Wednesday, November 17, 2010

शीघ्रपतन एवं होम्योपैथीक उपचार

शीघ्रपतन एक ऐसा रोग है जो आज के नवयुवकों में महामारी की तरह फैल रहा है। एक अमेरिकी सर्वे के अनुसार दुनिया की 4० प्रतिशत पुरूष शीघ्रपतन की समस्या के शिकार हैं। हालांकि यह समस्या गर्भधारण या जनन के लिए बाधा उत्‍पन्न नहीं करती है, फिर भी यह आपके स्वस्थ शरीर और अच्छे व्यक्‍ितत्व के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है। यह रोग युवकों को शारीरिक रूप से ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी नुकसान पहुंचा रहा है। असल में शीघ्रपतन है क्या यह बात जानना जरूरी है क्योंकि बहुत से युवक तो सिर्फ इसके नाम से ही बुरी तरह भयभीत हो जाते हैं। पुरुष की इच्छा के विरुद्ध उसका वीर्य अचानक स्खलित हो जाए, स्त्री सहवास करते हुए संभोग शुरू करते ही वीर्यपात हो जाए और पुरुष रोकना चाहकर भी वीर्यपात होना रोक न सके, अधबीच में अचानक ही स्त्री को संतुष्टि व तृप्ति प्राप्त होने से पहले ही पुरुष का वीर्य स्खलित हो जाना या निकल जाना, इसे शीघ्रपतन होना कहते हैं। शीघ्र पतन की सबसे खराब स्थिति यह होती है कि सम्भोग क्रिया शुरू होते ही या होने से पहले ही वीर्यपात हो जाता है। सम्भोग की समयावधि कितनी होनी चाहिए यानी कितनी देर तक वीर्यपात नहीं होना चाहिए, इसका कोई निश्चित मापदण्ड नहीं है। यह प्रत्येक व्यक्ति की मानसिक एवं शारीरिक स्थिति पर निर्भर होता है। शीघ्रपतन की बीमारी को नपुंसकता श्रेणी में नहीं रखा जा सकता, क्योंकि यह बीमारी पुरुषों की मानसिक हालत पर भी निर्भर रहती है। मूलरूप से देखा जाय तो 95 फीसदी शीघ्रपतन के मामले मानसिक हालत की वजह से होते हैं और इसके पीछे उनमें पाई जाने वाली सेक्स अज्ञानता व शीघ्रपतन को बीमारी व शीघ्रपतन से संबंधी बिज्ञापन होते हैं। इस समस्‍या से ग्रसित व्‍यक्‍ित के स्वभाव में सबसे पहले परिवर्तन आता है। आमतौर पर यह देखा जाता है कि इस परेशानी की वजह से पीडि़त व्‍यक्‍ित का स्‍वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। वह अक्‍सर सिरदर्द जैसे शा‍रीरिक समस्‍याओं से भी ग्रसित हो सकता है या कुछ समय के बाद सेक्स में अरूचि भी आ जाने की संभावना रहती है। इसके अलावा शारीरिक दुर्बलता भी हो सकती है। आज भी बहुत से लोग इस समस्या को गंभीरता से नहीं लेते हैं। जो लेते भी हैं वह इस समस्‍या को किसी के सामने रखने से डरते हैं। यह समस्‍या असाध्‍य नहीं है। लेकिन दुर्भाग्‍य से इसके उपचार को लेकर लोगों में अनेक तरह की भ्रांतियां फैली हुई हैं। जबकि कुछ उपयोगी दवाएं एवं सेक्‍स के कुछ तरीकों में परिवर्तन करके इस समस्‍या से निजात पाया जा सकता है।

शीघ्रपतन के स्तर:
मशहूर ब्रिटिश यौन विशेषज्ञ सी. डब्ल्यू. हेस्टिंग्स के अनुसंधानों के परिणामों के अनुसार शीघ्रपतन के चार स्तर होते हैं जो अनेक कारकों के आधार पर निर्धारित किया जाता है, जैसे वह किस कारण से हो रहा है, कितना गंभीर है और रोगी कितने समय से उससे पीड़ित रहा है। इनमें से प्रत्येक स्तर उसके कारणों से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है।

स्तर १: यह किशोरों में बहुत सामान्य होता है और इस स्तर की विशेषताओं में शामिल हैं किशोरावस्था और पूर्वकिशोरावस्था में खराब हस्तमैथुन आदतें। बहुत तेजी से हस्तमैथुन करने से, क्योंकि यह डर बना रहता है कि कोई पकड़ न ले, स्खलनीय प्रतिवर्ती क्रिया का असली मकसद ही खारिज हो जाता है, और उसके स्थान पर बहुत जल्द चरम स्थिति (ओर्गैसम) तक पहुंचने की आवश्यकता सर्वोपरि महत्व धारण कर लेती है। उचित उपचार विधि अपनाकर रोगी कुछी ही दिनों में पूरी तरह ठीक हो जाता है।
स्तर २: आमतौर पर यह युवा वयस्कों और कभी-कभी किशोरों को पीड़ित करता है। कार्य से संबधित अथवा निजी समस्याएं, जिनमें तनावपूर्ण और कठिन स्कूल दिनचर्या भी शामिल है, बिना किसी चेतावनी के शीघ्रपतन स्तर 2 शुरू करा सकती हैं। शीघ्रपतन के स्तर 1 के ही समान निदान होने पर इसका भी आसानी से इलाज हो सकता है।
स्तर ३: इस स्तर का शीघ्रपतन स्तर 2 के शीघ्रपतन के ठीक से इलाज न होने के फलस्वरूप होता है। बहुत विरल मामलों में अत्यंत मानसिक या दिनचर्या संबंधी दबाव महसूस कर रहे युवा पुरुषों में भी यह स्वतः प्रकट हो सकता है। इस समस्या का कारण मस्तिष्क में सेरोटोनिन और डोपामाइन के स्तरों में स्थायी असंतुलन हो जाना है, जो यौन आवेश को बहुत बढ़ा देता है जिसके कारण वीर्य स्खलनीय प्रतिवर्ती क्रिया चालू हो जाती है। इस स्तर के शीघ्रपतन का तुरंत इलाज होना चाहिए अन्यथा यह यौन अक्षमता* में बदल सकता है, जो कहीं अधिक जटिल रोग-स्थिति होती है।
स्तर ४: यह शीघ्रपतन का सबसे गंभीर स्थिति है क्योंकि यह अक्षमता का रूप ले चुकी होती है, इसी कारण इस स्थिति का ईलाज मुश्किल होता है।

शीघ्रपतन का उपचार
जब आप शीघ्रपतन से पीड़ित हों, तो यह ध्यान में रखना बहुत जरूरी है कि वह हर स्थिति में इलाज से ठीक हो जाता है और इसके सबसे गंभीर मामले भी लाइलाज नहीं हैं। इस समस्‍या को भी एक आम शारीरिक परेशानी की तरह लें। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आप शांत रहते हुए समस्या का तुरंत इलाज कराएं। आम तौर पर बिना इलाज कराए आप जितना अधिक समय बिताएंगे, समस्या उतनी ही उलझती जाएगी और उसका इलाज उतना ही कठिन होता जाएगा। शीघ्रपतन सभी पुरुषों को एक ही जैसे पीड़ित नहीं करता है। जो व्यक्ति स्त्री योनी में प्रवेश करने के पूर्व वीर्य स्खलन करता हो, और जो व्यक्ति संभोग क्रिया के पूरा हो जाने बाद वीर्य स्खलन करता हो, दोनों में एक ही प्रकार की समस्या नहीं है। इसलिए शीघ्रपतन का इलाज भी अलग-अलग होता है और वह शीघ्रपतन के प्रकार के अनुरूप होता है। होमियोपैथी में शीघ्रपतन का कारगर इलाज है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर शीघ्रपतन के अलग-अलग लक्षणों के आधार पर मरीज का इलाज किया जाए तो बीमारी पर बहुत हद तक काबू पाया जा सकता है।

होम्योपैथिक औषधियां: टेर्नेरा(डेमियाना), कोनियम, एसिड फॉस, सेलिक्स नाईग्रा, केलेडियम, सेलिनियम, विथानिया सोम्निफ़ेरा, य्होमबिनम, लाईकोपोडियम, बुफ़ो-राना आदि लक्षणानुसार लाभप्रद है। यह दवायें केवल उदहारण के तौर पर दी गयी है। कृपया किसी भी दवा का सेवन बिना परामर्श के ना करे, क्योकि होम्योपैथी में सभी व्यक्तियों की शारीरिक और मानसिक लक्षण के आधार पर अलग -अलग दवा होती है।

Friday, November 12, 2010

अस्थमा जानकारी एवं उपचार


अस्थमा एक ऐसी बीमारी है जहां पर स्वासनली या इससे संबंधित हिस्सों में सूजन के कारण फेफडे में हवा जाने के रास्ते में रूकावट आती है, जिससे सांस लेने में तकलीफ होती है| आपकी शरीर की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए हवा का आपके फ़ेफ़डों से अन्दर और बाहर आना-जाना जरुरी है। जब फ़ेफ़डों से बाहर हवा का प्रवाह रुकता है तो बासी हवा फ़ेफ़डों में बन्द हो जाती है। इससे फ़ेफ़डों के लिए शेस शरीर को प्रयाप्त आक्सिजन पहुंचाना कहीं मुश्किल हो जाता है। जब एलर्जन्स या इरिटेट्स स्वासनली में सूजे हुए हिस्से के संपर्क में आते है तो पहले से ही संवेदनशील स्वासनली सिकुडकर और भी संकरी हो जाती है जिससे व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी होने लगती है|

अस्थमा से जुडे लक्षण -
१ सांस का जल्दी-जल्दी लेना
२ सांस लेने में तकलीफ
३ खांसी के कारण नींद में रूकाबट
४ सीने में कसाव या दर्द

अस्थमा के कारण -
१. पुश्तैनी मर्ज - उन बच्चों में अस्थमा की शिकायत ज्यादा होती है जिनकी फैमिली हिस्ट्री अस्थमा की होती है।
२. एलर्जी - एलर्जी के कई कारण हो सकते हैं। मसलन, खाने-पीने की चीजों में रासायनिक खाद का ज्यादा इस्तेमाल, धूल, मिटटी, घास, कुत्ते-बिल्ली जैसे बालों वाले जानवर, कुछ दवाएं और घर के अंदर सीलन आदि।
३. इन्फेक्शन- सांस की नली में कुछ बैक्टीरिया या वायरस के जाने से अंदर सूजन हो जाती है और सांस की नलियां सिकुड जाती हैं। इससे सांस लेने और छोड़ने में काफी परेशानी होती है।
४. वातावरण - सड़को पर अंधाधुंध बढ़ रही गाड़ियों की संख्या के अलावा विलायती बबूल जैसे पेड़ भी एलर्जी की समस्या बढ़ाने का काम कर रहे हैं। इसके अलावा मौसमी बदलाव भी इसमें अहम भूमिका निभाता है। खासतौर से अक्टूबर-नवंबर और फरवरी-मार्च के महीने में समस्या काफी बढ़ जाती है।
५. मनोवैज्ञानिक - अस्थमा के कुछ मनौवैज्ञानिक कारण भी देखे गए हैं, जिनका प्रभाव बच्चों पर सबसे ज्यादा होता है। मसलन, अगर मां या पिता किसी बात को लेकर बच्चे को बहुत ज्यादा डांटते है तो डर से बच्चे के अंदर घबराहट की एक टेंडेंसी डेवेलप हो जाती है, जो कई बार आगे चलकर सांस की दिक्कत में बदल जाती है।

