सफेद दाग जिसे की आयुर्वेद मै श्वेत कुष्ठ के नाम से जानते है एक ऐसी बीमारी है जिससे कोई भी व्यक्ति बचना चाहेगा..इस बीमारी मैं व्यक्ति की त्वचा पर सफेद चकते बनने प्रारंभ हो जाते है ..और कई वार यह पूरे पूरे शरीर पर फैल जाती है। सफेद दाग विचलित कर देने वाला विकार है, पर हरेक सफेद दाग एक सा नहीं होता। कुछ त्वचा पर पड़े दबाव, किसी कपड़े से हुई एलर्जी, संक्रमण या अन्य कारणों से होते हैं, तो कुछ शरीर की इम्यून प्रणाली के बागी होने से उपजते हैं। यह स्थिति विटिलिगो या ल्यूकोडर्मा कहलाती है, जिसे लोग फुलवैरी या गलती से कच्चा कोढ़ भी कह देते हैं। ‘ल्यको का मतलब है ‘सफेद’ और डर्मा का मतलब है ‘खाल’। ल्यूकोडर्मा में असामान्य रूप से खाल का रंग सफेद होने लगता है। शरीर के जिस हिस्से पर इसका प्रभाव पड़ता है वहाँ से मेलेनोसाइटिस पूरी तरह से खत्म हो जाते हैं। सफेद दाग सामाजिक अभिशाप नहीं, एक शारीरिक रोग व विकार है। यह रोग छूने से नहीं फैलता, इसमें सिर्फ चमड़ी का रंग ही सफेद हो जाता है।
कारण:ल्यूकोडर्मा किस वजह से होता है, इसका कारण अभी स्पष्ट नहीं है। लेकिन शरीर पर इन सफेद धब्बों के कुछ संभव कारण हैं
1. खून में मेलेनिन नामक तत्व का कम हो जाना।
2. अत्यधिक कब्ज।
3. लीवर का ठीक से कार्य ना कर पाना या पीलिया।
4. पेट से संबंधित बीमारी या पेट में कीड़ों का होना।
5. टाइफाइड जैसी बीमारियाँ जिन से पेट या आंतों में संक्रमण होने का खतरा हो।
6. अत्याधिक तनाव
7. यह आनुवंशिक भी हो सकता है।
निवारण:
1.खट्टे खाद्य पदार्थों का सेवन करने से बचना चाहिए। इस तरह के पदार्थ शरीर में मेलेनिन की मात्रा को कम करते हैं।
2. माँसाहारी भोजन भी हमारे शरीर में मौजूद सेल्स के लिए बाहरी तत्व की तरह होता है।
3. खाद्य पदार्थों में उपयोग किए जाने वाले रंग भी हानिकारक साबित हो सकते हैं।
4. पोषक तत्व जैसे बीटा कैरोटिन (गाजर में), लाइकोपिन (टमाटर में), विटामिन ई एवं सी (ग्रेप सीड एक्स्ट्रेक्ट में उच्च मात्रा में उपलब्ध) और अन्य खनिज तत्वों को आहार में शामिल करना चाहिये।
5. कई बार ल्यूकोडर्मा के रोगी दवाइयां लेना शुरू तो करते हैं पर थोड़ा आराम मिलते ही बंद कर देते हैं। इससे फिर से तकलीफ बढ़ने का खतरा बना रहता है। ल्यूकोडर्मा के रोगियों को तब तक दवाइयां लेनी चाहिए जब तक पूरा कोर्स न ख़त्म हो जाए।
होम्योपैथिक चिकित्सा
उपचार के लिए होम्योपैथी में बहुत सी दवाएं हैं। कुछ खाने की, तो कुछ लगाने की। उपचार करने में दो तरह की औषधिया काम में लाई जाती है…एक वे जो रोग प्रति रोधक तंत्र में फेरबदल कर के व्याधी के बढने को रोकती है….और दूसरी वे जो गये हुए रंग को वापिस बनाती है। किसी विशेषज्ञ से उपचार कराया जाए तो लगभग 50 प्रतिशत मामलों में दाग मिट जाते हैं, लेकिन यह सुधार धीरे-धीरे होता है। कुल मिलाकर यह एक ठीक होने लायक बीमारी है…लाईलाज नहीं है…और यदि सही समय पर उपचार प्रारंभ किया जाये तो इसमें अच्छे परिणाम मिलते हैं। होम्योपैथीक दवाएँ जो लक्षणागत ल्यूकोडर्मा में काम करती हैं वे इस प्रकार हैं: - आर्सेनिक एल्बम, नेट्रम म्यूर, इचिनेसिया, लाईकोपोडियम, आर्सेनिक-सल्फ़-फ़्लेवम, सोरिलिया, नेट्रम सल्फ, सिलिसिया, सल्फर आदि।
उपरोक्त दवाये केवल उदहारण के तौर पर दी गयी है।कृपया किसी भी दवा का सेवन बिना परामर्श के ना करे, क्योकि होम्योपैथी में सभी व्यक्तियों की शारीरिक और मानसिक लक्षण के आधार पर अलग -अलग दवा होती है !
डा. नवनीत बिदानी
मोबाईल: 9416336371
Wednesday, July 28, 2010
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