Thursday, December 1, 2011

बच्चों में बढ़ता मोटापा चिंताजनक...

दुनियाभर में बच्चों में मोटापा काफी बढ़ रहा है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक इंग्लैंड और अमरीका में 20 फीसदी बच्चे मोटापे का शिकार हैं और यह संख्या पिछले बीस साल में तीन गुना बढ़ी है। भारत में भी खासकर महानगरों में मोटे बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है। यहां करीब 10 फीसदी बच्चे मोटापे के शिकार हैं। ऐसे में ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, दिल से जुड़ी बीमारियां जाने अनजाने इन बच्चों को अपनी चपेट में लेती जा रही है। खाने-पीने से लेकर खेलने-कूदने तक का वक्त बच्चों के लिए निर्धारित होना जरूरी है। अक्, रेड मीट, जंक फूड वगैरह। येलो फूड सीमित मात्रा में खाएं जैसे चावल, दाल, रोटी, राजमा इनमें फाइबर भी होता है और फैट भी कम होता है। ग्रीन लाइट फूड खूब खाएं। इनमें फैट नहीं होता साथ ही काफी मात्रा में विटामिंस और मिनरल्स होते हैं। सभी हरी सब्जियां और फल इसमें आते हैं। बच्चों को मोटापे से बचाने के लिए यह जरूरी है कि वह जितना खाएं उतना खर्च भी करें। आजकल बच्चे स्कूल भी पैदल या साइकिल से नहीं जाते। ज्यथ। टर व्यायाम भी नहीं करते और टीवी के सामने बैठे रहते हैं और इंडोर गेम खेलना पसंद करते हैं। इससे मोटापा बढ़ता है। मोटापे की वजह से बच्चों को कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं। हालांकि कई ऐसी बीमारियां भी हैं, जिसकी वजह से बच्चों में मोटापा बढ़ता है। इनका इलाज डॉक्टरी सलाह से ही संभव है। आमतौर पर जो मोटापा बच्चों में दिखता है इनका इलाज खानपान में सुधार और शारीरिक व्यायाम से ही कम हो सकता है। आमतौर पर यह देखा जाता है कि बच्चे जितनी कैलोरी लेते हैं उतना खर्च नहीं करते हैं। इसके लिए अगर पैरेंट्स कुछ बातों का ध्यान रखें तो बच्चे को मोटापे से बचाया जा दात है। शारीरिक व्यायाम जैसे जॉगिंग, दौड़ना, खेलना बच्चों के लिए बहुत जरूरी है। ऐसा देखा जाता है कि मोटापे के शिकार बच्चे स्वभाव से आलसी होते हैं इसलिए उन्हें ज्यादा से ज्यादा शारीरिक श्रम करने के लिए प्रेरित करें। घर के छोटे-छोटे काम में उससे सहयोग लें। साप्ताहिक छुट्टी पर बच्चों को जू, पार्क, म्यूजियम लें जाएं ताकि पैदल घूमना अच्छा लगे। इस बात पर पूरी नजर रखें कि बच्चा क्या और कितनी मात्रा में खा रहा है। उसे सीमित मात्रा में संतुलित और पौष्टिक आहार दें। पिज्जा, बर्गर, आइसक्रीम, मिठाई और तली हुई चीजों से दूर रखें। अक्सर परिवार के बुजुर्ग सकता है। शारीरिक व्यायाम जैसे जॉगिंग, दौड़ना, खेलना बच्चों के लिए बहुत जरूरी है। ऐसा देखा जाता है कि मोटापे के शिकार बच्चे स्वभाव से आलसी होते हैं इसलिए उन्हें ज्यादा से ज्यादा शारीरिक श्रम करने के लिए प्रेरित करें। घर के छोटे-छोटे काम में उससे सहयोग लें। साप्ताहिक छुट्टी पर बच्चों को जू, पार्क, म्यूजियम लें जाएं ताकि पैदल घूमना अच्छा लगे। इस बात पर पूरी नजर रखें कि बच्चा क्या और कितनी मात्रा में खा रहा है। उसे सीमित मात्रा में संतुलित और पौष्टिक आहार दें। पिज्जा, बर्गर, आइसक्रीम, मिठाई और तली हुई चीजों से दूर रखें। अक्सर परिवार के बुजुर्ग बच्चों को जबरदस्ती