अस्थमा - क्या करें और क्या न करें
ऐसा करें
१ धूल से बचें और धूल -कण अस्थमा से प्रभावित लोगों के लिए एक आम ट्रिगर है|
२ एयरटाइट गद्दे .बॉक्स स्प्रिंग और तकिए के कवर का इस्तेमाल करें ये वे चीजें है जहां पर अक्सर धूल-कण होते है जो अस्थमा को ट्रिगर करते है।
३ पालतू जानवरों को हर हफ्ते नहलाएं.इससे आपके घर में गंदगी पर कंट्रोल रहेगा|
४ अस्थमा से प्रभावित बच्चों को उनकी उम्र वाले बच्चों के साथ सामान्य गतिविधियों में भाग लेने दें|
५ अस्थमा के बारे में अपनी और या अपने बच्चे की जानकारी बढाएं इससे इस बीमारी पर अच्छी तरह से कंट्रोल करने की समझ बढेगी|
६ बेड सीट और मनपसंद स्टफड खिलोंनों को हर हफ्ते धोंए वह भी अच्छी क्वालिटीवाल एलर्जक को घटाने वाले डिटर्जेंट के साथ|
७ सख्त सतह वाले कारपेंट अपनाए|
८ एलर्जी की जांच कराएं इसकी मदद से आप अपने अस्थमा ट्रिगर्स मूल कारण की पहचान कर सकते है|
९ किसी तरह की तकलीफ होने पर या आपकी दवाइयों के आप पर बेअसर होने पर अपने डॉक्टर से संर्पक करें|

ऐसा न करें
१ यदि आपके घर में पालतू जानवर है तो उसे अपने विस्तर पर या बेडरूम में न आने दें|
२ पंखोंवाले तकिए का इस्तेमाल न करें|
३ घर में या अस्थमा से प्रभावित लोगों के आस -पास धूम्रपान न करें संभव हो तो धूम्रपान ही करना बंद कर दें क्योंकि अस्थमा से प्रभावित कुछ लोगों को कपडों पर धुएं की महक से ही अटैक आ सकता है|
४ मोल्ड की संभावना वाली जगहों जैसे गार्डन या पत्तियों के ढेरों में काम न करें और न ही खेलें|
५ दोपहर के वक्त जब परागकणों की संख्या बढ जाती है बाहर न ही काम करें और न ही खेलें|
६ अस्थमा से प्रभावित व्यक्ति से किसी तरह का अलग व्यवहार न करें|
७ अस्थमा का अटैक आने पर न घबराएं.इससे प्रॉब्लम और भी बढ जाएगी. ये बात उन माता-पिता को ध्यान देने वाली है जिनके बच्चों को अस्थमा है अस्थमा अटैक के दौरान बच्चों को आपकी प्रतिक्रिया का असर पडता है यदि आप ही घबरा जाएंगे तो आपको देख उनकी भी घबराहट और भी बढ सकती है|

अस्थमा का इलाज

होमियोपैथी में अस्थमा का कारगर इलाज है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अस्थमा के अलग-अलग लक्षणों के आधार पर मरीज का इलाज किया जाए तो बीमारी पर बहुत हद तक काबू पाया जा सकता है। आमतौर पर माना जाता है कि होमियोपैथी से इलाज में वक्त ज्यादा लगता है, लेकिन इस पैथी में भी अस्थमा की कुछ ऐसी दवाएं उपलब्ध है जो तुरंत राहत देती हैं। इससे सांस की नली और फेफड़ों की जकड़न खुल जाती है और मरीज आराम से सांस ले सकता है। उचित उपचार के साथ अस्थमा के लक्षणों और उसके दौरों में सुधार आता है बीमारी की गंभीरता पर उपचार की अवधि निर्भर करती है, उस उपचार के साथ कोई भी व्यक्ति एक सामान्य जीवन जी सकता है पर एक बात का हमेशा ध्यान रहे कि उपचार न कराने पर ये बीमारी गंभीर रूप ले सकती है|

होम्योपैथिक औषधियां: आर्सेनिक-एलब्म, बलाट्टा-ओरिएनटेलिस, नेट्रम सल्फ़, ग्राइन्डेलिया, लोबिलिया, सपोन्जिया, सटिक्टा, रसटाक्स, हिपर सल्फर, केसिया-सोफ़ेरा, आदि लक्षणानुसार लाभप्रद है। यह दवायें केवल उदहारण के तौर पर दी गयी है। कृपया किसी भी दवा का सेवन बिना परामर्श के ना करे, क्योकि होम्योपैथी में सभी व्यक्तियों की शारीरिक और मानसिक लक्षण के आधार पर अलग -अलग दवा होती है !

Friday, October 22, 2010

लाइलाज नहीं डिप्रेशन


डिप्रेशन यानी हताशा या अवसाद। मेडिकल साइंस में इस रोग को सिंड्रोम माना जाता है। इससे पीड़ित व्यक्ति को अकेलापन खलता है, उदासी घेरे रहती है। यह आज के आधुनिक युग का प्रसाद है हर व्यक्ति के लिए, आज के युग के साधन जहाँ आराम देते हैं ,वही इन साधनों को जुटाने की चाह देती है चिंता। टेंशन और चाह पूरी न हो या कुछ अधूरा सा जीवन लगने लगे तो डिप्रेशन हावी हो जाता है| कई बार मन अवसाद ग्रस्त होता है और अपने आप ठीक हो जाता है| लेकिन कई बार अवसाद मन में कहीं गहरे तक बैठ जाता है। किसी बात को लेकर मन उदास होना या तनाव होना सामान्य बात है। लेकिन, जब यह उदासी और तनाव लंबे समय तक बना रहे, तो आप कहीं डिप्रेशन के शिकार न हो जाएं , इसके लिए पहले इन लक्षणों को देखें :-

लक्षण:
- उन बातों में रूचि कम हो जाना, जिनमें आप पहले आनंद लेते थे।
- बेचैनी अनुभव करना।
- बहुत अधिक सोना अथवा नींद न आना।
- हर समय थकान अथवा शक्तिहीनता का अनुभव करना।
- वजन बढ़ना अथवा घटना।
- भूख कम होना।
- ध्यान केंद्रित करने अथवा याद करने में कठिनाई।
- आशाहीनता, अपराध बोध, बेकार अथवा असहाय होने का अनुभव करना।
- सिर दर्द, पेट दर्द, शौच में समस्या अथवा ऎसा दर्द होना, जिसमें उपचार से लाभ नहीं होता।

यदि आपके ऎसे लक्षण दो सप्ताह से अधिक समय तक रहते हैं अथवा यदि आपके मन में स्वयं को अथवा अन्य लोगों को क्षति पहुंचाने के विचार आते हैं, तो आप अवसाद (डिप्रेशन) से ग्रस्त हो सकते हैं।

कारण:
डिप्रेशन के पीछे जैविक आनुवांशिक और मनोसामाजिक कारण होते हैं। यही नहीं बायोकेमिकल असंतुलन के कारण भी डिप्रेशन घेर सकता है। ऐसे में दिमाग हमेशा नकारात्मक बातें सोचने लगता है। यह भी देखा गया है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में डिप्रेशन की परेशानी ज्यादा और जल्दी घर करती है। मोटे अनुमान के अनुसार 10 पुरुषों में एक जबकि 10 महिलाओं में हर पांच को डिप्रेशन की आशंका रहती है। दरअसल, पुरुष अपना डिप्रेशन स्वीकार करने में संकोच करते हैं जबकि महिलाएं दबाव और शोषण के चलते जल्दी डिप्रेशन में आ जाती हैं। यह समस्या महानगरों में ज्यादा तेजी से पैर पसारती जा रही है। महिलाओं में डिप्रेशन होने की कुछ खास वजहें हैं। इसमें मेजर डिप्रेसिव डिसऑर्डर और बायपोलर मूड डिसऑर्डर खास हैं। मेजर डिप्रेसिव डिसऑर्डर में ध्यान एकाग्र करने में परेशानी, आत्म सम्मान में कमी महसूस होना और ऊर्जा की कमी का अहसास होता है। वहीं, बायपोलर मूड डिसऑर्डर में गुस्सा जल्दी आता है। चिड़चिड़ापन महसूस होता है और दिल इस बात को नहीं मानता कि वह परेशान है। महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले हर उम्र में डिप्रेशन के ज्यादा मामले होने के पीछे बचपन से मानसिक और शारीरिक शोषण, अपनी बात कहने की झिझक, यौवन में प्रवेश, प्रेगनेंसी और रोज के तनाव जैसे कारण अहम हैं। इसके चलते कभी-कभी उनमें आत्महत्या की इच्छा जोर मारने लगती है। इसलिए पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का डिप्रेशन ज्यादा खतरनाक होता है। हालांकि मंदी और कॉम्पटीशन के दौर में डिप्रेशन अब युवाओं को भी अपना शिकार बनाने लगा है इसलिए कोशिश यह रखनी चाहिए कि आप खुशनुमा पलों की तलाश करें और पॉजिटिव सोच रखें। डिप्रेस्ड मूड के दौरान कोई भी शख्स खुद को लाचार और निराश महसूस करता है। दरअसल दिमाग में मौजूद रसायन नर्वस सिस्टम के जरिए शरीर को संदेश भेजने में अहम भूमिका निभाते हैं लेकिन इन रसायनों में असंतुलन पैदा होने से दिमाग में गड़बड़ हो जाती है। डिप्रेशन अक्सर दिमाग के न्यूरोट्रांसमीटर की कमी के कारण भी होता है। न्यूरोट्रांसमीटर वह रसायन होते हैं जो दिमाग और शरीर के दूसरे हिस्से के बीच तालमेल कायम करते हैं खुशी के दौरान न्यूरोट्रांसमीटर्स नर्वस सिस्टम को केमिकल भेजता है। जब यह केमिकल कम हो जाता है तो डिप्रेशन के लक्षण दिखाई पड़ने लगते हैं। इसके अलावा नोरएपिनेफ़्रिन नाम के रसायन से हममें चौकन्नापन और उत्तेजना आती है और इसके असंतुलन से थकान और उदासी आती है और चिड़चिड़ाहट होने लगती है। इसके अलावा सेरोटोनिन हारमोन भी एक वजह है जब इस हारमोन का स्तर खून में कम हो जाता है तो हमारा मूड बिगड़ने लगता है और हार्ट अटैक तक की आशंका हो सकती है। शरीर में मौजूद कुछ और हारमोन के बीच भी जब असंतुलन होता है तो इसका असर हमारे मूड और खुशी पर पड़ता है जिनमें एड्रेलिन और डोपामाइन खास हैं।

बेहतरी के लिए कदम:
बेहतर महसूस करने के लिए पहला कदम किसी ऎसे व्यक्ति से बातचीत करना हो सकता है, जो आपकी सहायता कर सके। वह कोई चिकित्सक अथवा परामर्शदाता (काउंसलर) हो सकता है। आपकी देखभाल में दवाएं तथा काउंसलिंग शामिल हो सकते हैं।
क्या करें:
- स्वास्थ्यप्रद भोजन करें तथा जंक फूड से परहेज करें।
- भरपूर मात्रा में पानी पिएं।
- वाइन और नशीले पदार्थो के सेवन से बचें।
- हर रात 7 से 8 घंटे सोने का प्रयास करें।
- सक्रिय रहें, भले ही आपका ऎसा करने का मन न हो।
- अपनी दिन भर की गतिविधियों की योजना बनाएं।
- प्रतिदिन अपने लिए एक छोटा सा लक्ष्य निर्धारित करें, जो आप कर सकते हैं।
- अकेले रहने से बचें, किसी सहायक समूह में शामिल हों।
- प्रार्थना करें अथवा ध्यान लगाएं।
- स्पोर्ट्स, पेंटिंग्स, गार्डनिंग, टूरिज्म, म्यूजिक या रीडिंग जैसी हॉबीज विकसित करें।
- अपनी भावनाएं परिजनों अथवा मित्रों को बताएं। अपने परिवार तथा मित्रों को अपनी सहायता करने दें।
- 'क्षमा करो भूल जाओ' यानी 'फॉरगिव एंड फॉरगेट' का सिद्धांत अपनाएँ।

