Saturday, May 29, 2010
Friday, May 28, 2010
Monday, May 24, 2010
बच्चोंका श्वास रोग एवं होम्योपैथिक उपचार
बच्चॊं का श्वास रोग लड़कियों की आपेक्षा लड़कों मे ज्यादा होता है , शैशवावस्था मे दमे के सारे लक्षण व्यक्त नही होते है । सामन्यतया लोग समझते है की निमोनिया बिगड़ गया है , लेकिन यदि बच्चा बार सांस लेने मे दिक्कत महसुस करता है और कुछ समय के लिये लक्षण ठीक भी हो जाते है परंतु कुछ समय बाद फ़िर वही लक्षण हो जाते हैं । यदि साथ मे बुखार या सर्दी के अन्य लक्षण नही मिलते तो यह समझ लेना चाहिये की बच्चे को शवास रोग है।
मुख्य लक्षण-- इस रोग मे बालक की छाती से बार बार और अत्यन्त उष्ण साँसे निकलती है । साँसो मे सीटी बजने जैसी आवाज आती है। बच्चे कॊ श्वास छोड़ने मे परेशानी आती है । हंफ़नी सी आने लगती है। कुछ बच्चॊं मे आवेग आने से पहले नाक से काफ़ी मात्रा मे स्राव आने लगता है । कुछ मे कफ़ युक्त खांसी और बुखार भी होता है।
कारण--- मुख्य रूप से इसके तीन कारण होते है - एलर्जी, संवेगात्मक , और संक्रमण
इन सब का सम्मिलत रुप भी पायाजाता है । एलर्जी की प्रवृति वंशानुगत होती है यह मुख्य रुप से हवा मे मोजुद धुलि कण, धुँआ, परागकण, रोम, महक, और आहार से होती है , मोसम मे आये बदलाव भी एलर्जी का मुख्य कारण होते है।
आहार विहार व्यवस्था-- आराम अधिक दे, शुद्ध वातारण मे रहें। उष्ण और शीत एक साथ सेवन न करें । संतुलित आहार दें । दुध मे सोंठ डालकर दें । शीतल और बाजार की वस्तुओं से परहेज रखें , दही . लस्सी , चावल, तले हुए मसाले दार आहार से परहेज रखें। बच्चे को खुश रखने का प्रयत्न करते रहें।
क्या श्वास रोग/अस्थमा ठीक हो सकता है?
उचित उपचार के साथ अस्थमा के लक्षणों और उसके दौरों में सुधार आता है बीमारी की गंभीरता पर उपचार की अवधि निर्भर करती है उस उपचार के साथ कोई भी व्यक्ति एक सामान्य जीवन जी सकता है पर एक बात का हमेशा ध्यान रहे कि उपचार न कराने पर ये बीमारी गंभीर रूप ले सकती है |
श्वास रोग/अस्थमा -क्या करें और क्या न करें
ऐसा करें
१ धूल से बचें और धूल-कण अस्थमा से प्रभावित लोगों के लिए एक आम ट्रिगर है|
२ एयरटाइट गद्दे, बॉक्स स्प्रिंग और तकिए के कवर का इस्तेमाल करें ये वे चीजें है जहां पर अक्सर धूल-कण होते है जो अस्थमा को ट्रिगर करते है।
३ पालतू जानवरों को हर हफ्ते नहलाएं, इससे आपके घर में गंदगी पर कंट्रोल रहेगा|
४ अस्थमा से प्रभावित बच्चों को उनकी उम्र वाले बच्चों के साथ सामान्य गतिविधियों में भाग लेने दें |
५ अस्थमा के बारे में अपनी और या अपने बच्चे की जानकारी बढाएं इससे इस बीमारी पर अच्छी तरह से कंट्रोल करने की समझ बढेगी |
६ बेड सीट और मनपसंद स्टफड खिलोंनों को हर हफ्ते धोंए वह भी अच्छी क्वालिटीवाल एलर्जक को घटाने वाले डिटर्जेंट के साथ |
७ सख्त सतह वाले कारपेंट अपनाए |
८ एलर्जी की जांच कराएं इसकी मदद से आप अपने अस्थमा ट्रिगर्स मूल कारण की पहचान कर सकते है |
९ किसी तरह की तकलीफ होने पर या आपकी दवाइयों के आप पर बेअसर होने पर अपने डॉक्टर से संर्पक करें |
ऐसा न करें
१ यदि आपके घर में पालतू जानवर है तो उसे अपने विस्तर पर या बेडरूम में न आने दें|
२ पंखोंवाले तकिए का इस्तेमाल न करें |