ज्यादा खिलाने की कोशिश में जुटे रहते हैं। इसलिए आप बुजुर्गों को प्यार से समझाएं और उन्हें मोटापे के खतरे के बारे में बताएं। बच्चे की इस समस्या को दूर करने में परिवार और माता-पिता का सहयोग बहुत जरूरी है। अगर बच्चे को मोटापे की समस्या हो तो उसे घर की बनी चीजें खाने के लिए प्रेरित करें और खुद भी लंच या डिनर के लिए बहुत ज्यादा बाहर न जाएं। बच्चे के लिए टीवी देखने का समय निर्धारित करें। उसे ज्यादा देर तक टीवी देखने और कंप्यूटर गेम्स न खेलने दें। भोजन में कम तेल, घी और शक्कर का उपयोग करें। खाने में चावल, आलू और मीठी चीजों का प्रयोग कम करें। संतरा, नाशपाती, तरबूज, पपीता और गाजर का सेवन ऐसे बच्चों की सेहत के लिए फायदेमंद साबित होता है। हरी सब्जियों और अंकुरित दालों का प्रयोग करें। ऐसे बच्चों का मजाक न उड़ाएं। उन्हों भावनात्मक सहयोग की आवश्यकता है। कई बार मोटोपा जेनेटिक भी होता है। अक्सर परिवार में दो तरह का मोटापा पाया जाता है। पहला जीन में ही मोटापा का होना और दूसरा पारिवारिक खान-पान का तरीका। कई घरों में तली-भुनी चीजें, पिज्जा, बर्गर बड़े शान से खाया जाता है। ऐसे परिवार के बच्चे भी मोटे हो जाते हैं। मोटापा कई बीमारियों की जड़ है और घर है। इस वजह से एंडोक्राइनल दिक्ततें जैसे ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, पॉलिसिस्टिक ओवरी, हाइपोगोनैडिस्म होता है। मोटापे की वजह से कार्डियोवैस्कुलर डिजीज जैसे हाइपरटेंशन, हार्ट डिजीज, स्ट्रोक, गैस्ट्रो इंटेस्टाइनल-गाल स्टोन, कब्ज, लीवर पर फैट्स जमने के साथ-साथ सांस संबंधी दिक्कतें जैसे खर्राटे लेना, स्लीप एपेनिया, अस्थमा आदि बीमारी हो सकती है। मोटापे का बच्चों पर मनोवैज्ञानिक असर भी पड़ता है। दोस्तों के बीच उसे कई बार हंसी का पात्र बनना पड़ता है। पढ़ाई में अच्छा होने के बावजूद उसका आत्मविश्वास कम हो जाता है। चिंता, डिप्रेशन, इटिंग डिसऑर्डर और अकेलापन बच्चों में घर कर जाता है। मोटापे की होम्योपैथिक चिकित्सा सामान्यतौर पर ऐसे बच्चों को दवाइयों की जरूरत नहीं होती और खानपान में उचित नियंत्रण रख कर मोटापे को कंट्रोल किया जा सकता है। कई लोग डायटिंग शुरू कर भोजन कम कर देते हैं। इससे उनका वजन तो कम नहीं होता, उल्टे वे पोषणरहित भोजन के बिना बीमार हो जाते हैं। सप्ताह में एक या दो दिन उपवास करें, उस दिन फलाहार लें। भोजन की मात्रा कम जरूर करें, जब वजन घटने लगे, तब व्यायाम शुरू करें तो फायदा हो सकता है। जब सब कुछ करने पर भी वजन कम ना हो तो ऎसी दवाइयां लेनी चाहिये जिनका कोई दुस्प्रभाव ना हो। होम्योपैथी सहज, सस्ती और संपूर्ण चिकित्सा पद्धति है। ये औषधियाँ शरीर के किसी एक अंग या भाग पर कार्य नहीं करतीं, बल्कि रोगी के संपूर्ण लक्षणों की चिकित्सा करती है। होम्योपैथिक दवाएँ जो वजन कम करने में सहायक हैं वे इस प्रकार हैं: कल्केरिया कार्ब, फ़ुक्स वर्सिकोलर, थायरोडिनम, केलोट्रोपिस, फायटोलाका बेरी, लायकोपोडियम, आदि। आजकल तो कुछः दवा र्निमाता कंपनियों ने पेटेंट प्रोडक्ट भी बना रखे हें जो भी फायदा करते हें जेसे कि बी-ट्रिम, सलाइमेक्स, फ़िगर-ट्रिम आदि। उपरोक्त दवाये केवल उदहारण के तौर पर दी गयी है। कृपया किसी भी दवा का सेवन बिना परामर्श के ना करें।