होम्योपैथी किस तरह है कारगार
डिप्रेशन कि स्थिति में होम्योपैथी अत्यन्त कारगर है। चूँकि होम्योपैथी में व्यक्तित्व विशेषता के आधार पर चिकित्सा की जाती है अतः यह अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। इससे मस्तिष्क के उच्च केंद्र जो सोचने और समझने का कार्य करते हैं में उल्लेखनीय वृद्वि होती है। पहले यह माना जाता था कि डिप्रेशन में दी जाने वाली दवाईयां चाहे वह एलोपैथी हो या होम्योपैथी नशीली होती हैं और इनकि आदत बन जाती है परंतु आजकल अच्छी नई दवाईयां निकल रही है जो बिल्कुल सुरक्शित है। सामान्यत: इन दवाईयों का दो से तीन हफ्ते बाद असर चालू होता है और कम से कम 6 माह तक लगातार यह दवाईयां लेनी पड़ती है। इस स्थिति में सामान्यतः उपयोगी दवाएँ कालि फोस, ईग्नेशिया, नेट्र्म म्युर, औरम मेट, लैकेसिस, स्ट्रामोनियम, मेडोराइनम आदि हैं। मेमोरि बूस्टर नाम कि दवा के दो चम्म्च सुबह-शाम लगातार तीन महिने लेने पर काफ़ि लाभ होता है और वह भी बिना किसी दुस्प्रभाव के। यह ब्राह्मि, शन्खपुश्पी, अश्व्गन्धा एवं चार अन्य होम्योपैथिक दवाईयों का अद्भुत मिश्र्ण हे जो दिमाग को ताकत प्रदान करता हे और याद्दाश्त भी बढाता हे। यह जान ले कि ये दवाईयां आपको प्राकृतिक दिमागी संतुलन बनाने में मदद करती है। इन्हें केवल डॉक्टरी सलाह के अनुसार लेना चाहिए। इस प्रकार चुनी हुई दवा को जब उचित पोटेंसी में दिया जाता है तब वांछित परिणाम अवश्य प्राप्त होते हैं। होम्योपैथी सहज, सस्ती और संपूर्ण चिकित्सा पद्धति है। ये औषधियाँ शरीर के किसी एक अंग या भाग पर कार्य नहीं करतीं, बल्कि रोगी के संपूर्ण लक्षणों की चिकित्सा करती है।

Tuesday, October 12, 2010

जोड़ों का दर्द एवं होम्योपैथी


हमारे देश में बडी उम्र के लोगों के बीच ऑर्थराइटिस आम बीमारी है। 50 साल से अधिक उम्र के लोग यह मान कर चलते हैं कि अब तो यह होना ही था। खास तौर से स्त्रियां तो इसे लगभग सुनिश्चित मानती हैं। ऑर्थराइटिस का मतलब है जोड में दर्द, सोजिश एवं जलन। यह शरीर के किसी एक जोड में भी हो सकता है और ज्यादा जोडों में भी। इस भयावह दर्द को बर्दाश्त करना इतना कठिन होता है कि रोगी का उठना-बैठना तक दुश्वार हो जाता है।

ऑर्थराइटिस मुख्यत: दो तरह का होता है - ऑस्टियो और रिह्यमेटाइड ऑर्थराइटिस। कई बार इसमें मरीज की हालत इतनी बिगड जाती है कि उसके लिए हाथ-पैर हिलाना भी मुश्किल हो जाता है। रिह्यमेटाइड ऑर्थराइटिस में तो यह दर्द उंगलियों, कलाइयों, पैरों, टखनों, कूल्हों और कंधों तक को नहीं छोडता है। यह बीमारी आम तौर पर 40 वर्ष की उम्र के बाद होती है, लेकिन यह कोई जरूरी नहीं है। खास तौर से स्त्रियां इसकी ज्यादा शिकार होती हैं।

घट जाती है कार्यक्षमता: ऑर्थराइटिस के मरीज की कार्यक्षमता तो घट ही जाती है, उसका जीना ही लगभग दूभर हो जाता है। अकसर वह मोटापे का भी शिकार हो जाता है, क्योंकि चलने-फिरने से मजबूर होने के कारण अपने रोजमर्रा के कार्यो को निपटाने के लिए भी दूसरे लोगों पर निर्भर हो जाता है। अधिकतर एक जगह पडे रहने के कारण उसका मोटापा भी बढता जाता है, जो कई और बीमारियों का भी कारण बन सकता है।

बाहरी कारणों से नहीं: कई अन्य रोगों की तरह ऑर्थराइटिस के लिए कोई इनफेक्शन या कोई और बाहरी कारण जिम्मेदार नहीं होते हैं। इसके लिए जिम्मेदार होता है खानपान का असंतुलन, जिससे शरीर में यूरिक एसिड बढता है। जब भी हम कोई चीज खाते या पीते हैं तो उसमें मौजूद एसिड का कुछ अंश शरीर में रह जाता है। खानपान और दिनचर्या नियमित तथा संतुलित न हो तो वह धीरे-धीरे इकट्ठा होता रहता है। जब तक एल्कलीज शरीर के यूरिक एसिड को निष्क्रिय करते रहते हैं, तब तक तो मुश्किल नहीं होती, लेकिन जब किसी वजह से अतिरिक्त एसिड शरीर में छूटने लगता है तो यह जोडों के बीच हड्डियों या पेशियों पर जमा होने लगता है।तब चलने-फिरने में चुभन और टीस होती है। यही बाद में ऑर्थराइटिस के रूप में सामने आता है। शोध के अनुसार 80 से भी ज्यादा बीमारियां ऑर्थराइटिस के लक्षण पैदा कर सकती हैं। इनमें शामिल हैं रिह्यमेटाइड ऑर्थराइटिस, ऑस्टियो ऑर्थराइटिस, गठिया, टीबी और दूसरे इनफेक्शन। 

बदलें जीने का ढंग: इससे निपटने का एक ही उपाय है और वह है उचित समय पर उचित खानपान। इनकी बदौलत एसिड क्रिस्टल डिपॉजिट को गलाने और दर्द को कम करने में मदद मिलती है। इसलिए बेहतर होगा कि दूसरी चीजों पर ध्यान देने के बजाय खानपान की उचित आदतों पर ध्यान दिया जाए, ताकि यह नौबत ही न आए, फिर भी ऑर्थराइटिस हो गया हो तो ऐसी जीवन शैली अपनाएं जो शरीर से टॉक्सिक एसिड के अवयवों को खत्म कर दे। इसके लिए यह करें-

खानपान का रखें खयाल: ऑर्थराइटिस से निपटने के लिए जरूरी है ऐसा भोजन जो यूरिक एसिड को न्यूट्रल कर दे। ऐसे तत्व हमें रोजाना के भोजन से प्राप्त हो सकते हैं। इसके लिए विटमिन सी व ई और बीटा कैरोटीन से भरपूर खाद्य पदार्थो का इस्तेमाल किया जाना चहिए। इसके अलावा इन बातों पर भी ध्यान दें - ऐसी चीजें खाएं जिनमें वसा कम से कम हो। कुछ ऐसी चीजें भी होती हैं जिनमें वसा होता तो है लेकिन दिखता नहीं। जैसे-
1. केक, बिस्किट, चॉकलेट, पेस्ट्री से भी बचें।
2. दूध लो फैट पिएं। योगर्ट और चीज आदि भी अगर ले रहे हों तो यह ध्यान रखें कि वह लो फैट ही हो।
3. चीजों को तलने के बजाय भुन कर खाएं। कभी कोई चीज तल कर ही खानी हो तो उसे जैतून के तेल में तलें।
4. चोकर वाले आटे की रोटियों, अन्य अनाज, फलों और सब्जियों का इस्तेमाल करें।
5. चीनी का प्रयोग कम से कम करें।

उपचार:
ऑर्थराइटिस कई किस्म का होता है और हरेक का अलग-अलग तरह से उपचार होता है। सही डायग्नोसिस से ही सही उपचार हो सकता है। सही डायग्नोसिस जल्द हो जाए तो अच्छा। जल्द उपचार से फायदा यह होता है कि नुकसान और दर्द कम होता है। उपचार में दवाइयाँ, वजन प्रबंधन, कसरत, गर्म या ठंडे का प्रयोग और जोड़ों को अतिरिक्त नुकसान से बचाने के तरीके शामिल होते हैं। जोड़ों पर दबाव से बचें। जितना वजन बताया गया है, उतना ही बरकरार रखें। ऐसा करने से कूल्हों व घुटनों पर नुकसान देने वाला दबाव कम पड़ता है। वर्कआउट करें। कसरत करने से दर्द कम हो जाता है, मूवमेंट में वृद्धि होती है, थकान कम होती है और आप पूरी तरह स्वस्थ रहते हैं। मजबूती प्रदान करने वाली कई कसरतें हैं गठिया के लिए। अपने डॉक्टर या फिटनेस विशेषज्ञ से उसके बारे में मालूम कर लें। स्ट्रैचिंग एक्सरसाइज से जोड़ व मांसपेशियाँ लचीले रहते हैं। इससे तनाव कम होता है और रोजाना की गतिविधियाँ जारी रखने में मदद मिलती है। गठिया में ज्यादातर लोगों के लिए सबसे अच्छी कसरत चहलकदमी है। इससे कैलोरी बर्न हो जाती है। मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं और हड्डियों में घनत्व बढ़ जाता है। पानी में की जाने वाली कसरतों से भी ताकत आती है, गति में वृद्धि होती है और जोड़ों में टूटफूट भी कम होती है। हाल के शोधों से मालूम हुआ है कि विटामिन सी व अन्य एंटीऑक्सीडेंट ऑस्टियो-आर्थराइटिस के खतरे को कम करते हैं और उसे बढ़ने से भी रोकते हैं। इसलिए संतरा खाओ या संतरे का जूस पियो। ध्यान रहे कि संतरा व अन्य सिटरस फल फोलिक एसिड का अच्छा स्रोत हैं। आपके आहार में पर्याप्त कैल्शियम होना चाहिए। इससे हड्डियाँ कमजोर पड़ने का खतरा नहीं रहता। नाश्ता अच्छा करें। फल, ओटमील खाएँ और पानी पीएँ। जहाँ तक मुमकिन हो कैफीन से बचें। वे जूते न पहने जो आपका पंजा दबाते हों और आपकी एड़ी पर जोर डालते हों। पैडेड जूता होना चाहिए और जूते में पंजा भी खुला-खुला रहना चाहिए। सोते समय गर्म पानी से नहाना मांसपेशियों को रिलैक्स करता है और जोड़ों के दर्द को आराम पहुँचाता है। साथ ही इससे नींद भी अच्छी आती है।

होम्योपैथिक औषधियाँ: - लक्षणानुसार ब्रायोनिया, रस-टाक्स, काल्मिया लैटविया, कैक्टस ग्रेड़ीफ्लोरा, डल्कामारा, लाईकोपोडियम, काली कार्ब, मैगफास, स्टेलेरिया मिडि़या, फेरम-पिक्रीरीकम इत्यादि अत्यंत कारगर होम्योपैथिक दवाएँ हैं।
उपरोक्त दवाये केवल उदहारण के तौर पर दी गयी है .कृपया किसी भी दवा का सेवन बिना परामर्श के ना करे,
क्योकि होम्योपैथी में सभी व्यक्तियों की शारीरिक और मानसिक लक्षण के आधार पर अलग -अलग दवा होती है !