३ घर में या अस्थमा से प्रभावित लोगों के आस -पास धूम्रपान न करें संभव हो तो धूम्रपान ही करना बंद कर दें क्योंकि अस्थमा से प्रभावित कुछ लोगों को कपडों पर धुएं की महक से ही अटैक आ सकता है |
४ मोल्ड की संभावना वाली जगहों जैसे गार्डन या पत्तियों के ढेरों में काम न करें और न ही खेलें |
५ दोपहर के वक्त जब परागकणों की संख्या बढ जाती है बाहर न ही काम करें और न ही खेलें |
६ अस्थमा से प्रभावित व्यक्ति से किसी तरह का अलग व्यवहार न करें |
७ अस्थमा का अटैक आने पर न घबराएं, इससे प्रॉब्लम और भी बढ जाएगी| ये बात उन माता-पिता को ध्यान देने वाली है जिनके बच्चों को अस्थमा है अस्थमा अटैक के दौरान बच्चों को आपकी प्रतिक्रिया का असर पडता है यदि आप ही घबरा जाएंगे तो आपको देख उनकी भी घबराहट और भी बढ सकती है |
Sunday, May 16, 2010
सोरायसिस बीमारी एवं होम्योपैथिक उपचार |
इस समय देश की 5 फीसदी आबादी सोरायसिस की शिकार है। सोरायसिस त्वचा की ऊपरी सतह का चर्म रोग है जो वैसे तो वंशानुगत है लेकिन कई कारणों से भी हो सकता है। आनु्वंशिकता के अलावा इसके लिए पर्यावरण भी एक बड़ा कारण माना जाता है। यह असाध्य बीमारी कभी भी किसी को भी हो सकती है। कई बार इलाज के बाद इसे ठीक हुआ समझ लिया जाता है जबकि यह रह-रहकर सिर उठा लेता है। शीत ऋतु में यह बीमारी प्रमुखता से प्रकट होती है।
सोरायसिस चमड़ी की एक ऐसी बीमारी है जिसके ऊपर मोटी परत जम जाती है। दरअसल चमड़ी की सतही परत का अधिक बनना ही सोरायसिस है। त्वचा पर भारी सोरायसिस की बीमारी सामान्यतः हमारी त्वचा पर लाल रंग की सतह के रूप में उभरकर आती है और स्केल्प (सिर के बालों के पीछे) हाथ-पाँव अथवा हाथ की हथेलियों, पाँव के तलवों, कोहनी, घुटनों और पीठ पर अधिक होती है। 1-2 प्रतिशत जनता में यह रोग पाया जाता है।
क्या है लक्षण:
रोग से ग्रसित (आक्रांत) स्थान की त्वचा चमकविहीन, रुखी-सूखी, फटी हुई और मोटी दिखाई देती है तथा वहाँ खुजली भी चलती है। सोरायसिस के क्रॉनिक और गंभीर होने पर 5 से 40 प्रतिशत रोगियों में जोड़ों का दर्द और सूजन जैसे लक्षण भी पाए जाते हैं एवं कुछ रोगियों के नाखून भी प्रभावित हो जाते हैं और उन पर रोग के चिह्न (पीटिंग) दिखाई देते हैं।
क्यों और किसे होता है सोरायसिस:
सोरायसिस क्यों होता है इसका सीधे-सीधे उत्तर देना कठिन है क्योंकि इसके मल्टीफ्लेक्टोरियल (एकाधिक) कारण हैं। अभी तक हुई खोज (रिसर्च) के अनुसार सोरायसिस की उत्पत्ति के लिए मुख्यतः जेनेटिक प्री-डिस्पोजिशन और एनवायरमेंटल फेक्टर को जवाबदार माना गया है।सोरायसिस हेरिडिटी (वंशानुगत) रोगों की श्रेणी में आने वाली बीमारी है एवं 10 प्रश रोगियों में परिवार के किसी सदस्य को यह रोग रहता है।
किसी भी उम्र में नवजात शिशुओं से लेकर वृद्धों को भी हो सकती है। यह इंफेक्टिव डिसिज (छूत की बीमारी) भी नहीं है। सामान्यतः यह बीमारी 20 से 30 वर्ष की आयु में प्रकट होती है, लेकिन कभी-कभी इस बीमारी के लक्षण क्रॉनिक बीमारियों की तरह देरी से उभरकर आते हैं। सोरायसिस एक बार ठीक हो जाने के बाद कुछ समय पश्चात पुनः उभर कर आ जाता है और कभी-कभी अधिक उग्रता के साथ प्रकट होता है। ग्रीष्मऋतु की अपेक्षा शीतऋतु में इसका प्रकोप अधिक होता है।