Tuesday, June 28, 2011

आंखों का रखें खास ख्याल

गर्मी में तेज धूप से और बदलते मौसमों में आंखों पर काफी असर पड़ता है। आज के भौतिक युग में एयर कंडीशनर तेज धूप और खतरनाक किरणों से तो हमें जरूर बचाता है लेकिन आंखों के चारों ओर होने वाली ड्राइनेस से नहीं।
गर्मी में चलने वाली हवाएं भी हमारी आंखों के लिए बेहद नुकसानदेह हो सकती हैं। साथ ही हमारे लाइफस्टाइल में कंप्यूटर और टीवी का इस्तेमाल भी आंखों को कमजोर कर रहा है। ऐसे में ईश्वर द्वारा मिले इस अनमोल तोहफे का खास ख्याल रखना चाहिए।
गर्मी में आंखों की एक्सरसाइज और खानपान का ध्यान रखना चाहिए।
आंखों की देखभाल के साथ उन्हें प्रोटीन, विटामिन की सबसे ज्यादा जरूरत होती है और साथ ही एक्सरसाइज की भी। गर्मी में जूस और फल से सेहत के साथ आंखों को भी काफी आराम पहुंचता है।
आंखों को सबसे ज्यादा फायदा विटामिन ‘ए’ से होता है। दूध, अंडे, हरी सब्जियां और फल विटामिन ‘ए’ से भरपूर होते हैं।
फलों में अनानास ऐसा फल है जिससे आंखों को स्वस्थ रखने में काफी फायदा होता है। अनानास हडि्डयों की मजबूती के साथ कोशिकाओं के निर्माण में काफी सहायक होता है। एक दिन में अगर एक कप अनानास का जूस पिया जाए तो यह शरीर की मांग पर 73 फीसदी एनर्जी देता है। इसके अलावा सेब और स्ट्रॉबेरी भी काफी फायदेमंद है।
इसके अलावा गर्मी और बरसात के मौसम में डॉक्टर की सलाह से यूफ्रेशिया या ममिरा आई- ड्राप्स दिन में दो-तीन बार डालते रहें। आई ड्रॉप भी डालना आंखों के लिए फायदेमंद होता है। इससे भी आंखों की कोशिकाओं को आराम मिलता है।
सादे पानी से आंखें धुलना मुफ्त का इलाज है। गर्मी में हमें अपनी आंखें लगातार सादे और ठंडे पानी से धोते रहना चाहिए। इससे आंखों की हीटवेव से बचाव तो होता ही है गंदगी भी आंखों से निकलती रहती है।
इसके अलावा लगातार आंखों पर जोर नहीं डालना चाहिए। इसके लिए आंखों की मसल्स की एक्सरसाइज भी करनी चाहिए। पुतलियों को खोलना बंद करना चाहिए और पुतलियों को गोल-गोल घुमाना चाहिए। धूप में निकलते समय बिना किसी हिचक के बड़े ग्लास वाला धूपी चश्मा भी प्रयोग करना चाहिए।
मौसम का पारा जैसे-जैसे चढ़ता है वैसे-वैसे हमें अपनी आंखों के प्रति और सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि आंखों को सुकून मिलने का मतलब है पूरे शरीर को आराम।

कम भूख लगना एक बीमारी…

वज़न कम करने के लिए कम भोजन करना या मोटे होने के डर से भूख का कम लगना भी एक बीमारी है। इस बीमारी को ऐनेरोक्सिया नर्वोसा कहा जाता है।जिन लोगों को यह बीमारी होती है वे लोग कम वज़न होने के बावजूद भी मोटे होने की भावना से ग्रसित होते हैं।

ऐनेरोक्सिया की बीमारी दो प्रकार की होती है, पहली वो जिसमें लोग अपना वज़न कम करने के लिए कम खाते हैं और दूसरी वह जिसमें लोग बिलकुल खाना छोड़ देते हैं।
इस बीमारी का कोई प्रमुख कारण नहीं है लेकिन यह बीमारी किसी शारीरिक, मानसिक या सामाजिक परेशानी की वजह से उत्पन्न हो सकती है। कुछ लोगों में यह बीमारी अनुवांशिक होती है। इस बीमारी से ग्रसित लोगों में दिमाग में पाया जाने वाला कोर्टिसॉल हारमोन की मात्रा ज़्यादा हो जाती है और भावनाओं से संबंधित हारमोन की मात्रा कम हो जाती है। इस बीमारी मे लक्षणों का आसानी से पता लगाया जा सकता है। जिन लोगों को यह बीमारी होती है वे वज़न कम करने के लिए हमेशा कम आहार लेना पसंद करते है।

शारीरिक कारण- इसके शारीरिक कारणों में शामिल हैं-अचानक अधिक वज़न का कम होना, बालों का टूटना, रूखी त्वचा, कमज़ोर नाखून, कम रक्तचाप, थकान, उठने बैठ्ने और खडे होने मे चक्कर आना, काम करने का मन न करना, शरीर मे तापमान की कमी, तव्चा मे पीलापन, दिल मे असामान्य धड्कन, सांस लेने मे तकलीफ, सीने मे दर्द, तलवो व हथेलियों मे ठंडापन और लगातार रहने वाला सिर मे दर्द होता है। यदि इस तरह के लक्षण महसूस हो तो तुरन्त किसी योग्य डाक्टर से परामर्श ले लेना चाहिए।

मानसिक कारण- कमज़ोर याददाश्त, निर्णय लेने में परेशानी, जल्द ही चिढ़ जाना आदि।

आचरण संबंधित कारण- खाने की मात्रा और उससे मिलने वाली ऊर्जा के बारे में गहन चिंतन, खाने में छोटे-छोटे भागों में तोड़कर खाना, भूख ना लगने का बहाना बनाना आदि।

यह बीमारी जितनी मामूली लगती है, उतनी है नहीं। इस बीमारी से ग्रसित 50 प्रतिशत लोग भूख और कमज़ोरी की वजह से अपनी जान खो देते हैं। इसकी वजह से किडनी, लीवर और दिल से जुड़ी बिमारियाँ होने का खतरा भी होता है।
इस बीमारी के इलाज के लिए तुरंत ही चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए। इसके इलाज का प्रमुख भाग वजन बढ़ाने पर ध्यान देना होता है।