Saturday, September 4, 2010

बचिए आई-फ़्लु के प्रकोप से


आँख भगवान की दी गई आवश्यक अवयवों में से एक है और इसकी प्रमुखता का अंदाज तो इसी बात से लगाया जा सकता है कि बिना आँख सब बेकार। तभी तो इस अवयव को सुरक्षित एवं रोगों से बचाने की जिम्मेदारी इतनी जरूरी है। आजकल आई-फ़्लु का कहर जोरों से है, रोजाना करीब दस-पन्द्र्ह मरीज इसी बिमारी से पीडित आ रहें हैं। सभी जानते हैं गर्मी-सर्दी के संधिकाल में आई-फ़्लु की शुरुआत होती है। जिसे 'पिंक आई' या 'कंजंक्टिवाइटिस' भी कहा जाता है; आंख की बाहरी पर्त कंजंक्टिवा और पलक के अंदरूनी सतह के संक्रमण को कहते हैं। साधारण भाषा में इसे "आँख आना" भी कहते हैं। यह प्रायः एलर्जी या संक्रमण (सामान्यतया विषाणु किंतु यदा-कदा जीवाणु से) द्वारा होता है। यह संक्रमण अधिकांशतः मानवों में ही होता है, किंतु कहीं कहीं कुत्तों में भी पाया गया है। इसकी वजह से आंखें लाल, सूजन युक्त, चिपचिपी [कीचड़युक्त] होने के साथ-साथ उसमें बाल जैसी चुभने की समस्याएं हो सकती हैं।

इस बीमारी की कुछ श्रेणियाँ हैं -

1. कैटरल (सर्दी या ठंड लगने के कारण)
2. पुरुलेन्ट (पीव स्त्रावी)
3. ग्रैन्यूलर (दानामय)
4. डिफ्‍टोरिक
5. फ्लिकट्यिलर (छोटी-छोटी दानों के साथ)

कैटरल कंजंक्टिवाइटस इतनी खतरनाक नहीं है इसलिए सावधानी ही उपाय है। आँखों में कुछ गिर जाने से रोग होने पर उस वस्तु को निकाल देने से रोग दूर हो जाता है। कभी आँख में उत्तेजक तरल पदार्थ या क्षारीय पदार्थ गिर जाने पर शहद डालने से या उस आँख को साफ पानी से धोने पर रोग दूर हो जाता है।
होम्योपैथिक औषधि : एकोनाईट, यूफ्रेसिया, मर्क सौल, मर्क कॉर, एपिस (इन्फ्‍लामेशन होने को) रसटक्स आर्सेनिक इत्यादि की 30 पावर दिन में 3 बार या 4 बार आयोग्यकारक होती है पर इसे लक्षणानुसार लेना चाहिए।

2. दानामय कंजंक्टिवाइटस : इसमें पलकों के भीतर दानामय छोटी-छोटी फुंसियाँ या दाने हो जाते हैं। पहले आँखें फूल जाती हैं। जलन, चुभन होती है। रोशनी सहन नहीं हो पाती। आँखों से पानी जैसा पस निकलता है। बहुत बार पलकें भीतर की ओर सिकुड़ जाती हैं। इस अवस्था को एंट्रोपियन कहते हैं। इसका कारण विशुद्ध वायु के सेवन का अभाव, अखाद्य आहार करना, धूप और धूल में अधिक देर घूमना। यह एक बार अच्छा हो जाने के बाद पुन: उभर सकता है। लक्षणानुसार यूफ्रेशिया का लोशन एवं यूफ्रेशिया 30 दिन में तीन बार आँख में डालने एवं लगाने से अत्यधिक लाभ मिलता है। अन्य औषधियाँ जैसे पल्सेटिला, हियर सल्फर, बेलाडॅना, केल्केरिया कार्ब की कम पावर की गोलियाँ आरोग्यकारी होती हैं। अरजेन्ट्‍स नाईट्रिकम की 2 बूँद आधे आउंस डिस्टील्ड वाटर में देकर बाहरी प्रयोग करने से फायदा होता है।

3. पुरुलेन्ट कंजंक्टिवाइटस (सड़नशील कंजंक्टिवाइटस) : इसे इजिप्सयन अप्थैल्मिया के नाम से भी जाना जाता है।
कारण : किसी विषाक्त वस्तु के शरीर के अंदर प्रवेश करने अथवा आँखों में लगकर यह रोग उत्पन्न होता है। साथ ही यह संक्रामक रोग भी है। रोगग्रस्त व्यक्ति के संसर्ग से स्वस्थ व्यक्ति भी चपेट में आ जाता है। प्रमेह या उपदंश विष से भी यह रोग हो सकता है। गनोरियल या प्रमेहजनित आँख के प्रदाह एक से ही मालूम पड़ते हैं परंतु शीघ्र ही इसका रूप बदल जाता है।

उद्‍भव के स्थान : हॉस्पिटल, सेना-निवास, स्कूल, कॉलेज, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड एवं जहाँ लोगों का जमाव होता है, वहीं पर इसका संक्रमण शीघ्र होता है।
लक्षण - पहले आँख से श्लेष्मा निकलता है वह क्रमश: पस में परिणत होता है एवं इसका स्त्राव बढ़ता जाता है।

होम्योपैथिक चिकित्सा : मर्कुरियस वाईवस, मर्कुरियस रूब्रम या मर्क कौर के 30 पावर 3 बार लेने पर एवं उपरोक्त मर्क कौर की 2 या 3 पावर की 10 बूँद या 10 ग्रेन 1 आउंस डिस्टील्ड वाटर में देकर आँख धोने से विशेष लाभ मिलता है। अन्य दवाएँ - हिपर सल्क एवं कैल्केरिया सल्फ भी उत्तम औषधि है।

4. फिलिक्ट न्यूलर आप्थैलमिया -
लक्षण : आँखों के ऊपर दाने हो जाते हैं। यह एक प्रकार का ट्‍यूबर्कूलर रोग है। इसमें रोगी के लिम्फैटिक गलेण्ड्‍स कीटाणुओं से संक्रमित हो जाते है।
होम्योपैथिक औषधियां : बेलाडोना, मर्क कॉर, रसटाक्स, ग्रेफाइट्‍स, हिपर सल्फर, एसिड नाईट्रिकम, कैल्केरिया, आर्सेनिक लक्षणानुसार लाभप्रद है।

सावधानी : बैक्टीरियल और वायरल कंजंक्टिवाइटिस बहुत तेजी से फैलने वाला रोग है। यह परिवार और डॉक्टर की क्लिनिक में आए लोगों में बहुत तेजी से फैल सकता है। यदि आप या आपका बच्चा "आई इंफेक्शन" का शिकार हो गया है, तो परिवार के सभी सदस्य साफ सफाई पर खास तवज्जों दें। अच्छी तरह हाथ धोएं, रोगी के टॉवेल, रूमाल का इस्तेमाल न करें और तकिए का कवर रोजाना बदलें। यूफ्रेशिया या ममिरा आई- ड्राप्स दिन में दो-तीन बार डालते रहें। स्विमिंग पुल में जाने से बचें। धैर्य रखें, डॉक्टर के बताएं निर्देशों का पालन करें, कुछ दिनों में कंजंक्टिवाइटिस ठीक हो जाती है।

Thursday, August 12, 2010



बारिश में बीमारी से करें बचाव

मानसून आ गया है और झमाझम बारिश भी शुरू हो गई है। जगह-जगह पानी का भराव और ट्रैफिक जाम इन दिनों आम है। ऐसे में ढेरों बीमारियां भी हमला बोलने को तैयार रहती हैं। मलेरिया, डेंगू, जॉइंडिस, हैजा जैसी बीमारियां पानी से ही फैलती हैं इसलिए जहां सुहानी बारिश मौसम को मजा देती है वहीं बीमारियों की के वायरस भी पानी में पलते-बढ़ते हैं।

बरसात में बीमारी फैलने का सबसे बड़ा जरिया दूषित पानी है। दूषित पानी से कई बीमारियां घर के अंदर पहुंच जाती हैं। इसके साथ कीचड़ और गंदे पानी में रहने से त्वचा संबंधी रोग भी हो जाते हैं। बरसात में सबसे ज्यादा मामले मलेरिया के होते हैं।

मलेरिया एनाफिलीज मच्छर से होता है। मलेरिया का प्रमुख लक्षण यह है कि एक निश्चित समय पर मरीज को बुखार आता है, सिरदर्द और मितली आने के साथ कंपकपी के साथ ठंड लगती है। मरीज के हाथ-पैरों में दर्द के साथ कमजोरी महसूस होती है।

बरसात के दिनों में डेंगू बुखार भी खूब फैलता है। मलेरिया की तरह यह भी मच्छर के काटने से फैलता है। वायरस से फैलने वाला डेंगू चार किस्म को होता है। यह बीमारी एडीज मच्छर से फैलती है जो ज्यादातर दिन में काटता है।
डेंगू में तेज बुखार, शरीर में और सिर में तेज दर्द होता है। बड़ों के मुकाबले यह बीमारी बच्चों में ज्यादा होती है। आम बोलचाल की भाषा में इसे हड्डी तोड़ बुखार भी कहा जाता है क्योंकि इसके कारण शरीर और जोड़ों में खूब दर्द होता है।
पीलिया भी बरसात के दिनों में होने वाली आम बीमारी है। पीलिया रोग यानी जॉइंडिस में व्यक्ति के शरीर में खून की कमी होने लगती है। भूख मर जाती है और आंखें, नाखून, चेहरा, हथेलियां और धीरे-धीरे पूरा शरीर पीला होने लगता है।
पीलिया के शिकार व्यक्ति की भूख कम हो जाती है और शरीर में पानी और खून की बेहद कमी हो जाती है। अगर समय पर इलाज न मिले तो मरीज की मौत भी हो सकती है। इसके अलावा टाइफाइड भी दूषित पानी से हाने वाली एक बड़ी बीमारी है।

इस बीमारी में मरीज को पहले बुखार आता है जो पांचवें दिन तक लगातार बढ़ जाता है। सिरदर्द के साथ पेट में दर्द होता है। दूसरा हफ्ता आने तक मरीज के बदन पर दाग पड़ने लगते हैं। ऐसे हालात में पहुंचने से पहले ही तुरंत डॉक्टर की मदद लेनी चाहिए।

इन बीमारियों से बचना ही सबसे अच्छी स्थिति है लेकिन सावधानी के बाद भी यदि बीमारी हो जाए तो घबराने के बजाय डॉक्टर के परामर्श से इलाज कराकर जल्द ही सेहत में सुधार किया जा सकता है। मलेरिया से बचने के लिए मच्छरदानी में सोएं, और घर के आसपास पानी न जमा होने दें। घर के पास अगर पानी जमा भी होता है तो उसमें मच्छर और कीटाणु न पनपने पाएं इसके लिए दवाओं का छिड़काव कराएं।

मच्छर काटने के कम से कम 14 दिन बाद मलेरिया के लक्षण सामने आते हैं। अगर डेंगू बुखार है तो तुरंत डॉक्टर की मदद लें और उचित दवा लेकर बुखार कम करें। रोगी को डिस्प्रिन, एस्प्रीन कभी ना दें। हैजा से बचने के लिए पानी को उबाल कर पिएं और खाने को पूरी तरह पकाकर खाएं। साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें। पीलिया होने पर खाने में खास ध्यान देने की जरूरत होती है। पानी उबाल कर पीएं और हल्का खाना खाएं। तले और मसालेदार खाने से बचें। बरसात के मौसम में बीमारियों से बचने के लिए बाहर का खाना बिल्कुल नहीं खाना चाहिए।

Wednesday, July 28, 2010

सफेद दाग: छुपाएं नहीं, इलाज करायें।

सफेद दाग जिसे की आयुर्वेद मै श्वेत कुष्ठ के नाम से जानते है एक ऐसी बीमारी है जिससे कोई भी व्यक्ति बचना चाहेगा..इस बीमारी मैं व्यक्ति की त्वचा पर सफेद चकते बनने प्रारंभ हो जाते है ..और कई वार यह पूरे पूरे शरीर पर फैल जाती है। सफेद दाग विचलित कर देने वाला विकार है, पर हरेक सफेद दाग एक सा नहीं होता। कुछ त्वचा पर पड़े दबाव, किसी कपड़े से हुई एलर्जी, संक्रमण या अन्य कारणों से होते हैं, तो कुछ शरीर की इम्यून प्रणाली के बागी होने से उपजते हैं। यह स्थिति विटिलिगो या ल्यूकोडर्मा कहलाती है, जिसे लोग फुलवैरी या गलती से कच्चा कोढ़ भी कह देते हैं। ‘ल्यको का मतलब है ‘सफेद’ और डर्मा का मतलब है ‘खाल’। ल्यूकोडर्मा में असामान्य रूप से खाल का रंग सफेद होने लगता है। शरीर के जिस हिस्से पर इसका प्रभाव पड़ता है वहाँ से मेलेनोसाइटिस पूरी तरह से खत्म हो जाते हैं। सफेद दाग सामाजिक अभिशाप नहीं, एक शारीरिक रोग व विकार है। यह रोग छूने से नहीं फैलता, इसमें सिर्फ चमड़ी का रंग ही सफेद हो जाता है।