रोग होने पर क्या करें:
सोरायसिस होने पर विशेषज्ञ चिकित्सक के बताए अनुसार निर्देशों का पालन करते हुए पर्याप्त उपचार कराएँ ताकि रोग नियंत्रण में रहे। थ्रोट इंफेक्शन से बचें और तनाव रहित रहें, क्योंकि थ्रोट इंफेक्शन और स्ट्रेस सीधे-सीधे सोरायसिस को प्रभावित कर रोग के लक्षणों में वृद्धि करता है। त्वचा को अधिक खुश्क होने से भी बचाएँ ताकि खुजली उत्पन्न न हो। परहेज नाम पर मात्र मदिरा और धूम्रपान का परहेज है क्योंकि ये दोनों ही सीधे सीधे इस व्याधि को बढाते है.
क्या है उपचार:
सोरायसिस के उपचार में बाह्य प्रयोग के लिए एंटिसोरियेटिक क्रीम/ लोशन/ ऑइंटमेंट की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लेकिन जब बाह्योपचार से लाभ न हो तो मुँह से ली जाने वाली एंटीसोरिक और सिमटोमेटिक होम्योपैथिक औषधियों का प्रयोग आवश्यक हो जाता है।
होम्योपैथिक औषधियाँ: - लक्षणानुसार मरक्यूरस सौल, नेट्रम सल्फ, मेडोराइनम, लाईकोपोडियम, सल्फर, सोराइन्म, आर्सेनिक अल्ब्म, ग्रफाइट्स, इत्यादि अत्यंत कारगर होम्योपैथिक दवाएँ हैं।
उपरोक्त दवाये केवल उदहारण के तौर पर दी गयी है .कृपया किसी भी दवा का सेवन बिना परामर्श के ना करे, क्योकि होम्योपैथी में सभी व्यक्तियों की शारीरिक और मानसिक लक्षण के आधार पर अलग -अलग दवा होती है !
सोरायसिस चमड़ी की एक ऐसी बीमारी है जिसके ऊपर मोटी परत जम जाती है। दरअसल चमड़ी की सतही परत का अधिक बनना ही सोरायसिस है। त्वचा पर भारी सोरायसिस की बीमारी सामान्यतः हमारी त्वचा पर लाल रंग की सतह के रूप में उभरकर आती है और स्केल्प (सिर के बालों के पीछे) हाथ-पाँव अथवा हाथ की हथेलियों, पाँव के तलवों, कोहनी, घुटनों और पीठ पर अधिक होती है। 1-2 प्रतिशत जनता में यह रोग पाया जाता है।
क्या है लक्षण:
रोग से ग्रसित (आक्रांत) स्थान की त्वचा चमकविहीन, रुखी-सूखी, फटी हुई और मोटी दिखाई देती है तथा वहाँ खुजली भी चलती है। सोरायसिस के क्रॉनिक और गंभीर होने पर 5 से 40 प्रतिशत रोगियों में जोड़ों का दर्द और सूजन जैसे लक्षण भी पाए जाते हैं एवं कुछ रोगियों के नाखून भी प्रभावित हो जाते हैं और उन पर रोग के चिह्न (पीटिंग) दिखाई देते हैं।
क्यों और किसे होता है सोरायसिस:
सोरायसिस क्यों होता है इसका सीधे-सीधे उत्तर देना कठिन है क्योंकि इसके मल्टीफ्लेक्टोरियल (एकाधिक) कारण हैं। अभी तक हुई खोज (रिसर्च) के अनुसार सोरायसिस की उत्पत्ति के लिए मुख्यतः जेनेटिक प्री-डिस्पोजिशन और एनवायरमेंटल फेक्टर को जवाबदार माना गया है।सोरायसिस हेरिडिटी (वंशानुगत) रोगों की श्रेणी में आने वाली बीमारी है एवं 10 प्रश रोगियों में परिवार के किसी सदस्य को यह रोग रहता है।
किसी भी उम्र में नवजात शिशुओं से लेकर वृद्धों को भी हो सकती है। यह इंफेक्टिव डिसिज (छूत की बीमारी) भी नहीं है। सामान्यतः यह बीमारी 20 से 30 वर्ष की आयु में प्रकट होती है, लेकिन कभी-कभी इस बीमारी के लक्षण क्रॉनिक बीमारियों की तरह देरी से उभरकर आते हैं। सोरायसिस एक बार ठीक हो जाने के बाद कुछ समय पश्चात पुनः उभर कर आ जाता है और कभी-कभी अधिक उग्रता के साथ प्रकट होता है। ग्रीष्मऋतु की अपेक्षा शीतऋतु में इसका प्रकोप अधिक होता है।
रोग होने पर क्या करें:
