Monday, December 21, 2009

टॉन्सिलाइटिस और होम्योपैथीक उपचार...


अक्सर लोगों की शिकायत होती है कि कुछ भी ठंडा पीते ही उनके गले में दर्द शुरू हो जाता है। उसके बाद खाना-पीना मुश्किल हो जाता है। ऐसा टॉन्सिलाइटिस की वजह से होता है। आधुनिक जीवन में टॉन्सिलाइटिस यानी गले की बीमारी प्राय: हर घर के कम से कम एक सदस्य खासकर बच्चों को जरूर परेशान करती है। लिहाजा घर के प्रत्येक सदस्य उसके इस रोग से उद्विग्न दिखाई पड़ते हैं। टॉन्सिलाइटिस होने पर टॉन्सिल्स (गलतुण्डिका) में यानी गले के दोनों ओर सूजन आ जाती है। शुरूआत में मुंह के अंदर गले के दोनों ओर दर्द महसूस होता है, बार-बार बुखार भी होता है। टॉन्सिल्स सामान्य से ज्यादा लाल हो जाते हैं। इसलिए जरूरी है कि सर्दियों में बच्चों का खास ख्याल रखा जाए।
किस जगह होता है टॉन्सिलाइटिस:
मुँह खोलने पर जीभ की जड़ के पास देखने पर उपजिह्वा दिखाई देती है। यदि यह देखने में आए कि उपजिह्वा ठीक दोनों ओर फूली हुई है और लाल है, वहाँ लसदार सर्दी लगी है, तो समझ लें कि टॉन्सिलाइटिस हुआ है।इसे हिन्दी में तालुमूल-प्रदाह (तालुमूल-टॉन्सिल) और उस टॉन्सिल के प्रवाह को ही अँग्रेजी में टॉन्सिलाइटिस कहते हैं।
कैसे होता है टॉन्सिलाइटिस:
टॉन्सिलाइटिस दो तरह के इन्फेक्शन के कारण होता है। वायरल इंफेक्शन के कारण हुए टॉन्सिलाइटिस में खास इलाज की जरूरत नहीं होती। बैक्टीरियल इन्फेक्शन से हुए टॉन्सिलाइटिस को दवाई के सेवन से ठीक किया जा सकता है। आमतौर पर यह एक हफ्ते में ठीक हो जाता है। लेकिन इंफेक्शन ज्यादा हो तो इसे ठीक होने में अधिक समय लगता है।
प्रकार: - टॉन्सिलाइटिस दो प्रकार का होता है।
1. नया (acute)
2. पुराना (Chronic)
नए प्रकार के लक्षण - पहले दोनों ओर की तालुमूल ग्रंथि (टॉन्सिल) या एक तरफ की एक टॉन्सिल, पीछे दूसरी तरफ की टॉन्सिल फूलती है। इसका आकार सुपारी के आकार का हो सकता है। उपजिह्वा भी फूलकर लाल रंग की हो जाती है। खाने-पीने की नली भी सूजन से अवरुद्ध हो जाती है‍ जिससे खाने-पीने के समय दर्द होता है। टॉन्सिल का दर्द कान तक फैल सकता है एवं 103-104 डिग्री सेल्सियस तक बुखार चढ़ सकता है।जबड़े में दर्द होता है। गले की गाँठ फूलती है, मुँह फाड़ नहीं सकता है। पहली अवस्था में अगर इलाज से रोग न घटे तो धीरे-धीरे टॉन्सिल पक जाता है और फट भी सकता है।
पुरानी बीमारी के लक्षण - जिन व्यक्तियों को बार-बार टॉन्सिल की बीमारी हुआ करती है तो वह क्रोनिक हो जाती है। इस अवस्था में श्वास लेने और छोड़ने में भी कठिनाई होती है तथा टॉन्सिल का आकार सदा के लिए सामान्य से बड़ा दिखता है।
टॉन्सिल्स के प्रकार :
1. कैटेरल
2. फॉलिक्यूलर
3. सपयुरेटीव
कैसे बच सकते हैं गले के संक्रमण से:
- हमेशा साबुन से हाथ धोकर ही खाना खाएं।
- ठंडे पेय पदार्थों से परहेज करें।
- गर्म वस्तु खाने के बाद ठंडे खाद्य पदार्थ का सेवन न करें।
- बासी भोजन का सेवन न करें। अगर खाद्य पदार्थ ठंडा हो गया है तो उसे गर्म कर लें।
- ब्रश करने के बाद नियमित रूप से गुनगुने पानी से गरारा करें।
- तले खाने से परहेज करें।
- धूल व मिट्टी से बचें।
- गाजर के रस का छोटा गिलास दो तीन महीने तक पीएं।
- टॉन्सिल्स की सूजन में गरम पानी में नमक डालकर गरारे करने से आराम आ जाता है।
होम्योपैथिक चिकित्सा:
फॉलिक्यूलर टॉन्सिलाइटिस - एपिस मेल, बेलाडोना, कैलीम्यूर, मरक्यूरियसबिन आयोड, फाईटोलैक्का को नीचे की पोटेंसी फायदेमंद है।
हाइपरट्रो‍फाइड टॉन्सिलाइटिस - बेराइटाकार्ब, बेराईटा आयोड, बेराईटा क्यूर, आयोडिन, फैटॅलैक्का, कैल्केरिया कार्ब इत्यादि कारगर है।
साधारण औषधियाँ - बेराईटा, बेलाडोना, कैप्सिकम, सिस्टस, फेरमफॉस, हिपर सल्फर, हाईड्रैस्टीस, इग्नेसिया, कैलीबाईक्रोम, लैकेसिस, मरक्युरियस, लाईकोपोडियम, मर्क प्रोटो ऑयोड, मर्क बिन आमोड, नेट्रम सल्फ, एसिड नाइट्रीकम, फाईटोलैक्का, सालिसिया, सल्फर एवं एसिड सल्फर कारगर दवाएँ हैं।
क्रोनिक की अवस्था में 200 पोटेन्सी की उपरोक्त लक्षणानुसार दवा बारंबारता से दोहराव करने पर रोग का कुछ महीनों में शमन होता है एवं आरोग्यता आती है।

