Friday, October 22, 2010
लाइलाज नहीं डिप्रेशन
डिप्रेशन यानी हताशा या अवसाद। मेडिकल साइंस में इस रोग को सिंड्रोम माना जाता है। इससे पीड़ित व्यक्ति को अकेलापन खलता है, उदासी घेरे रहती है। यह आज के आधुनिक युग का प्रसाद है हर व्यक्ति के लिए, आज के युग के साधन जहाँ आराम देते हैं ,वही इन साधनों को जुटाने की चाह देती है चिंता। टेंशन और चाह पूरी न हो या कुछ अधूरा सा जीवन लगने लगे तो डिप्रेशन हावी हो जाता है| कई बार मन अवसाद ग्रस्त होता है और अपने आप ठीक हो जाता है| लेकिन कई बार अवसाद मन में कहीं गहरे तक बैठ जाता है। किसी बात को लेकर मन उदास होना या तनाव होना सामान्य बात है। लेकिन, जब यह उदासी और तनाव लंबे समय तक बना रहे, तो आप कहीं डिप्रेशन के शिकार न हो जाएं , इसके लिए पहले इन लक्षणों को देखें :-
लक्षण:
- उन बातों में रूचि कम हो जाना, जिनमें आप पहले आनंद लेते थे।
- बेचैनी अनुभव करना।
- बहुत अधिक सोना अथवा नींद न आना।
- हर समय थकान अथवा शक्तिहीनता का अनुभव करना।
- वजन बढ़ना अथवा घटना।
- भूख कम होना।
- ध्यान केंद्रित करने अथवा याद करने में कठिनाई।
- आशाहीनता, अपराध बोध, बेकार अथवा असहाय होने का अनुभव करना।
- सिर दर्द, पेट दर्द, शौच में समस्या अथवा ऎसा दर्द होना, जिसमें उपचार से लाभ नहीं होता।
यदि आपके ऎसे लक्षण दो सप्ताह से अधिक समय तक रहते हैं अथवा यदि आपके मन में स्वयं को अथवा अन्य लोगों को क्षति पहुंचाने के विचार आते हैं, तो आप अवसाद (डिप्रेशन) से ग्रस्त हो सकते हैं।
कारण:
डिप्रेशन के पीछे जैविक आनुवांशिक और मनोसामाजिक कारण होते हैं। यही नहीं बायोकेमिकल असंतुलन के कारण भी डिप्रेशन घेर सकता है। ऐसे में दिमाग हमेशा नकारात्मक बातें सोचने लगता है। यह भी देखा गया है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में डिप्रेशन की परेशानी ज्यादा और जल्दी घर करती है। मोटे अनुमान के अनुसार 10 पुरुषों में एक जबकि 10 महिलाओं में हर पांच को डिप्रेशन की आशंका रहती है। दरअसल, पुरुष अपना डिप्रेशन स्वीकार करने में संकोच करते हैं जबकि महिलाएं दबाव और शोषण के चलते जल्दी डिप्रेशन में आ जाती हैं। यह समस्या महानगरों में ज्यादा तेजी से पैर पसारती जा रही है। महिलाओं में डिप्रेशन होने की कुछ खास वजहें हैं। इसमें मेजर डिप्रेसिव डिसऑर्डर और बायपोलर मूड डिसऑर्डर खास हैं। मेजर डिप्रेसिव डिसऑर्डर में ध्यान एकाग्र करने में परेशानी, आत्म सम्मान में कमी महसूस होना और ऊर्जा की कमी का अहसास होता है। वहीं, बायपोलर मूड डिसऑर्डर में गुस्सा जल्दी आता है। चिड़चिड़ापन महसूस होता है और दिल इस बात को नहीं मानता कि वह परेशान है। महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले हर उम्र में डिप्रेशन के