सोरायसिस होने पर विशेषज्ञ चिकित्सक के बताए अनुसार निर्देशों का पालन करते हुए पर्याप्त उपचार कराएँ ताकि रोग नियंत्रण में रहे। थ्रोट इंफेक्शन से बचें और तनाव रहित रहें, क्योंकि थ्रोट इंफेक्शन और स्ट्रेस सीधे-सीधे सोरायसिस को प्रभावित कर रोग के लक्षणों में वृद्धि करता है। त्वचा को अधिक खुश्क होने से भी बचाएँ ताकि खुजली उत्पन्न न हो। परहेज नाम पर मात्र मदिरा और धूम्रपान का परहेज है क्योंकि ये दोनों ही सीधे सीधे इस व्याधि को बढाते है.
क्या है उपचार:
सोरायसिस के उपचार में बाह्य प्रयोग के लिए एंटिसोरियेटिक क्रीम/ लोशन/ ऑइंटमेंट की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लेकिन जब बाह्योपचार से लाभ न हो तो मुँह से ली जाने वाली एंटीसोरिक और सिमटोमेटिक होम्योपैथिक औषधियों का प्रयोग आवश्यक हो जाता है।
होम्योपैथिक औषधियाँ: - लक्षणानुसार मरक्यूरस सौल, नेट्रम सल्फ, मेडोराइनम, लाईकोपोडियम, सल्फर, सोराइन्म, आर्सेनिक अल्ब्म, ग्रफाइट्स, इत्यादि अत्यंत कारगर होम्योपैथिक दवाएँ हैं।
उपरोक्त दवाये केवल उदहारण के तौर पर दी गयी है .कृपया किसी भी दवा का सेवन बिना परामर्श के ना करे, क्योकि होम्योपैथी में सभी व्यक्तियों की शारीरिक और मानसिक लक्षण के आधार पर अलग -अलग दवा होती है !
Saturday, May 15, 2010
विश्व होम्योपैथी समुदाय ( Homeopathic World Community )
१ साल के अन्दर ही विश्व होम्योपैथी समुदाय का नेटवर्क दुनिया भर के ७० देशों से २००० होम्योपैथिक चिकित्सकों, छात्रों और होम्योपैथिक चिकित्सा पद्दति के प्रति रुझान रखने वालों के बीच लोकप्रिय हो चुका है। कम्यूनिटी का मुख्य उद्देशय होम्योपैथिक चिकित्सकों के बीच समन्वय और सकारात्मक अनुभवों का आदान प्रदान करना है ।
होम्योपैथिक वर्ल्ड कम्यूनिटी मे शामिल होने केलिये http://www.homeopathyworldcommunity.com पर चटका लगायें ।
In just 1 year Homeopathy World Community Network has over 2000 members representing 70 Countries around the world. Members are physicians and professional health providers who have years of training. Some are students presently taking degree programs at universities, colleges and certificate seminars around the world. Other members joined the movement to learn more after experiencing positive effects from homeopathy
Click HERE to join Homeopathic World Community
Courtesy : Debby Bruck
होम्योपैथिक वर्ल्ड कम्यूनिटी मे शामिल होने केलिये http://www.homeopathyworldcommunity.com पर चटका लगायें ।
In just 1 year Homeopathy World Community Network has over 2000 members representing 70 Countries around the world. Members are physicians and professional health providers who have years of training. Some are students presently taking degree programs at universities, colleges and certificate seminars around the world. Other members joined the movement to learn more after experiencing positive effects from homeopathy
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Courtesy : Debby Bruck
Tuesday, May 4, 2010
क्या कहते हैं आपके नाखून?
