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Saturday, September 4, 2010

बचिए आई-फ़्लु के प्रकोप से


आँख भगवान की दी गई आवश्यक अवयवों में से एक है और इसकी प्रमुखता का अंदाज तो इसी बात से लगाया जा सकता है कि बिना आँख सब बेकार। तभी तो इस अवयव को सुरक्षित एवं रोगों से बचाने की जिम्मेदारी इतनी जरूरी है। आजकल आई-फ़्लु का कहर जोरों से है, रोजाना करीब दस-पन्द्र्ह मरीज इसी बिमारी से पीडित आ रहें हैं। सभी जानते हैं गर्मी-सर्दी के संधिकाल में आई-फ़्लु की शुरुआत होती है। जिसे 'पिंक आई' या 'कंजंक्टिवाइटिस' भी कहा जाता है; आंख की बाहरी पर्त कंजंक्टिवा और पलक के अंदरूनी सतह के संक्रमण को कहते हैं। साधारण भाषा में इसे "आँख आना" भी कहते हैं। यह प्रायः एलर्जी या संक्रमण (सामान्यतया विषाणु किंतु यदा-कदा जीवाणु से) द्वारा होता है। यह संक्रमण अधिकांशतः मानवों में ही होता है, किंतु कहीं कहीं कुत्तों में भी पाया गया है। इसकी वजह से आंखें लाल, सूजन युक्त, चिपचिपी [कीचड़युक्त] होने के साथ-साथ उसमें बाल जैसी चुभने की समस्याएं हो सकती हैं।

इस बीमारी की कुछ श्रेणियाँ हैं -

1. कैटरल (सर्दी या ठंड लगने के कारण)
2. पुरुलेन्ट (पीव स्त्रावी)
3. ग्रैन्यूलर (दानामय)
4. डिफ्‍टोरिक
5. फ्लिकट्यिलर (छोटी-छोटी दानों के साथ)

कैटरल कंजंक्टिवाइटस इतनी खतरनाक नहीं है इसलिए सावधानी ही उपाय है। आँखों में कुछ गिर जाने से रोग होने पर उस वस्तु को निकाल देने से रोग दूर हो जाता है। कभी आँख में उत्तेजक तरल पदार्थ या क्षारीय पदार्थ गिर जाने पर शहद डालने से या उस आँख को साफ पानी से धोने पर रोग दूर हो जाता है।
होम्योपैथिक औषधि : एकोनाईट, यूफ्रेसिया, मर्क सौल, मर्क कॉर, एपिस (इन्फ्‍लामेशन होने को) रसटक्स आर्सेनिक इत्यादि की 30 पावर दिन में 3 बार या 4 बार आयोग्यकारक होती है पर इसे लक्षणानुसार लेना चाहिए।

2. दानामय कंजंक्टिवाइटस : इसमें पलकों के भीतर दानामय छोटी-छोटी फुंसियाँ या दाने हो जाते हैं। पहले आँखें फूल जाती हैं। जलन, चुभन होती है। रोशनी सहन नहीं हो पाती। आँखों से पानी जैसा पस निकलता है। बहुत बार पलकें भीतर की ओर सिकुड़ जाती हैं। इस अवस्था को एंट्रोपियन कहते हैं। इसका कारण विशुद्ध वायु के सेवन का अभाव, अखाद्य आहार करना, धूप और धूल में अधिक देर घूमना। यह एक बार अच्छा हो जाने के बाद पुन: उभर सकता है। लक्षणानुसार यूफ्रेशिया का लोशन एवं यूफ्रेशिया 30 दिन में तीन बार आँख में डालने एवं लगाने से अत्यधिक लाभ मिलता है। अन्य औषधियाँ जैसे पल्सेटिला, हियर सल्फर, बेलाडॅना, केल्केरिया कार्ब की कम पावर की गोलियाँ आरोग्यकारी होती हैं। अरजेन्ट्‍स नाईट्रिकम की 2 बूँद आधे आउंस डिस्टील्ड वाटर में देकर बाहरी प्रयोग करने से फायदा होता है।

3. पुरुलेन्ट कंजंक्टिवाइटस (सड़नशील कंजंक्टिवाइटस) : इसे इजिप्सयन अप्थैल्मिया के नाम से भी जाना जाता है।
कारण : किसी विषाक्त वस्तु के शरीर के अंदर प्रवेश करने अथवा आँखों में लगकर यह रोग उत्पन्न होता है। साथ ही यह संक्रामक रोग भी है। रोगग्रस्त व्यक्ति के संसर्ग से स्वस्थ व्यक्ति भी चपेट में आ जाता है। प्रमेह या उपदंश विष से भी यह रोग हो सकता है। गनोरियल या प्रमेहजनित आँख के प्रदाह एक से ही मालूम पड़ते हैं परंतु शीघ्र ही इसका रूप बदल जाता है।

उद्‍भव के स्थान : हॉस्पिटल, सेना-निवास, स्कूल, कॉलेज, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड एवं जहाँ लोगों का जमाव होता है, वहीं पर इसका संक्रमण शीघ्र होता है।
लक्षण - पहले आँख से श्लेष्मा निकलता है वह क्रमश: पस में परिणत होता है एवं इसका स्त्राव बढ़ता जाता है।

होम्योपैथिक चिकित्सा : मर्कुरियस वाईवस, मर्कुरियस रूब्रम या मर्क कौर के 30 पावर 3 बार लेने पर एवं उपरोक्त मर्क कौर की 2 या 3 पावर की 10 बूँद या 10 ग्रेन 1 आउंस डिस्टील्ड वाटर में देकर आँख धोने से विशेष लाभ मिलता है। अन्य दवाएँ - हिपर सल्क एवं कैल्केरिया सल्फ भी उत्तम औषधि है।

4. फिलिक्ट न्यूलर आप्थैलमिया -
लक्षण : आँखों के ऊपर दाने हो जाते हैं। यह एक प्रकार का ट्‍यूबर्कूलर रोग है। इसमें रोगी के लिम्फैटिक गलेण्ड्‍स कीटाणुओं से संक्रमित हो जाते है।
होम्योपैथिक औषधियां : बेलाडोना, मर्क कॉर, रसटाक्स, ग्रेफाइट्‍स, हिपर सल्फर, एसिड नाईट्रिकम, कैल्केरिया, आर्सेनिक लक्षणानुसार लाभप्रद है।

सावधानी : बैक्टीरियल और वायरल कंजंक्टिवाइटिस बहुत तेजी से फैलने वाला रोग है। यह परिवार और डॉक्टर की क्लिनिक में आए लोगों में बहुत तेजी से फैल सकता है। यदि आप या आपका बच्चा "आई इंफेक्शन" का शिकार हो गया है, तो परिवार के सभी सदस्य साफ सफाई पर खास तवज्जों दें। अच्छी तरह हाथ धोएं, रोगी के टॉवेल, रूमाल का इस्तेमाल न करें और तकिए का कवर रोजाना बदलें। यूफ्रेशिया या ममिरा आई- ड्राप्स दिन में दो-तीन बार डालते रहें। स्विमिंग पुल में जाने से बचें। धैर्य रखें, डॉक्टर के बताएं निर्देशों का पालन करें, कुछ दिनों में कंजंक्टिवाइटिस ठीक हो जाती है।