गर्मी में तेज धूप से और बदलते मौसमों में आंखों पर काफी असर पड़ता है। आज के भौतिक युग में एयर कंडीशनर तेज धूप और खतरनाक किरणों से तो हमें जरूर बचाता है लेकिन आंखों के चारों ओर होने वाली ड्राइनेस से नहीं।
गर्मी में चलने वाली हवाएं भी हमारी आंखों के लिए बेहद नुकसानदेह हो सकती हैं। साथ ही हमारे लाइफस्टाइल में कंप्यूटर और टीवी का इस्तेमाल भी आंखों को कमजोर कर रहा है। ऐसे में ईश्वर द्वारा मिले इस अनमोल तोहफे का खास ख्याल रखना चाहिए।
गर्मी में आंखों की एक्सरसाइज और खानपान का ध्यान रखना चाहिए।
आंखों की देखभाल के साथ उन्हें प्रोटीन, विटामिन की सबसे ज्यादा जरूरत होती है और साथ ही एक्सरसाइज की भी। गर्मी में जूस और फल से सेहत के साथ आंखों को भी काफी आराम पहुंचता है।
आंखों को सबसे ज्यादा फायदा विटामिन ‘ए’ से होता है। दूध, अंडे, हरी सब्जियां और फल विटामिन ‘ए’ से भरपूर होते हैं।
फलों में अनानास ऐसा फल है जिससे आंखों को स्वस्थ रखने में काफी फायदा होता है। अनानास हडि्डयों की मजबूती के साथ कोशिकाओं के निर्माण में काफी सहायक होता है। एक दिन में अगर एक कप अनानास का जूस पिया जाए तो यह शरीर की मांग पर 73 फीसदी एनर्जी देता है। इसके अलावा सेब और स्ट्रॉबेरी भी काफी फायदेमंद है।
इसके अलावा गर्मी और बरसात के मौसम में डॉक्टर की सलाह से यूफ्रेशिया या ममिरा आई- ड्राप्स दिन में दो-तीन बार डालते रहें। आई ड्रॉप भी डालना आंखों के लिए फायदेमंद होता है। इससे भी आंखों की कोशिकाओं को आराम मिलता है।
सादे पानी से आंखें धुलना मुफ्त का इलाज है। गर्मी में हमें अपनी आंखें लगातार सादे और ठंडे पानी से धोते रहना चाहिए। इससे आंखों की हीटवेव से बचाव तो होता ही है गंदगी भी आंखों से निकलती रहती है।
इसके अलावा लगातार आंखों पर जोर नहीं डालना चाहिए। इसके लिए आंखों की मसल्स की एक्सरसाइज भी करनी चाहिए। पुतलियों को खोलना बंद करना चाहिए और पुतलियों को गोल-गोल घुमाना चाहिए। धूप में निकलते समय बिना किसी हिचक के बड़े ग्लास वाला धूपी चश्मा भी प्रयोग करना चाहिए।
मौसम का पारा जैसे-जैसे चढ़ता है वैसे-वैसे हमें अपनी आंखों के प्रति और सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि आंखों को सुकून मिलने का मतलब है पूरे शरीर को आराम।
Tuesday, June 28, 2011
कम भूख लगना एक बीमारी…
वज़न कम करने के लिए कम भोजन करना या मोटे होने के डर से भूख का कम लगना भी एक बीमारी है। इस बीमारी को ऐनेरोक्सिया नर्वोसा कहा जाता है।जिन लोगों को यह बीमारी होती है वे लोग कम वज़न होने के बावजूद भी मोटे होने की भावना से ग्रसित होते हैं।
ऐनेरोक्सिया की बीमारी दो प्रकार की होती है, पहली वो जिसमें लोग अपना वज़न कम करने के लिए कम खाते हैं और दूसरी वह जिसमें लोग बिलकुल खाना छोड़ देते हैं।
इस बीमारी का कोई प्रमुख कारण नहीं है लेकिन यह बीमारी किसी शारीरिक, मानसिक या सामाजिक परेशानी की वजह से उत्पन्न हो सकती है। कुछ लोगों में यह बीमारी अनुवांशिक होती है। इस बीमारी से ग्रसित लोगों में दिमाग में पाया जाने वाला कोर्टिसॉल हारमोन की मात्रा ज़्यादा हो जाती है और भावनाओं से संबंधित हारमोन की मात्रा कम हो जाती है। इस बीमारी मे लक्षणों का आसानी से पता लगाया जा सकता है। जिन लोगों को यह बीमारी होती है वे वज़न कम करने के लिए हमेशा कम आहार लेना पसंद करते है।