नाखून, जो एक हमारे शरीर में सबसे दृढ संरचनाओ में से हैं, आश्चर्यजनक हैं, वास्तव में यह मृत कोशिकाओं का संग्रह है | सभी चाहते हैं कि उनके नाखून बड़े और सुन्दर दिखें। अगर आपके नाखून हफ्ते में 0.6 से 1.3 मी.मी. बढ़ते हैं तो आप स्वस्थ माने जाएँगे। गर्मियों में इनके बढ़ने की रफ्तार तेज होती है, लेकिन सर्दियों में धीमी। नाखून सामान्य स्वास्थ्य का एक आईना हैं, जो नाखूनों की गुणवत्ता में परिलक्षित होती है, जो शरीर में मौजूदा चिकित्सा अवस्थाओं में होती हैं| इस प्रकार नाखून भी चिकित्सकों के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण नैदानिक उपकरण हैं| आपको यह जानकर आर्श्च होगा कि आपके नाखून भी आपके स्वास्थ्य की सारी पोल खोल देते हैं। आप कैसा खाते हैं, क्या खाते हैं, आपकी सोच और रहन-सहन भी।
आपके खाने के गलत तरीकों, प्रोटीन की कमी, थायरॉईड संबंधी परेशानी या खून की कमी सबकुछ आपके नाखून कह देते हैं। स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को आप अपने नाखून देखकर भी पता कर सकते हैं।
कैसे पहचानेंगे नाखून से अपने स्वास्थ्य की कमजोरियों को-
*अगर आपके नाखून के आस-पास की त्वचा सूख रही है। तो यह आपके शरीर में विटामिन 'सी', फोलिक एसिड, और प्रोटीन की कमी को दर्शाता है। इसके लिए आप हरी पत्तीदार सब्जियों का सेवन करें। मछली और अण्डे खाएँ।
* नाखूनों पर सफेद धब्बे यह दर्शाते हैं कि आपके शरीर में जिंक और विटामिन 'बी' की कमी है। चना इन दोनों का बड़ा ही बेहतर स्त्रोत है। ज्वार, बाजरा से भी इसकी कमी को पूरा किया जा सकता है।
*नाखूनों का धीमी गति से बढ़ना यह बताता है कि आप प्रोटीन की कमी और विटामिन 'ए' की कमी से जूझ रहे हैं। इसके लिए हौम्योपैथी में कई दवाएँ उपलब्ध हैं। मानसिक अशांति, प्रोटीन और जिंक की कमी नाखूनों की वृद्धि में बाधक होते हैं।
*नाखूनों का भद्दा रंग आपके लगातार नेलपॉलिश के इस्तेमाल की वजह से भी हो सकता है। पीले नाखून धूम्रपान की वजह से होते हैं। जबकि नीले नाखून साँस संबंधी समस्याओं और पीले और हल्के सफेद रंग के नाखून एनीमिया के कारण होता है। इसके लिए चुकंदर का सेवन करना लाभदायक रहता है। विटामिन 'सी' के स्त्रोत वाले फल और सब्जियों का प्रयोग भी कर सकते हैं।
*शरीर के अंदर कैल्शियम और विटामिन की कमी से नाखून कमजोर होकर टूटते रहते है। इसको दूर करने के लिए भोजन में पौष्टिक आहार लेना चाहिए और दूध या दूध से बने पदार्थों का प्रयोग करना चाहिए।
दुनियाभर में हुए कुछ शोधों के अनुसार यह तथ्य प्रमाणित हो चुका है कि विभिन्न बीमारियों में नाखूनों का रंग बदल जाता है। जैसे
• सफेद रंग के नाखून लिवर से संबंधित बीमारियों जैसे हेपेटाइटिस- की खबर देते हैं।
• पीले नाखून (जो आकार में मोटे हों और धीरे-धीरे बढ़ते हों) फेफड़े संबंधी बीमारियों के परिचायक हैं।
