्तेमाल, धूल, मिटटी, घास, कुत्ते-बिल्ली जैसे बालों वाले जानवर, कुछ दवाएं और घर के अंदर सीलन आदि।
३. इन्फेक्शन- सांस की नली में कुछ बैक्टीरिया या वायरस के जाने से अंदर सूजन हो जाती है और सांस की नलियां सिकुड जाती हैं। इससे सांस लेने और छोड़ने में काफी परेशानी होती है।
४. वातावरण - सड़को पर अंधाधुंध बढ़ रही गाड़ियों की संख्या के अलावा विलायती बबूल जैसे पेड़ भी एलर्जी की समस्या बढ़ाने का काम कर रहे हैं। इसके अलावा मौसमी बदलाव भी इसमें अहम भूमिका निभाता है। खासतौर से अक्टूबर-नवंबर और फरवरी-मार्च के महीने में समस्या काफी बढ़ जाती है।
५. मनोवैज्ञानिक - अस्थमा के कुछ मनौवैज्ञानिक कारण भी देखे गए हैं, जिनका प्रभाव बच्चों पर सबसे ज्यादा होता है। मसलन, अगर मां या पिता किसी बात को लेकर बच्चे को बहुत ज्यादा डांटते है तो डर से बच्चे के अंदर घबराहट की एक टेंडेंसी डेवेलप हो जाती है, जो कई बार आगे चलकर सांस की दिक्कत में बदल जाती है।

अस्थमा - क्या करें और क्या न करें
ऐसा करें
१ धूल से बचें और धूल -कण अस्थमा से प्रभावित लोगों के लिए एक आम ट्रिगर है|
२ एयरटाइट गद्दे .बॉक्स स्प्रिंग और तकिए के कवर का इस्तेमाल करें ये वे चीजें है जहां पर अक्सर धूल-कण होते है जो अस्थमा को ट्रिगर करते है।
३ पालतू जानवरों को हर हफ्ते नहलाएं.इससे आपके घर में गंदगी पर कंट्रोल रहेगा|
४ अस्थमा से प्रभावित बच्चों को उनकी उम्र वाले बच्चों के साथ सामान्य गतिविधियों में भाग लेने दें|
५ अस्थमा के बारे में अपनी और या अपने बच्चे की जानकारी बढाएं इससे इस बीमारी पर अच्छी तरह से कंट्रोल करने की समझ बढेगी|
६ बेड सीट और मनपसंद स्टफड खिलोंनों को हर हफ्ते धोंए वह भी अच्छी क्वालिटीवाल एलर्जक को घटाने वाले डिटर्जेंट के साथ|
७ सख्त सतह वाले कारपेंट अपनाए|
८ एलर्जी की जांच कराएं इसकी मदद से आप अपने अस्थमा ट्रिगर्स मूल कारण की पहचान कर सकते है|
९ किसी तरह की तकलीफ होने पर या आपकी दवाइयों के आप पर बेअसर होने पर अपने डॉक्टर से संर्पक करें|

ऐसा न करें
१ यदि आपके घर में पालतू जानवर है तो उसे अपने विस्तर पर या बेडरूम में न आने दें|
२ पंखोंवाले तकिए का इस्तेमाल न करें|
३ घर में या अस्थमा से प्रभावित लोगों के आस -पास धूम्रपान न करें संभव हो तो धूम्रपान ही करना बंद कर दें क्योंकि अस्थमा से प्रभावित कुछ लोगों को कपडों पर धुएं की महक से ही अटैक आ सकता है|
४ मोल्ड की संभावना वाली जगहों जैसे गार्डन या पत्तियों के ढेरों में काम न करें और न ही खेलें|
५ दोपहर के वक्त जब परागकणों की संख्या बढ जाती है बाहर न ही काम करें और न ही खेलें|
६ अस्थमा से प्रभावित व्यक्ति से किसी तरह का अलग व्यवहार न करें|
७ अस्थमा का अटैक आने पर न घबराएं.इससे प्रॉब्लम और भी बढ जाएगी. ये बात उन माता-पिता को ध्यान देने वाली है जिनके बच्चों को अस्थमा है अस्थमा अटैक के दौरान बच्चों को आपकी प्रतिक्रिया का असर पडता है यदि आप ही घबरा जाएंगे तो आपको देख उनकी भी घबराहट और भी बढ सकती है|

अस्थमा का इलाज

होमियोपैथी में अस्थमा का कारगर इलाज है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अस्थमा के अलग-अलग लक्षणों के आधार पर मरीज का इलाज किया जाए तो बीमारी पर बहुत हद तक काबू पाया जा सकता है। आमतौर पर माना जाता है कि होमियोपैथी से इलाज में वक्त ज्यादा लगता है, लेकिन इस पैथी में भी अस्थमा की कुछ ऐसी दवाएं उपलब्ध है जो तुरंत राहत देती हैं। इससे सांस की नली और फेफड़ों की जकड़न खुल जाती है और मरीज आराम से सांस ले सकता है। उचित उपचार के साथ अस्थमा के लक्षणों और उसके दौरों में सुधार आता है बीमारी की गंभीरता पर उपचार की अवधि निर्भर करती है, उस उपचार के साथ कोई भी व्यक्ति एक सामान्य जीवन जी सकता है पर एक बात का हमेशा ध्यान रहे कि उपचार न कराने पर ये बीमारी गंभीर रूप ले सकती है|

होम्योपैथिक औषधियां: आर्सेनिक-एलब्म, बलाट्टा-ओरिएनटेलिस, नेट्रम सल्फ़, ग्राइन्डेलिया, लोबिलिया, सपोन्जिया, सटिक्टा, रसटाक्स, हिपर सल्फर, केसिया-सोफ़ेरा, आदि लक्षणानुसार लाभप्रद है। यह दवायें केवल उदहारण के तौर पर दी गयी है। कृपया किसी भी दवा का सेवन बिना परामर्श के ना करे, क्योकि होम्योपैथी में सभी व्यक्तियों की शारीरिक और मानसिक लक्षण के आधार पर अलग -अलग दवा होती है !

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