ज्यादा मामले होने के पीछे बचपन से मानसिक और शारीरिक शोषण, अपनी बात कहने की झिझक, यौवन में प्रवेश, प्रेगनेंसी और रोज के तनाव जैसे कारण अहम हैं। इसके चलते कभी-कभी उनमें आत्महत्या की इच्छा जोर मारने लगती है। इसलिए पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का डिप्रेशन ज्यादा खतरनाक होता है। हालांकि मंदी और कॉम्पटीशन के दौर में डिप्रेशन अब युवाओं को भी अपना शिकार बनाने लगा है इसलिए कोशिश यह रखनी चाहिए कि आप खुशनुमा पलों की तलाश करें और पॉजिटिव सोच रखें। डिप्रेस्ड मूड के दौरान कोई भी शख्स खुद को लाचार और निराश महसूस करता है। दरअसल दिमाग में मौजूद रसायन नर्वस सिस्टम के जरिए शरीर को संदेश भेजने में अहम भूमिका निभाते हैं लेकिन इन रसायनों में असंतुलन पैदा होने से दिमाग में गड़बड़ हो जाती है। डिप्रेशन अक्सर दिमाग के न्यूरोट्रांसमीटर की कमी के कारण भी होता है। न्यूरोट्रांसमीटर वह रसायन होते हैं जो दिमाग और शरीर के दूसरे हिस्से के बीच तालमेल कायम करते हैं खुशी के दौरान न्यूरोट्रांसमीटर्स नर्वस सिस्टम को केमिकल भेजता है। जब यह केमिकल कम हो जाता है तो डिप्रेशन के लक्षण दिखाई पड़ने लगते हैं। इसके अलावा नोरएपिनेफ़्रिन नाम के रसायन से हममें चौकन्नापन और उत्तेजना आती है और इसके असंतुलन से थकान और उदासी आती है और चिड़चिड़ाहट होने लगती है। इसके अलावा सेरोटोनिन हारमोन भी एक वजह है जब इस हारमोन का स्तर खून में कम हो जाता है तो हमारा मूड बिगड़ने लगता है और हार्ट अटैक तक की आशंका हो सकती है। शरीर में मौजूद कुछ और हारमोन के बीच भी जब असंतुलन होता है तो इसका असर हमारे मूड और खुशी पर पड़ता है जिनमें एड्रेलिन और डोपामाइन खास हैं।
बेहतरी के लिए कदम:
बेहतर महसूस करने के लिए पहला कदम किसी ऎसे व्यक्ति से बातचीत करना हो सकता है, जो आपकी सहायता कर सके। वह कोई चिकित्सक अथवा परामर्शदाता (काउंसलर) हो सकता है। आपकी देखभाल में दवाएं तथा काउंसलिंग शामिल हो सकते हैं।
क्या करें:
- स्वास्थ्यप्रद भोजन करें तथा जंक फूड से परहेज करें।
- भरपूर मात्रा में पानी पिएं।
- वाइन और नशीले पदार्थो के सेवन से बचें।
- हर रात 7 से 8 घंटे सोने का प्रयास करें।
- सक्रिय रहें, भले ही आपका ऎसा करने का मन न हो।
- अपनी दिन भर की गतिविधियों की योजना बनाएं।
- प्रतिदिन अपने लिए एक छोटा सा लक्ष्य निर्धारित करें, जो आप कर सकते हैं।
- अकेले रहने से बचें, किसी सहायक समूह में शामिल हों।
- प्रार्थना करें अथवा ध्यान लगाएं।
- स्पोर्ट्स, पेंटिंग्स, गार्डनिंग, टूरिज्म, म्यूजिक या रीडिंग जैसी हॉबीज विकसित करें।
- अपनी भावनाएं परिजनों अथवा मित्रों को बताएं। अपने परिवार तथा मित्रों को अपनी सहायता करने दें।