कारण:ल्यूकोडर्मा किस वजह से होता है, इसका कारण अभी स्पष्ट नहीं है। लेकिन शरीर पर इन सफेद धब्बों के कुछ संभव कारण हैं

1. खून में मेलेनिन नामक तत्व का कम हो जाना।
2. अत्यधिक कब्ज।
3. लीवर का ठीक से कार्य ना कर पाना या पीलिया।
4. पेट से संबंधित बीमारी या पेट में कीड़ों का होना।
5. टाइफाइड जैसी बीमारियाँ जिन से पेट या आंतों में संक्रमण होने का खतरा हो।
6. अत्याधिक तनाव
7. यह आनुवंशिक भी हो सकता है।

निवारण:
1.खट्टे खाद्य पदार्थों का सेवन करने से बचना चाहिए। इस तरह के पदार्थ शरीर में मेलेनिन की मात्रा को कम करते हैं।
2. माँसाहारी भोजन भी हमारे शरीर में मौजूद सेल्स के लिए बाहरी तत्व की तरह होता है।
3. खाद्य पदार्थों में उपयोग किए जाने वाले रंग भी हानिकारक साबित हो सकते हैं।
4. पोषक तत्व जैसे बीटा कैरोटिन (गाजर में), लाइकोपिन (टमाटर में), विटामिन ई एवं सी (ग्रेप सीड एक्स्ट्रेक्ट में उच्च मात्रा में उपलब्ध) और अन्य खनिज तत्वों को आहार में शामिल करना चाहिये।
5. कई बार ल्यूकोडर्मा के रोगी दवाइयां लेना शुरू तो करते हैं पर थोड़ा आराम मिलते ही बंद कर देते हैं। इससे फिर से तकलीफ बढ़ने का खतरा बना रहता है। ल्यूकोडर्मा के रोगियों को तब तक दवाइयां लेनी चाहिए जब तक पूरा कोर्स न ख़त्म हो जाए।



होम्योपैथिक चिकित्सा
उपचार के लिए होम्योपैथी में बहुत सी दवाएं हैं। कुछ खाने की, तो कुछ लगाने की। उपचार करने में दो तरह की औषधिया काम में लाई जाती है…एक वे जो  रोग प्रति रोधक तंत्र में फेरबदल कर के व्याधी के बढने को रोकती है….और दूसरी वे जो गये हुए रंग को वापिस बनाती है। किसी विशेषज्ञ से उपचार कराया जाए तो लगभग 50 प्रतिशत मामलों में दाग मिट जाते हैं, लेकिन यह सुधार धीरे-धीरे होता है। कुल मिलाकर यह एक ठीक होने लायक बीमारी है…लाईलाज नहीं है…और यदि सही समय पर उपचार प्रारंभ किया जाये तो इसमें अच्छे परिणाम मिलते हैं। होम्योपैथीक दवाएँ जो लक्षणागत ल्यूकोडर्मा में काम करती हैं वे इस प्रकार हैं: - आर्सेनिक एल्बम, नेट्रम म्यूर, इचिनेसिया, लाईकोपोडियम, आर्सेनिक-सल्फ़-फ़्लेवम, सोरिलिया, नेट्रम सल्फ, सिलिसिया, सल्फर आदि।

उपरोक्त दवाये केवल उदहारण के तौर पर दी गयी है।कृपया किसी भी दवा का सेवन बिना परामर्श के ना करे, क्योकि होम्योपैथी में सभी व्यक्तियों की शारीरिक और मानसिक लक्षण के आधार पर अलग -अलग दवा होती है !


डा. नवनीत बिदानी
मोबाईल: 9416336371

Monday, May 24, 2010

बच्चोंका श्वास रोग एवं होम्योपैथिक उपचार



बच्चॊं का श्वास रोग लड़कियों की आपेक्षा लड़कों मे ज्यादा होता है , शैशवावस्था मे दमे के सारे लक्षण व्यक्त नही होते है । सामन्यतया लोग समझते है की निमोनिया बिगड़ गया है , लेकिन यदि बच्चा बार सांस लेने मे दिक्कत महसुस करता है और कुछ समय के लिये लक्षण ठीक भी हो जाते है परंतु कुछ समय बाद फ़िर वही लक्षण हो जाते हैं । यदि साथ मे बुखार या सर्दी के अन्य लक्षण नही मिलते तो यह समझ लेना चाहिये की बच्चे को शवास रोग है।

मुख्य लक्षण-- इस रोग मे बालक की छाती से बार बार और अत्यन्त उष्ण साँसे निकलती है । साँसो मे सीटी बजने जैसी आवाज आती है। बच्चे कॊ श्वास छोड़ने मे परेशानी आती है । हंफ़नी सी आने लगती है। कुछ बच्चॊं मे आवेग आने से पहले नाक से काफ़ी मात्रा मे स्राव आने लगता है । कुछ मे कफ़ युक्त खांसी और बुखार भी होता है।

कारण--- मुख्य रूप से इसके तीन कारण होते है - एलर्जी, संवेगात्मक , और संक्रमण
इन सब का सम्मिलत रुप भी पायाजाता है । एलर्जी की प्रवृति वंशानुगत होती है यह मुख्य रुप से हवा मे मोजुद धुलि कण, धुँआ, परागकण, रोम, महक, और आहार से होती है , मोसम मे आये बदलाव भी एलर्जी का मुख्य कारण होते है।

आहार विहार व्यवस्था-- आराम अधिक दे, शुद्ध वातारण मे रहें। उष्ण और शीत एक साथ सेवन न करें । संतुलित आहार दें । दुध मे सोंठ डालकर दें । शीतल और बाजार की वस्तुओं से परहेज रखें , दही . लस्सी , चावल, तले हुए मसाले दार आहार से परहेज रखें। बच्चे को खुश रखने का प्रयत्न करते रहें।

क्या श्वास रोग/अस्थमा ठीक हो सकता है?
उचित उपचार के साथ अस्थमा के लक्षणों और उसके दौरों में सुधार आता है बीमारी की गंभीरता पर उपचार की अवधि निर्भर करती है उस उपचार के साथ कोई भी व्यक्ति एक सामान्य जीवन जी सकता है पर एक बात का हमेशा ध्यान रहे कि उपचार न कराने पर ये बीमारी गंभीर रूप ले सकती है |



श्वास रोग/अस्थमा -क्या करें और क्या न करें

ऐसा करें

१ धूल से बचें और धूल-कण अस्थमा से प्रभावित लोगों के लिए एक आम ट्रिगर है|
२ एयरटाइट गद्दे, बॉक्स स्प्रिंग और तकिए के कवर का इस्तेमाल करें ये वे चीजें है जहां पर अक्सर धूल-कण होते है जो अस्थमा को ट्रिगर करते है।
३ पालतू जानवरों को हर हफ्ते नहलाएं, इससे आपके घर में गंदगी पर कंट्रोल रहेगा|
४ अस्थमा से प्रभावित बच्चों को उनकी उम्र वाले बच्चों के साथ सामान्य गतिविधियों में भाग लेने दें |
५ अस्थमा के बारे में अपनी और या अपने बच्चे की जानकारी बढाएं इससे इस बीमारी पर अच्छी तरह से कंट्रोल करने की समझ बढेगी |
६ बेड सीट और मनपसंद स्टफड खिलोंनों को हर हफ्ते धोंए वह भी अच्छी क्वालिटीवाल एलर्जक को घटाने वाले डिटर्जेंट के साथ |
७ सख्त सतह वाले कारपेंट अपनाए |
८ एलर्जी की जांच कराएं इसकी मदद से आप अपने अस्थमा ट्रिगर्स मूल कारण की पहचान कर सकते है |
९ किसी तरह की तकलीफ होने पर या आपकी दवाइयों के आप पर बेअसर होने पर अपने डॉक्टर से संर्पक करें |

ऐसा न करें
१ यदि आपके घर में पालतू जानवर है तो उसे अपने विस्तर पर या बेडरूम में न आने दें|
२ पंखोंवाले तकिए का इस्तेमाल न करें |
३ घर में या अस्थमा से प्रभावित लोगों के आस -पास धूम्रपान न करें संभव हो तो धूम्रपान ही करना बंद कर दें क्योंकि अस्थमा से प्रभावित कुछ लोगों को कपडों पर धुएं की महक से ही अटैक आ सकता है |
४ मोल्ड की संभावना वाली जगहों जैसे गार्डन या पत्तियों के ढेरों में काम न करें और न ही खेलें |
५ दोपहर के वक्त जब परागकणों की संख्या बढ जाती है बाहर न ही काम करें और न ही खेलें |
६ अस्थमा से प्रभावित व्यक्ति से किसी तरह का अलग व्यवहार न करें |
७ अस्थमा का अटैक आने पर न घबराएं, इससे प्रॉब्लम और भी बढ जाएगी| ये बात उन माता-पिता को ध्यान देने वाली है जिनके बच्चों को अस्थमा है अस्थमा अटैक के दौरान बच्चों को आपकी प्रतिक्रिया का असर पडता है यदि आप ही घबरा जाएंगे तो आपको देख उनकी भी घबराहट और भी बढ सकती है |

Sunday, May 16, 2010

सोरायसिस बीमारी एवं होम्योपैथिक उपचार |

इस समय देश की 5 फीसदी आबादी सोरायसिस की शिकार है। सोरायसिस त्वचा की ऊपरी सतह का चर्म रोग है जो वैसे तो वंशानुगत है लेकिन कई कारणों से भी हो सकता है। आनु्वंशिकता के अलावा इसके लिए पर्यावरण भी एक बड़ा कारण माना जाता है। यह असाध्य बीमारी कभी भी किसी को भी हो सकती है। कई बार इलाज के बाद इसे ठीक हुआ समझ लिया जाता है जबकि यह रह-रहकर सिर उठा लेता है। शीत ऋतु में यह बीमारी प्रमुखता से प्रकट होती है।

सोरायसिस चमड़ी की एक ऐसी बीमारी है जिसके ऊपर मोटी परत जम जाती है। दरअसल चमड़ी की सतही परत का अधिक बनना ही सोरायसिस है। त्वचा पर भारी सोरायसिस की बीमारी सामान्यतः हमारी त्वचा पर लाल रंग की सतह के रूप में उभरकर आती है और स्केल्प (सिर के बालों के पीछे) हाथ-पाँव अथवा हाथ की हथेलियों, पाँव के तलवों, कोहनी, घुटनों और पीठ पर अधिक होती है। 1-2 प्रतिशत जनता में यह रोग पाया जाता है।



क्या है लक्षण:
रोग से ग्रसित (आक्रांत) स्थान की त्वचा चमकविहीन, रुखी-सूखी, फटी हुई और मोटी दिखाई देती है तथा वहाँ खुजली भी चलती है। सोरायसिस के क्रॉनिक और गंभीर होने पर 5 से 40 प्रतिशत रोगियों में जोड़ों का दर्द और सूजन जैसे लक्षण भी पाए जाते हैं एवं कुछ रोगियों के नाखून भी प्रभावित हो जाते हैं और उन पर रोग के चिह्न (पीटिंग) दिखाई देते हैं।

क्यों और किसे होता है सोरायसिस:
सोरायसिस क्यों होता है इसका सीधे-सीधे उत्तर देना कठिन है क्योंकि इसके मल्टीफ्लेक्टोरियल (एकाधिक) कारण हैं। अभी तक हुई खोज (रिसर्च) के अनुसार सोरायसिस की उत्पत्ति के लिए मुख्यतः जेनेटिक प्री-डिस्पोजिशन और एनवायरमेंटल फेक्टर को जवाबदार माना गया है।सोरायसिस हेरिडिटी (वंशानुगत) रोगों की श्रेणी में आने वाली बीमारी है एवं 10 प्रश रोगियों में परिवार के किसी सदस्य को यह रोग रहता है।

किसी भी उम्र में नवजात शिशुओं से लेकर वृद्धों को भी हो सकती है। यह इंफेक्टिव डिसिज (छूत की बीमारी) भी नहीं है। सामान्यतः यह बीमारी 20 से 30 वर्ष की आयु में प्रकट होती है, लेकिन कभी-कभी इस बीमारी के लक्षण क्रॉनिक बीमारियों की तरह देरी से उभरकर आते हैं। सोरायसिस एक बार ठीक हो जाने के बाद कुछ समय पश्चात पुनः उभर कर आ जाता है और कभी-कभी अधिक उग्रता के साथ प्रकट होता है। ग्रीष्मऋतु की अपेक्षा शीतऋतु में इसका प्रकोप अधिक होता है।

रोग होने पर क्या करें:
सोरायसिस होने पर विशेषज्ञ चिकित्सक के बताए अनुसार निर्देशों का पालन करते हुए पर्याप्त उपचार कराएँ ताकि रोग नियंत्रण में रहे। थ्रोट इंफेक्शन से बचें और तनाव रहित रहें, क्योंकि थ्रोट इंफेक्शन और स्ट्रेस सीधे-सीधे सोरायसिस को प्रभावित कर रोग के लक्षणों में वृद्धि करता है। त्वचा को अधिक खुश्क होने से भी बचाएँ ताकि खुजली उत्पन्न न हो। परहेज नाम पर मात्र मदिरा और धूम्रपान का परहेज है क्योंकि ये दोनों ही सीधे सीधे इस व्याधि को बढाते है.