कई बार टॉन्सिलाइटिस के रोगी दवाइयां लेना शुरू तो करते हैं पर थोड़ा आराम मिलते ही बंद कर देते हैं। इससे फिर से तकलीफ बढ़ने का खतरा बना रहता है। टॉन्सिलाइटिस के रोगियों को तब तक दवाइयां लेनी चाहिए जब तक पूरा कोर्स न ख़त्म हो जाए। कई लोगों के साथ ऐसा होता है कि दवा लेने पर टॉन्सिलाइटिस कुछ दिनों के लिए दब तो जाता है पर वह दोबारा उभर जाता है। उनके साथ ऐसा बार-बार होता है।
हालांकि टॉन्सिलाइटिस लाइलाज बीमारी नहीं है, लेकिन अगर यह बढ़ जाए तो काफी परेशान कर सकती है। इसलिए जरूरी है कि कुछ बातों का ध्यान रखकर इस बीमारी से छुटकारा पाया जाए।
होम्योपैथिक दवाओं के टॉन्सिलाइटिस में प्रयोग से सर्जरी की आवश्यकता नहीं पड़ती है। कभी-कभी सर्जरी के बाद भी गले में खिंचाव का दर्द लिए रोगी मिलते हैं । अत: वैसे रोगी जो सर्जरी से बचना चाहते हैं या कम उम्र के बच्चे , डायबिटीज अथवा हृदय रोग से पी‍ड़ित रोगी जिन्हें टॉन्सिल्स हैं, एक बार होम्योपैथिक दवाओं का चमत्कार आजमा कर स्वस्थ हो सकते हैं।
डा. नवनीत बिदानी

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