- 'क्षमा करो भूल जाओ' यानी 'फॉरगिव एंड फॉरगेट' का सिद्धांत अपनाएँ।
होम्योपैथी किस तरह है कारगार
डिप्रेशन कि स्थिति में होम्योपैथी अत्यन्त कारगर है। चूँकि होम्योपैथी में व्यक्तित्व विशेषता के आधार पर चिकित्सा की जाती है अतः यह अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। इससे मस्तिष्क के उच्च केंद्र जो सोचने और समझने का कार्य करते हैं में उल्लेखनीय वृद्वि होती है। पहले यह माना जाता था कि डिप्रेशन में दी जाने वाली दवाईयां चाहे वह एलोपैथी हो या होम्योपैथी नशीली होती हैं और इनकि आदत बन जाती है परंतु आजकल अच्छी नई दवाईयां निकल रही है जो बिल्कुल सुरक्शित है। सामान्यत: इन दवाईयों का दो से तीन हफ्ते बाद असर चालू होता है और कम से कम 6 माह तक लगातार यह दवाईयां लेनी पड़ती है। इस स्थिति में सामान्यतः उपयोगी दवाएँ कालि फोस, ईग्नेशिया, नेट्र्म म्युर, औरम मेट, लैकेसिस, स्ट्रामोनियम, मेडोराइनम आदि हैं। मेमोरि बूस्टर नाम कि दवा के दो चम्म्च सुबह-शाम लगातार तीन महिने लेने पर काफ़ि लाभ होता है और वह भी बिना किसी दुस्प्रभाव के। यह ब्राह्मि, शन्खपुश्पी, अश्व्गन्धा एवं चार अन्य होम्योपैथिक दवाईयों का अद्भुत मिश्र्ण हे जो दिमाग को ताकत प्रदान करता हे और याद्दाश्त भी बढाता हे। यह जान ले कि ये दवाईयां आपको प्राकृतिक दिमागी संतुलन बनाने में मदद करती है। इन्हें केवल डॉक्टरी सलाह के अनुसार लेना चाहिए। इस प्रकार चुनी हुई दवा को जब उचित पोटेंसी में दिया जाता है तब वांछित परिणाम अवश्य प्राप्त होते हैं। होम्योपैथी सहज, सस्ती और संपूर्ण चिकित्सा पद्धति है। ये औषधियाँ शरीर के किसी एक अंग या भाग पर कार्य नहीं करतीं, बल्कि रोगी के संपूर्ण लक्षणों की चिकित्सा करती है।
Tuesday, October 12, 2010
जोड़ों का दर्द एवं होम्योपैथी
हमारे देश में बडी उम्र के लोगों के बीच ऑर्थराइटिस आम बीमारी है। 50 साल से अधिक उम्र के लोग यह मान कर चलते हैं कि अब तो यह होना ही था। खास तौर से स्त्रियां तो इसे लगभग सुनिश्चित मानती हैं। ऑर्थराइटिस का मतलब है जोड में दर्द, सोजिश एवं जलन। यह शरीर के किसी एक जोड में भी हो सकता है और ज्यादा जोडों में भी। इस भयावह दर्द को बर्दाश्त करना इतना कठिन होता है कि रोगी का उठना-बैठना तक दुश्वार हो जाता है।
ऑर्थराइटिस मुख्यत: दो तरह का होता है - ऑस्टियो और रिह्यमेटाइड ऑर्थराइटिस। कई बार इसमें मरीज की हालत इतनी बिगड जाती है कि उसके लिए हाथ-पैर हिलाना भी मुश्किल हो जाता है। रिह्यमेटाइड ऑर्थराइटिस में तो यह दर्द उंगलियों, कलाइयों, पैरों, टखनों, कूल्हों और कंधों तक को नहीं छोडता है। यह बीमारी आम तौर पर 40 वर्ष की उम्र के बाद होती है, लेकिन यह कोई जरूरी नहीं है। खास तौर से स्त्रियां इसकी ज्यादा शिकार होती हैं।