क्या है उपचार:
सोरायसिस के उपचार में बाह्य प्रयोग के लिए एंटिसोरियेटिक क्रीम/ लोशन/ ऑइंटमेंट की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लेकिन जब बाह्योपचार से लाभ न हो तो मुँह से ली जाने वाली एंटीसोरिक और सिमटोमेटिक होम्योपैथिक औषधियों का प्रयोग आवश्यक हो जाता है।

होम्योपैथिक औषधियाँ: - लक्षणानुसार मरक्यूरस सौल, नेट्रम सल्फ, मेडोराइनम, लाईकोपोडियम, सल्फर, सोराइन्म, आर्सेनिक अल्ब्म, ग्रफाइट्स, इत्यादि अत्यंत कारगर होम्योपैथिक दवाएँ हैं।

उपरोक्त दवाये केवल उदहारण के तौर पर दी गयी है .कृपया किसी भी दवा का सेवन बिना परामर्श के ना करे, क्योकि होम्योपैथी में सभी व्यक्तियों की शारीरिक और मानसिक लक्षण के आधार पर अलग -अलग दवा होती है !

Saturday, May 15, 2010

विश्व होम्योपैथी समुदाय ( Homeopathic World Community )

१ साल के अन्दर ही विश्व होम्योपैथी समुदाय का नेटवर्क दुनिया भर के ७० देशों से २००० होम्योपैथिक चिकित्सकों, छात्रों और होम्योपैथिक चिकित्सा पद्दति के प्रति रुझान रखने वालों के बीच लोकप्रिय हो चुका है। कम्यूनिटी का मुख्य उद्देशय होम्योपैथिक चिकित्सकों के बीच समन्वय और सकारात्मक अनुभवों का आदान प्रदान करना है ।

होम्योपैथिक वर्ल्ड कम्यूनिटी मे शामिल होने केलिये http://www.homeopathyworldcommunity.com पर चटका लगायें ।



In just 1 year Homeopathy World Community Network has over 2000 members representing 70 Countries around the world. Members are physicians and professional health providers who have years of training. Some are students presently taking degree programs at universities, colleges and certificate seminars around the world. Other members joined the movement to learn more after experiencing positive effects from homeopathy

Click HERE to join Homeopathic World Community

Courtesy : Debby Bruck

Tuesday, May 4, 2010

क्या कहते हैं आपके नाखून?

नाखून, जो एक हमारे शरीर में सबसे दृढ संरचनाओ में से हैं, आश्चर्यजनक हैं, वास्तव में यह मृत कोशिकाओं का संग्रह है | सभी चाहते हैं कि उनके नाखून बड़े और सुन्दर दिखें। अगर आपके नाखून हफ्ते में 0.6 से 1.3 मी.मी. बढ़ते हैं तो आप स्वस्थ माने जाएँगे। गर्मियों में इनके बढ़ने की रफ्तार तेज होती है, लेकिन सर्दियों में धीमी। नाखून सामान्य स्वास्थ्य का एक आईना हैं, जो नाखूनों की गुणवत्ता में परिलक्षित होती है, जो शरीर में मौजूदा चिकित्सा अवस्थाओं में होती हैं| इस प्रकार नाखून भी चिकित्सकों के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण नैदानिक उपकरण हैं| आपको यह जानकर आर्श्च होगा कि आपके नाखून भी आपके स्वास्थ्य की सारी पोल खोल देते हैं। आप कैसा खाते हैं, क्या खाते हैं, आपकी सोच और रहन-सहन भी।
आपके खाने के गलत तरीकों, प्रोटीन की कमी, थायरॉईड संबंधी परेशानी या खून की कमी सबकुछ आपके नाखून कह देते हैं। स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को आप अपने नाखून देखकर भी पता कर सकते हैं।


कैसे पहचानेंगे नाखून से अपने स्वास्थ्य की कमजोरियों को-

*अगर आपके नाखून के आस-पास की त्वचा सूख रही है। तो यह आपके शरीर में विटामिन 'सी', फोलिक एसिड, और प्रोटीन की कमी को दर्शाता है। इसके लिए आप हरी पत्तीदार सब्जियों का सेवन करें। मछली और अण्डे खाएँ।
* नाखूनों पर सफेद धब्बे यह दर्शाते हैं कि आपके शरीर में जिंक और विटामिन 'बी' की कमी है। चना इन दोनों का बड़ा ही बेहतर स्त्रोत है। ज्वार, बाजरा से भी इसकी कमी को पूरा किया जा सकता है।
*नाखूनों का धीमी गति से बढ़ना यह बताता है कि आप प्रोटीन की कमी और विटामिन 'ए' की कमी से जूझ रहे हैं। इसके लिए हौम्योपैथी में कई दवाएँ उपलब्ध हैं। मानसिक अशांति, प्रोटीन और जिंक की कमी नाखूनों की वृद्धि में बाधक होते हैं।
*नाखूनों का भद्दा रंग आपके लगातार नेलपॉलिश के इस्तेमाल की वजह से भी हो सकता है। पीले नाखून धूम्रपान की वजह से होते हैं। जबकि नीले नाखून साँस संबंधी समस्याओं और पीले और हल्के सफेद रंग के नाखून एनीमिया के कारण होता है। इसके लिए चुकंदर का सेवन करना लाभदायक रहता है। विटामिन 'सी' के स्त्रोत वाले फल और सब्जियों का प्रयोग भी कर सकते हैं।
*शरीर के अंदर कैल्शियम और विटामिन की कमी से नाखून कमजोर होकर टूटते रहते है। इसको दूर करने के लिए भोजन में पौष्टिक आहार लेना चाहिए और दूध या दूध से बने पदार्थों का प्रयोग करना चाहिए।

दुनियाभर में हुए कुछ शोधों के अनुसार यह तथ्य प्रमाणित हो चुका है कि विभिन्न बीमारियों में नाखूनों का रंग बदल जाता है। जैसे
• सफेद रंग के नाखून लिवर से संबंधित बीमारियों जैसे हेपेटाइटिस- की खबर देते हैं।
• पीले नाखून (जो आकार में मोटे हों और धीरे-धीरे बढ़ते हों) फेफड़े संबंधी बीमारियों के परिचायक हैं।
• आधे सफेद और आधे गुलाबी नाखून गुर्दे संबंधी बीमारियों का संकेत देते हैं।
• यदि नाखूनों का रंग पीला है या उनकी पर्त सफेद है, तो यह लक्षण शरीर में खून की कमी(एनीमिया)का लक्षण है।

नाखूनों पर ध्यान ना देने से कुछ महिलाओं में हैंग नेल्स तथा स्पून नेल्स जैसी समस्याएं पैदा हो जाती है।

हैंग नेल्स :

हैंग नेल्स में नाखून के किनारे की त्वचा छिलके के जैसी अलग हो जाती है, जिसके कारण नाखूनों में सूजन और जलन होने लगती है। इसके उपचार के लिए विटामिन सी और प्रोटीनयुक्त भोजन का ज्यादा सेवन करना चाहिए।

स्पून नेल्स :

हममें से बहुतों के उत्तल या उभरे हुए नाखून होते है, किसी गेंद जैसी गोलाई लिए हुए, लेकिन यदि आपके नाखूनों के बीच में गड्ढा है तो यह इस बात का संकेत है कि आपके शरीर में आयरन की कमी है। रक्त की कमी से नाखून टेढ़े-मेढ़े और खुरदुरे हो जाते हैं।

बीमारी है नाखून चबाना
आपका बच्चा अगर नाखून चबाता है तो उस जरूर ध्यान दीजिये। ऑनिकोफेजिया सुनने में कुछ अटपटा सा लगता है पर इस परेशानी से बहुत सारे लोग पीड़ित होते हैं। ऐसा नहीं है कि यह समस्या केवल बच्चों में ही होती है। कई बार यह समस्या बड़ों में भी पाई जाती है।
सामान्य तौर पर हम इसे इसे नाखून चबाने के रूप में या नेल-बाइटिंग के रूप में जानते हैं। आमतौर पर आदमी जब तनाव में किसी बात को लेकर उत्सहित होता है तो वह नाखून कुतरता या चबाता है। जब आदमी के पास कोई काम नहीं होता तब भी वह बोर होने पर नाखून काटने का ही काम करता है। शर्म य झुंझलाहट में भी लोग नाखून खाने लगते हैं।

नर्वस-हैबिट के तहत नाखून खाना, अंगूठा चूसना, नाक में उंगली डालना, बाल को मरोड़ना या खींचना, दांत पीसना या अपनी त्वचा को बार-बार छूना शामिल है। आश्चर्य की बात यह है कि ऐसा करने वाला इसे महसूस नहीं कर पाता है जबकि सामने से देखने वाला इसे महसूस कर लेता है। आदत पड़ जाने पर आदमी काम करते हुए, बुक पढ़ते, फोन पर बातें करते और टीवी देखने जैसे कामों को करते हुए भी लोग नाखून चबाते देखे जाते हैं।

कई बार लोग नाखून चबाने के साथ-साथ क्यूटिकल्स और नाखून के इर्द-गिर्द की त्वचा को भी काटते हैं। जहां एक ओर यह देखने में बुरा लगता है वहीं स्वास्थ्य की दषटि से भी यह नुकसान देह होता है।

होम्योपैथिक उपचार:
दवाएँ - होम्योपैथी दवाएँ जो लक्षणागत नाखून से जुड़ी समस्याओं में काम करती हैं वे इस प्रकार हैं। मरक्यूरस सौल, नेट्रम सल्फ, मेडोराइनम, लाईकोयोडियम, सल्फर इत्यादि ।

उपरोक्त दवाये केवल उदहारण के तौर पर दी गयी है| कृपया किसी भी दवा का सेवन बिना परामर्श के ना करे, क्योकि होम्योपैथी में सभी व्यक्तियों की शारीरिक और मानसिक लक्षण के आधार पर अलग -अलग दवा होती है !

Tuesday, April 13, 2010

A Report on a free Homoeopathic Camp

Dear Friends,


April 10th 2010, proved to be another mile-stone for Dr. Bidani's Centre for Homoeopathy after having held its free homoeopathic camp, at Hisar, in connection with the 255th Birthday Celebrations of Dr. Samuel Hahnemann, father of Homoeopathy & beginning of World Homoeopathic Awareness Week 2010.