शारीरिक कारण- इसके शारीरिक कारणों में शामिल हैं-अचानक अधिक वज़न का कम होना, बालों का टूटना, रूखी त्वचा, कमज़ोर नाखून, कम रक्तचाप, थकान, उठने बैठ्ने और खडे होने मे चक्कर आना, काम करने का मन न करना, शरीर मे तापमान की कमी, तव्चा मे पीलापन, दिल मे असामान्य धड्कन, सांस लेने मे तकलीफ, सीने मे दर्द, तलवो व हथेलियों मे ठंडापन और लगातार रहने वाला सिर मे दर्द होता है। यदि इस तरह के लक्षण महसूस हो तो तुरन्त किसी योग्य डाक्टर से परामर्श ले लेना चाहिए।
मानसिक कारण- कमज़ोर याददाश्त, निर्णय लेने में परेशानी, जल्द ही चिढ़ जाना आदि।
आचरण संबंधित कारण- खाने की मात्रा और उससे मिलने वाली ऊर्जा के बारे में गहन चिंतन, खाने में छोटे-छोटे भागों में तोड़कर खाना, भूख ना लगने का बहाना बनाना आदि।
यह बीमारी जितनी मामूली लगती है, उतनी है नहीं। इस बीमारी से ग्रसित 50 प्रतिशत लोग भूख और कमज़ोरी की वजह से अपनी जान खो देते हैं। इसकी वजह से किडनी, लीवर और दिल से जुड़ी बिमारियाँ होने का खतरा भी होता है।
इस बीमारी के इलाज के लिए तुरंत ही चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए। इसके इलाज का प्रमुख भाग वजन बढ़ाने पर ध्यान देना होता है।
ऐनेरोक्सिया की बीमारी दो प्रकार की होती है, पहली वो जिसमें लोग अपना वज़न कम करने के लिए कम खाते हैं और दूसरी वह जिसमें लोग बिलकुल खाना छोड़ देते हैं।
इस बीमारी का कोई प्रमुख कारण नहीं है लेकिन यह बीमारी किसी शारीरिक, मानसिक या सामाजिक परेशानी की वजह से उत्पन्न हो सकती है। कुछ लोगों में यह बीमारी अनुवांशिक होती है। इस बीमारी से ग्रसित लोगों में दिमाग में पाया जाने वाला कोर्टिसॉल हारमोन की मात्रा ज़्यादा हो जाती है और भावनाओं से संबंधित हारमोन की मात्रा कम हो जाती है। इस बीमारी मे लक्षणों का आसानी से पता लगाया जा सकता है। जिन लोगों को यह बीमारी होती है वे वज़न कम करने के लिए हमेशा कम आहार लेना पसंद करते है।
शारीरिक कारण- इसके शारीरिक कारणों में शामिल हैं-अचानक अधिक वज़न का कम होना, बालों का टूटना, रूखी त्वचा, कमज़ोर नाखून, कम रक्तचाप, थकान, उठने बैठ्ने और खडे होने मे चक्कर आना, काम करने का मन न करना, शरीर मे तापमान की कमी, तव्चा मे पीलापन, दिल मे असामान्य धड्कन, सांस लेने मे तकलीफ, सीने मे दर्द, तलवो व हथेलियों मे ठंडापन और लगातार रहने वाला सिर मे दर्द होता है। यदि इस तरह के लक्षण महसूस हो तो तुरन्त किसी योग्य डाक्टर से परामर्श ले लेना चाहिए।
मानसिक कारण- कमज़ोर याददाश्त, निर्णय लेने में परेशानी, जल्द ही चिढ़ जाना आदि।
आचरण संबंधित कारण- खाने की मात्रा और उससे मिलने वाली ऊर्जा के बारे में गहन चिंतन, खाने में छोटे-छोटे भागों में तोड़कर खाना, भूख ना लगने का बहाना बनाना आदि।
यह बीमारी जितनी मामूली लगती है, उतनी है नहीं। इस बीमारी से ग्रसित 50 प्रतिशत लोग भूख और कमज़ोरी की वजह से अपनी जान खो देते हैं। इसकी वजह से किडनी, लीवर और दिल से जुड़ी बिमारियाँ होने का खतरा भी होता है।
इस बीमारी के इलाज के लिए तुरंत ही चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए। इसके इलाज का प्रमुख भाग वजन बढ़ाने पर ध्यान देना होता है।
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