घट जाती है कार्यक्षमता: ऑर्थराइटिस के मरीज की कार्यक्षमता तो घट ही जाती है, उसका जीना ही लगभग दूभर हो जाता है। अकसर वह मोटापे का भी शिकार हो जाता है, क्योंकि चलने-फिरने से मजबूर होने के कारण अपने रोजमर्रा के कार्यो को निपटाने के लिए भी दूसरे लोगों पर निर्भर हो जाता है। अधिकतर एक जगह पडे रहने के कारण उसका मोटापा भी बढता जाता है, जो कई और बीमारियों का भी कारण बन सकता है।
बाहरी कारणों से नहीं: कई अन्य रोगों की तरह ऑर्थराइटिस के लिए कोई इनफेक्शन या कोई और बाहरी कारण जिम्मेदार नहीं होते हैं। इसके लिए जिम्मेदार होता है खानपान का असंतुलन, जिससे शरीर में यूरिक एसिड बढता है। जब भी हम कोई चीज खाते या पीते हैं तो उसमें मौजूद एसिड का कुछ अंश शरीर में रह जाता है। खानपान और दिनचर्या नियमित तथा संतुलित न हो तो वह धीरे-धीरे इकट्ठा होता रहता है। जब तक एल्कलीज शरीर के यूरिक एसिड को निष्क्रिय करते रहते हैं, तब तक तो मुश्किल नहीं होती, लेकिन जब किसी वजह से अतिरिक्त एसिड शरीर में छूटने लगता है तो यह जोडों के बीच हड्डियों या पेशियों पर जमा होने लगता है।तब चलने-फिरने में चुभन और टीस होती है। यही बाद में ऑर्थराइटिस के रूप में सामने आता है। शोध के अनुसार 80 से भी ज्यादा बीमारियां ऑर्थराइटिस के लक्षण पैदा कर सकती हैं। इनमें शामिल हैं रिह्यमेटाइड ऑर्थराइटिस, ऑस्टियो ऑर्थराइटिस, गठिया, टीबी और दूसरे इनफेक्शन।
बदलें जीने का ढंग: इससे निपटने का एक ही उपाय है और वह है उचित समय पर उचित खानपान। इनकी बदौलत एसिड क्रिस्टल डिपॉजिट को गलाने और दर्द को कम करने में मदद मिलती है। इसलिए बेहतर होगा कि दूसरी चीजों पर ध्यान देने के बजाय खानपान की उचित आदतों पर ध्यान दिया जाए, ताकि यह नौबत ही न आए, फिर भी ऑर्थराइटिस हो गया हो तो ऐसी जीवन शैली अपनाएं जो शरीर से टॉक्सिक एसिड के अवयवों को खत्म कर दे। इसके लिए यह करें-
खानपान का रखें खयाल: ऑर्थराइटिस से निपटने के लिए जरूरी है ऐसा भोजन जो यूरिक एसिड को न्यूट्रल कर दे। ऐसे तत्व हमें रोजाना के भोजन से प्राप्त हो सकते हैं। इसके लिए विटमिन सी व ई और बीटा कैरोटीन से भरपूर खाद्य पदार्थो का इस्तेमाल किया जाना चहिए। इसके अलावा इन बातों पर भी ध्यान दें - ऐसी चीजें खाएं जिनमें वसा कम से कम हो। कुछ ऐसी चीजें भी होती हैं जिनमें वसा होता तो है लेकिन दिखता नहीं। जैसे-
1. केक, बिस्किट, चॉकलेट, पेस्ट्री से भी बचें।
2. दूध लो फैट पिएं। योगर्ट और चीज आदि भी अगर ले रहे हों तो यह ध्यान रखें कि वह लो फैट ही हो।
3. चीजों को तलने के बजाय भुन कर खाएं। कभी कोई चीज तल कर ही खानी हो तो उसे जैतून के तेल में तलें।
4. चोकर वाले आटे की रोटियों, अन्य अनाज, फलों और सब्जियों का इस्तेमाल करें।