 

The camp was conducted to create awareness among the public about disease and disease prevention. Physicians created awareness about the Scope of Homoeopathy in addressing chronic & serious disorders. They emphasized that Homoeopathic medicines are quite effective & provide good results even in so called incurable diseases. Keeping in mind "Service to Humanity is service to Divinity", free medicines were also distributed for one week to all the patients.


It was indeed a very gratifying day for the entire Homoeopathy faculty. It gave us an opportunity to help and serve people in need. The camp was attended by patients of different age groups who had come from far-off and remote areas. A total of 109 patients benefited from this camp. The majority of patients had Dermatological disorders like eczema, psoriasis, atopic dermatitis & acne vulgaris. There were so many anaemic children to whom a proper iron-rich diet was advised. One very interesting case of Obsessive Compulsive Disorder was given Arsenic Album 10M - 1 single dose, and I am very much eager to see the follow-up of this case.


With Warm Regards,

Dr.Navneet Bidani

Tuesday, March 30, 2010

लाइलाज नहीं माइग्रेन...



सिर जो तेरा चकराए...जी हां आजकल यह आम समस्या बन गयी है। बिजी लाइफ स्टाइल की वजह से आजकल के युवा कम उम्र में ही तमाम बीमारियों के शिकार होने लगे हैं। माइग्रेन भी इन्हीं मे से एक है, सिरदर्द का एक गंभीर रूप जो बार-बार या लगातार होता है, उसे माइग्रेन कहते हैं। माइग्रेन को आम बोलचाल की भाषा में अधकपारी भी कहते हैं। यह नाम इसे इसलिए मिला क्योंकि आम तौर पर इसका शिकार होने पर सिर के आधे हिस्से में दर्द रहता है, जबकि आधा दर्द से मुक्त होता है। वैसे फ्रेंच शब्द माइग्रेन का अर्थ भी यही है। जिस हिस्से में दर्द होता है, उसकी भयावह चुभन भरी पीडा से आदमी ऐसा त्रस्त होता है कि सिर क्या बाकी शरीर का होना भी भूल जाता है। यह कोई छोटा-मोटा दर्द नहीं है। यह आपके सारे दिन की गतिविधियों को ठप्प कर देने वाला दर्द है। माइग्रेन मूल रूप से तो न्यूरोलॉजिकल समस्या है। इसमें रह-रह कर सिर में एक तरफ बहुत ही चुभन भरा दर्द होता है। यह कुछ घंटों से लेकर तीन दिन तक बना रहता है। इसमें सिरदर्द के साथ-साथ जी मिचलाने, उल्टी जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। इसके अलावा फोटोफोबिया यानी प्रकाश से परेशानी और फोनोफोबिया यानी शोर से मुश्किल भी आम बात है। माइग्रेन से परेशान एक तिहाई लोगों को इसकी जद में आने का एहसास पहले से ही हो जाता है।

माइग्रेन की पहचान
• क्या आपको सिर के एक हिस्से में बुरी तरह धुन देने वाले मुक्कों का एहसास होता है, और लगता है कि सिर अभी फट जाएगा?
• क्या उस वक्त आपके लिए अत्यंत साधारण काम करना भी मुश्किल हो जाता है?
• क्या आपको यह एहसास होता है कि आप किसी अंधेरी कोठरी में पड़े हैं, और दर्द कम होने पर ही इस अनुभव से निजात मिलती है?
अगर इनमें से किसी भी प्रश्न का उत्तर हां में है, तो इस बात की पूरी संभावना है कि आपको माइग्रेन हुआ है। इसलिए फौरन डॉक्टर के पास जाकर इसकी पुष्टि कर लेनी चाहिए।
ज्यादातर लोगों को माइग्रेन का पता तब चलता है, जब वे कई साल तक इस तकलीफ को ङोलने के बाद इसके लक्षणों से वाकिफ हो जाते हैं।

माइग्रेन के कारण
माइग्रेन होने के कई कारण हो सकते हैं। काम की थकान, तनाव, समय पर भोजन न करना, धूम्रपान, तेज गंध वाले परफ्यूम से, बहुत ज्यादा या कम नींद लेना इसका कारण हो सकते हैं। इसके अलावा मौसम का बदलाव, हार्मोनल परिवर्तन, सिर पर चोट लगना, आंखों पर स्ट्रेस पड़ना या तेज रोशनी, एक्सरसाइज न करने से भी माइग्रेन की परेशानी उत्पन्न हो सकती है। कई लोगों को तेज धूप, गर्मी या ठंड से भी परेशानी होती है। जिन लोगों को हाई या लो ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर और तनाव जैसी समस्याएं होती हैं उनके माइग्रेन से ग्रस्त होने की आशंका बढ जाती है। कई बार तो केवल इन्हीं कारणों से माइग्रेन हो जाता है।
यही नहीं, अगर आपको किसी ऐसे व्यक्ति से बार-बार मिलना पडे जिसे आप न पसंद करते हों, तो यह भी सिरदर्द का कारण हो सकता है। ऐसा काम भी माइग्रेन का कारण हो सकता है जिसे आप पसंद न करते हों। ज्यादातर लोगों के माइग्रेन से ग्रस्त होने के कारण भावनात्मक होते हैं। भावनाओं को दबाने से भी माइग्रेन हो सकता है। इसलिए भावनाओं को दबाने के बजाय अपने विश्वस्त लोगों से उनकी साझेदारी करें।
बदलती लाइफ स्टाइल के चलते बच्चे भी माइग्रेन का शिकार हो जाते हैं। पढ़ाई का तनाव इसे और बढ़ा देता है। किशोरावस्था से पहले लड़के और लड़कियां दोनों में इसकी संभावना एक समान रहती है। लेकिन बाद में महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा खतरा ज्यादा बढ़ जाता है और माना जाता है कि 15 फीसदी महिलाओं और छह फीसदी पुरुषों को माइग्रेन होता है। इनमें से 60 फीसदी को आधे सिर में और 40 फीसदी को पूरे सिर में माइग्रेन का दर्द होता है।

सिर दर्द का मतलब हमेशा माइग्रेन नहीं होता। लेकिन अगर आपको बहुत तेज दर्द हो रहा है और ऐसा दर्द पहले कभी न हुआ हो, हाथ पैरों में दर्द और कमजोरी महसूस हो रही हो तो तुरंत चिकित्सक की सलाह पर जांच कराएं और समय पर इलाज लें।

माइग्रेन का इलाज
विशेषज्ञों के अनुसार माइग्रेन से निपटने में इस बात का रोल काफी अहम होता है कि आप इसके लिए कितने तैयार हैं। सभी मरीजों में माइग्रेन के पूर्व संकेत (ट्रिगर्स) एक से नहीं होते, इसलिए उनके लिए डायरी में अपनी अनुभूतियां दर्ज करना उपयोगी हो सकता है। इसके बाद आप दवा की सहायता से इन ट्रिगर्स से समय रहते बचकर, माइग्रेन को टाल भी सकते हैं।

संतुलित आहार लें
माइग्रेन में चिकित्सीय इलाज के अलावा संतुलित आहार बहुत जरूरी है। अगर शारीरिक कारणों से माइग्रेन हो तो पहले तो यह समझना चाहिए कि किन तत्वों की कमी या अधिकता के कारण ऐसा हो रहा है। उसके ही अनुसार अपने आहार को संतुलित कर लेना चाहिए। अगर किसी को खाद्य पदार्थो से एलर्जी के कारण माइग्रेन हो तो उसे उन फलों-सब्जियों और अनाज से बचना चाहिए, जिनसे एलर्जी हो सकती है। ऐसा पौष्टिक आहार लें जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाई जा सके। रोज योगाभ्यास करें और विचारों को रचनात्मक बनाए रखें। इसके लिए किसी-किसी दिन उपवास करें। उपवास के दौरान पानी में नीबू का रस मिलाकर छह-सात बार लें। इससे जो ऊर्जा भोजन को पचाने में खर्च होती है, वह बचेगी और उसका उपयोग शरीर अपेक्षाकृत दूसरे महत्वपूर्ण कार्यो पर करेगा। रक्त और लसिका ग्रंथियों को भी थोडा आराम मिलता है। आहार इस तरह तय करें कि पाचन-प्रणाली पर कम से कम बोझ पडे।

चेतावनी : कई बार सिरदर्द दूसरी खतरनाक और जानलेवा बीमारियों का भी संकेत होता है। इसलिए बार-बार होने वाले तेज सिरदर्द, गर्दन दर्द, अकड़न, जी मिचलाने या आंखों के आगे अंधेरा छा जाने को बिलकुल भी नजर अंदाज न करें और फौरन डॉक्टर को दिखाएं।

होम्योपैथिक चिकित्सा
कई बार माइग्रेन के रोगी दवाइयां लेना शुरू तो करते हैं पर थोड़ा आराम मिलते ही बंद कर देते हैं। इससे फिर से तकलीफ बढ़ने का खतरा बना रहता है। माइग्रेन के रोगियों को तब तक दवाइयां लेनी चाहिए जब तक पूरा कोर्स न ख़त्म हो जाए। कई लोगों के साथ ऐसा होता है कि दवा लेने पर माइग्रेन कुछ दिनों के लिए दब तो जाता है पर वह दोबारा उभर जाता है। उनके साथ ऐसा बार-बार होता है।
हालांकि माइग्रेन लाइलाज बीमारी नहीं है, लेकिन अगर यह बढ़ जाए तो काफी परेशान कर सकती है। इसलिए जरूरी है कि कुछ बातों का ध्यान रखकर इस बीमारी से छुटकारा पाया जाए।

औषधियाँ:
होम्योपैथिक दवाएँ जो लक्षणागत माइग्रेन में काम करती हैं वे इस प्रकार हैं।
बेलाडोना, जेलसिमियम, लैकेसिस, स्पाइजिलिया, इग्नेसिया, नेट्रम म्यूर, ओनस्मोडियम, लाईकोपोडियम, नेट्रम सल्फ, सिलिसिया, सल्फर एवं एसिड सल्फर।

उपरोक्त दवाये केवल उदहारण के तौर पर दी गयी है।कृपया किसी भी दवा का सेवन बिना परामर्श के ना करे, क्योकि होम्योपैथी में सभी व्यक्तियों की शारीरिक और मानसिक लक्षण के आधार पर अलग -अलग दवा होती है !