5. चीनी का प्रयोग कम से कम करें।
उपचार:
ऑर्थराइटिस कई किस्म का होता है और हरेक का अलग-अलग तरह से उपचार होता है। सही डायग्नोसिस से ही सही उपचार हो सकता है। सही डायग्नोसिस जल्द हो जाए तो अच्छा। जल्द उपचार से फायदा यह होता है कि नुकसान और दर्द कम होता है। उपचार में दवाइयाँ, वजन प्रबंधन, कसरत, गर्म या ठंडे का प्रयोग और जोड़ों को अतिरिक्त नुकसान से बचाने के तरीके शामिल होते हैं। जोड़ों पर दबाव से बचें। जितना वजन बताया गया है, उतना ही बरकरार रखें। ऐसा करने से कूल्हों व घुटनों पर नुकसान देने वाला दबाव कम पड़ता है। वर्कआउट करें। कसरत करने से दर्द कम हो जाता है, मूवमेंट में वृद्धि होती है, थकान कम होती है और आप पूरी तरह स्वस्थ रहते हैं। मजबूती प्रदान करने वाली कई कसरतें हैं गठिया के लिए। अपने डॉक्टर या फिटनेस विशेषज्ञ से उसके बारे में मालूम कर लें। स्ट्रैचिंग एक्सरसाइज से जोड़ व मांसपेशियाँ लचीले रहते हैं। इससे तनाव कम होता है और रोजाना की गतिविधियाँ जारी रखने में मदद मिलती है। गठिया में ज्यादातर लोगों के लिए सबसे अच्छी कसरत चहलकदमी है। इससे कैलोरी बर्न हो जाती है। मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं और हड्डियों में घनत्व बढ़ जाता है। पानी में की जाने वाली कसरतों से भी ताकत आती है, गति में वृद्धि होती है और जोड़ों में टूटफूट भी कम होती है। हाल के शोधों से मालूम हुआ है कि विटामिन सी व अन्य एंटीऑक्सीडेंट ऑस्टियो-आर्थराइटिस के खतरे को कम करते हैं और उसे बढ़ने से भी रोकते हैं। इसलिए संतरा खाओ या संतरे का जूस पियो। ध्यान रहे कि संतरा व अन्य सिटरस फल फोलिक एसिड का अच्छा स्रोत हैं। आपके आहार में पर्याप्त कैल्शियम होना चाहिए। इससे हड्डियाँ कमजोर पड़ने का खतरा नहीं रहता। नाश्ता अच्छा करें। फल, ओटमील खाएँ और पानी पीएँ। जहाँ तक मुमकिन हो कैफीन से बचें। वे जूते न पहने जो आपका पंजा दबाते हों और आपकी एड़ी पर जोर डालते हों। पैडेड जूता होना चाहिए और जूते में पंजा भी खुला-खुला रहना चाहिए। सोते समय गर्म पानी से नहाना मांसपेशियों को रिलैक्स करता है और जोड़ों के दर्द को आराम पहुँचाता है। साथ ही इससे नींद भी अच्छी आती है।
होम्योपैथिक औषधियाँ: - लक्षणानुसार ब्रायोनिया, रस-टाक्स, काल्मिया लैटविया, कैक्टस ग्रेड़ीफ्लोरा, डल्कामारा, लाईकोपोडियम, काली कार्ब, मैगफास, स्टेलेरिया मिडि़या, फेरम-पिक्रीरीकम इत्यादि अत्यंत कारगर होम्योपैथिक दवाएँ हैं।
उपरोक्त दवाये केवल उदहारण के तौर पर दी गयी है .कृपया किसी भी दवा का सेवन बिना परामर्श के ना करे,
क्योकि होम्योपैथी में सभी व्यक्तियों की शारीरिक और मानसिक लक्षण के आधार पर अलग -अलग दवा होती है !
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