Monday, March 29, 2010

होम्योपैथी से गठिया का उपचार


बहुत से लोगों को जैसे ही मालूम होता है कि उन्हें गठिया है, तो वे जीने की उमंग ही खो बैठते हैं। लेकिन जिस तरह हर मुश्किल का सामना किया जा सकता है, उस तरह गठिया का भी मुकाबला करके सेहत को बेहतर बनाया जा सकता है और दर्द को कम किया जा सकता है। यहाँ प्रस्तुत हैं ऐसा करने के कुछ आसान तरीके-

जोड़ों का दर्द साधारणतया दो प्रकार के होते हैं। छोटे जोड़ों के दर्द को वात यानी रिक्हिटज्म कहते हैं। वात रोग (गाउट) में जोड़ों की गाँठें सूज जाती हैं, बुखार भी आ जाता है। बेहद दर्द एवं बेचैनी रहती है।

कारण: अधिक माँस खाना, ओस या सर्दी लगना, देर तक भीगना, सीसा धातुओं से काम करने वाले को लैड प्वाइजनिंग होना, खटाई और ठंडी चीजों का सेवन करना, अत्यधिक मदिरा पान एवं वंशानुगत (हेरिडिटी ) दोष।

लक्षण: - रोग के आरंभ में पाचन क्रिया का मंद पड़ना। पेट फूलना (अफारा) एवं अम्ल का रहना (एसिडिटी), कंस्टिपेशन रहना। क्रोनिक (पुराने) रोग होने पर पेशाब गहरा लाल एवं कम मात्रा में होना।


होम्योपैथिक उपचार:
* गठिया कई किस्म का होता है और हरेक का अलग-अलग तरह से उपचार होता है। सही डायग्नोसिस से ही सही उपचार हो सकता है।
*सही डायग्नोसिस जल्द हो जाए तो अच्छा। जल्द उपचार से फायदा यह होता है कि नुकसान और दर्द कम होता है। उपचार में दवाइयाँ, वजन प्रबंधन, कसरत, गर्म या ठंडे का प्रयोग और जोड़ों को अतिरिक्त नुकसान से बचाने के तरीके शामिल होते हैं।
*जोड़ों पर दबाव से बचें। ऐसे यंत्र हैं जिससे रोजमर्रा का काम आसान हो जाता है। जितना वजन बताया गया है, उतना ही बरकरार रखें। ऐसा करने से कूल्हों व घुटनों पर नुकसान देने वाला दबाव कम पड़ता है।
*वर्कआउट करें। कसरत करने से दर्द कम हो जाता है, मूवमेंट में वृद्धि होती है, थकान कम होती है और आप पूरी तरह स्वस्थ रहते हैं। मजबूती प्रदान करने वाली कई कसरतें हैं गठिया के लिए। अपने डॉक्टर या फिटनेस विशेषज्ञ से उसके बारे में मालूम कर लें।
*स्ट्रैचिंग एक्सरसाइज से जोड़ व मांसपेशियाँ लचीले रहते हैं। इससे तनाव कम होता है और रोजाना की गतिविधियाँ जारी रखने में मदद मिलती है।
*गठिया में ज्यादातर लोगों के लिए सबसे अच्छी कसरत चहलकदमी है। इससे कैलोरी बर्न हो जाती है। मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं और हड्डियों में घनत्व बढ़ जाता है।
*पानी में की जाने वाली कसरतों से भी ताकत आती है, गति में वृद्धि होती है और जोड़ों में टूटफूट भी कम होती है।
*हाल के शोधों से मालूम हुआ है कि विटामिन सी व अन्य एंटीऑक्सीडेंट ऑस्टियो-आर्थराइटिस के खतरे को कम करते हैं और उसे बढ़ने से भी रोकते हैं। इसलिए संतरा खाओ या संतरे का जूस पियो। ध्यान रहे कि संतरा व अन्य सिटरस फल फोलिक एसिड का अच्छा स्रोत हैं।
*आपके आहार में पर्याप्त कैल्शियम होना चाहिए। इससे हड्डियाँ कमजोर पड़ने का खतरा नहीं रहता। अगर साधारण दूध नहीं पीना चाहते तो दही, चीज और आइसक्रीम खाएँ। पावडर दूध पुडिंग, शेक आदि में मिला लें। मछली, विशेषकर सलमोन (काँटे सहित) भी कैल्शियम का अच्छा स्रोत है।
*नाश्ता अच्छा करें। फल, ओटमील खाएँ और पानी पीएँ। जहाँ तक मुमकिन हो कैफीन से बचें।
*वे जूते न पहने जो आपका पंजा दबाते हों और आपकी एड़ी पर जोर डालते हों। पैडेड जूता होना चाहिए और जूते में पंजा भी खुला-खुला रहना चाहिए।
* सोते समय गर्म पानी से नहाना मांसपेशियों को रिलैक्स करता है और जोड़ों के दर्द को आराम पहुँचाता है। साथ ही इससे नींद भी अच्छी आती है।
* अपने डॉक्टर को यह अवश्य बता दें कि गठिया के अलावा आप किसी और परेशानी के लिए और कौन सी दवाई लेते हैं, चाहे वह न्यूट्रीशनल सप्लीमेंट ही क्यों न हो।
* काम के दौरान कई-कई बार ब्रेक लेकर सख्त जोड़ों और सूजी मांसपेशियों को स्ट्रैच करें।


होम्योपैथिक औषधियाँ: - लक्षणानुसार काल्मिया लैटविया, कैक्टस ग्रेड़ीफ्लोरा, डल्कामारा, लाईकोयोडियम, काली कार्ब, मैगफास, स्टेलेरिया मिडि़या, फेरम-मिक्रीरीकम इत्यादि अत्यंत कारगर दवाएँ हैं।

Tuesday, February 2, 2010

सावधान रहें जाती सर्दियों से...


फरवरी माह में दिन बड़े रहस्यमयी हो जाते हैं। सर्दी और गर्मी का जबर्दस्त खेल चलता है इस महीने में। आप सोचते हैं गर्मी आ गई और अचानक मौसम में ठंडक आ जाती है। आपने अगर गर्म कपड़े साथ रखें हैं तो धूप के तीखे तेवर से बेहाल हो जाते हैं। लेकिन सही मायनों में ऋतुओं के इस संक्रमण काल में ही सावधानी की आवश्यकता होती है। जाती हुई सर्दी में नाक बहना, लगातार छींके आना, गले में खराश, सीने में जकड़न जैसी स्वास्थ्य समस्याएं आम हैं। इसलिए इस मौसम में आपको अपनी सेहत को लेकर थोड़ा सा सावधान रहने की जरूरत है। इस मौसम में बुखार और संक्रमण काफी तेजी से फैलता है, इसलिए बेहतर है कि अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए आप पहले से ही एहतियात बरतें। संक्रमण से लड़ने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि आप पौष्टिक खाना खाकर अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाएं। साथ ही भरपूर नींद लें और व्यायाम करें। अपने खाने में पपीता, कद्दू, गाजर, टमाटर, पालक, अमरूद जैसी मौसमी सब्जियों और फलों को जरूर शामिल करें। इनसे आपके शरीर का तापमान भी मौसम के मुताबिक गर्म रहेगा। इस मौसम में बीमारियों से बचाव के लिए हर उम्र के लोगों को खास एहतियात बरतने की जरूरत होती है। इस मौसम में छोटे बच्चों को बाहर की ठंडी हवा के बचाकर रखना चाहिए। बच्चों को नहलाने के बाद उन्हें तुरंत गर्म कपड़े पहना दें, क्योंकि अगर एक बार उनके शरीर में ठंड बैठ गई, तो उन्हें ठीक होने में वक्त लग सकता है। विशेषकर अस्थमा के मरीज को यह मौसम बड़ा सताता है, अस्थमा के मरीजों को घर और बाहर मौसम के अचानक बदलावों से सावधान रहना चाहिए। खास तौर पर सुबह के वक्त गर्म बिस्तर से उठकर एकदम खुली हवा में न जाएं, बल्कि थोड़ा इंतजार करें।

बुजुर्ग कहते हैं सबसे मजाक करो, पर सर्दी से नहीं। सर्दी सबसे ज्यादा सिर, कान और पैरों के जरिए शरीर में प्रवेश करती है। इसलिए अपने शरीर के इन हिस्सों को ठंडी हवाओं से बचाकर रखें। शरीर के रक्त संचार को सही स्तर पर रखने के लिए हर रोज व्यायाम करना न भूलें। अक्सर लोग सर्दी लगने पर डॉक्टर की सलाह के बिना ऐलोपैथिक दवाएँ लेते हैं। ऐलोपैथिक दवाएँ शरीर के दर्द व बुखार को कम तो कर देती हैं, लेकिन सर्दी-जुकाम पर इनका खास असर नहीं होता। सर्दी लगने पर प्राकृतिक या होम्योपैथिक इलाज, चिकन सूप, सौंठयुक्त चाय, अदरक-लहसुन, प्राकृतिक विटामिन और जड़ी-बूटियों के सेवन से बहुत आराम मिलता है।

इसी प्रकार कुछ उपाय हैं जिनके उपयोग से आप सर्दी से बच सकते हैं।

औषधियों वाली चाय
औषधी वाली चाय गर्म होती है। इसके सेवन से गले की खिचखिच में आराम मिलता है। दालचीनी, कालीमिर्च, जायफल, लौंग, अदरक या तुलसी की पत्ती डालकर बनाई गई चाय सर्दी-जुकाम में लाभकारी होती है।

चिकन सूप
जिन लोगों को अस्थमा की शिकायत होती है उनके लिए सर्दी में चिकन सूप बहुत लाभदायक है। इसमें एमिनो एसिड होता है, जिससे सर्दी के दौरान अस्थमा में आराम मिलता है। इसकी भाप लेने से भी आराम मिलता है।

विटामिन सी
सर्दी लगने पर विटामिन सी भी गुणकारी है। सौ मिलीग्राम की खुराक रोज लेने से सर्दी में आराम मिलता है। अधिक मात्रा में लेने पर हानि भी हो सकती है और पाचन शक्ति कमजोर हो सकती है। प्राकृतिक रूप से विटामिन सी आँवले, नीबू, संतरा आदि फलों में पाया जाता है।

होम्योपैथिक उपचार:
दवाएँ - होम्योपैथिक दवाएँ जो लक्षणागत इन्फ्लुएंजा, कोल्ड और फ्लू में काम करती हैं वे इस प्रकार हैं।
एकोनाईट 6 , 30, जेलसिमियम- 6, 30, इयुपेटोरियल पर्फ़ 6, 30, आर्सेनिक आयोड , एलियम सिपा, काली बाईक्रोम, मरक्यूरस सौल, नेट्रम सल्फ, इन्फ्लून्जियम-30 , 200 एवं आर्सेनिक अल्ब।

Tuesday, January 12, 2010

A Letter to my Newborn Son.





Dear Son,

I know it must seem strange of me to write you a letter when you’re only 6 days old but I hope you’ll allow me to celebrate God’s gift to us in you. First off, I’m your father. As such, I bear a tremendous responsibility and I hope I don’t let you down.

I love to hold you in my arms and I find myself watching you as you’re sleeping and I feel myself welling up with such love for you that it’s like my heart is going to burst. I can be a hard man sometimes – just ask your mother – but when I look at your little face, so innocent, pure and unspoiled, I just melt. It’s just unbelievable to me that I could produce something so beautiful.

Let me tell you about our family। Your mother is the most amazing person I’ve ever had the privilege to know and as you grow I hope you will realize how lucky you are to have her for your mother. Your Grand-father is a gem, he is such a noble person that I wish you should gain his character as well. No need to say anything about your Grand-mother, within these 6 days you must have noticed how hard-working she is, without caring herself in spite of her backache & joint problems she is serving our whole family religiously. You’ll cherish your grandparents hand over your head & it’s my sincere request that do give maximum regards that they really deserve. Both your Bua love you more than anything. Anyone can see the spark in their eyes while holding you.
Earlier tonight I was holding you and you were sleeping so quietly in my arms and I just got lost looking at you, all your little movements and sounds. A thought occurred to me as I was watching you. I started thinking about all the babies born in the world, about how they are brand new to this world. Each one is born into different circumstances. And then I started thinking about how the circumstances that you have been born into are controlled by me. And it made me realizes that the role I will play in your life is paramount in how you will develop and grow as a person in this world. As I said earlier, I am your father; I am perhaps the most influential person you will know in your life. I don’t take this responsibility lightly.

I promise that I will do everything I can to prepare you for what you will face in your life। I promise that I will never desert you, that I will always be here for you, no matter what hardships you face. I may not always give you what you want but I will always do my best to give you what you need. I may not always be the best father but it won’t be for lack of trying. Above all else son, I promise that I will love you and do my best to make sure that you have everything you need. I finally realized that my life is no longer my own; it belongs to you and our family now. You are my treasure. Never forget that.

One more thing I would like to share dear son that the world that you have born into is a hard one. You have been born into a world at war, where people kill each other because of something as trivial as what religion they practice or don’t practice or what part of the world they are from. When I look at your little face, I sometimes think about how lucky you are that you have not yet been tainted by this world and how I wish you could forever remain so innocent. I pray that you will not become involved in such terrible things as are occurring right now; that the world and its inhabitants will have evolved beyond such madness by the time you are old enough to understand. I pray that you will never learn such hatred as to judge a fellow human being by the color of his skin, by his station in life, where he was born, or by his ethnicity. Please son, choose the path of understanding rather than violence whenever possible. Understand that while violence is sometimes necessary and inevitable, it is not the desired path and should be used only as a last result.
It’s your life son। Whatever you do with it, I pray that you will never settle for anything less than what you deserve; greatness। I love you and your mother more than you will ever know।
Love,
Dad