• आधे सफेद और आधे गुलाबी नाखून गुर्दे संबंधी बीमारियों का संकेत देते हैं।
• यदि नाखूनों का रंग पीला है या उनकी पर्त सफेद है, तो यह लक्षण शरीर में खून की कमी(एनीमिया)का लक्षण है।
नाखूनों पर ध्यान ना देने से कुछ महिलाओं में हैंग नेल्स तथा स्पून नेल्स जैसी समस्याएं पैदा हो जाती है।
हैंग नेल्स :
हैंग नेल्स में नाखून के किनारे की त्वचा छिलके के जैसी अलग हो जाती है, जिसके कारण नाखूनों में सूजन और जलन होने लगती है। इसके उपचार के लिए विटामिन सी और प्रोटीनयुक्त भोजन का ज्यादा सेवन करना चाहिए।
स्पून नेल्स :
हममें से बहुतों के उत्तल या उभरे हुए नाखून होते है, किसी गेंद जैसी गोलाई लिए हुए, लेकिन यदि आपके नाखूनों के बीच में गड्ढा है तो यह इस बात का संकेत है कि आपके शरीर में आयरन की कमी है। रक्त की कमी से नाखून टेढ़े-मेढ़े और खुरदुरे हो जाते हैं।
बीमारी है नाखून चबाना
आपका बच्चा अगर नाखून चबाता है तो उस जरूर ध्यान दीजिये। ऑनिकोफेजिया सुनने में कुछ अटपटा सा लगता है पर इस परेशानी से बहुत सारे लोग पीड़ित होते हैं। ऐसा नहीं है कि यह समस्या केवल बच्चों में ही होती है। कई बार यह समस्या बड़ों में भी पाई जाती है।
सामान्य तौर पर हम इसे इसे नाखून चबाने के रूप में या नेल-बाइटिंग के रूप में जानते हैं। आमतौर पर आदमी जब तनाव में किसी बात को लेकर उत्सहित होता है तो वह नाखून कुतरता या चबाता है। जब आदमी के पास कोई काम नहीं होता तब भी वह बोर होने पर नाखून काटने का ही काम करता है। शर्म य झुंझलाहट में भी लोग नाखून खाने लगते हैं।
नर्वस-हैबिट के तहत नाखून खाना, अंगूठा चूसना, नाक में उंगली डालना, बाल को मरोड़ना या खींचना, दांत पीसना या अपनी त्वचा को बार-बार छूना शामिल है। आश्चर्य की बात यह है कि ऐसा करने वाला इसे महसूस नहीं कर पाता है जबकि सामने से देखने वाला इसे महसूस कर लेता है। आदत पड़ जाने पर आदमी काम करते हुए, बुक पढ़ते, फोन पर बातें करते और टीवी देखने जैसे कामों को करते हुए भी लोग नाखून चबाते देखे जाते हैं।
कई बार लोग नाखून चबाने के साथ-साथ क्यूटिकल्स और नाखून के इर्द-गिर्द की त्वचा को भी काटते हैं। जहां एक ओर यह देखने में बुरा लगता है वहीं स्वास्थ्य की दषटि से भी यह नुकसान देह होता है।
होम्योपैथिक उपचार:
दवाएँ - होम्योपैथी दवाएँ जो लक्षणागत नाखून से जुड़ी समस्याओं में काम करती हैं वे इस प्रकार हैं। मरक्यूरस सौल, नेट्रम सल्फ, मेडोराइनम, लाईकोयोडियम, सल्फर इत्यादि ।
उपरोक्त दवाये केवल उदहारण के तौर पर दी गयी है| कृपया किसी भी दवा का सेवन बिना परामर्श के ना करे, क्योकि होम्योपैथी में सभी व्यक्तियों की शारीरिक और मानसिक लक्षण के आधार पर अलग -अलग दवा होती है !
आपके खाने के गलत तरीकों, प्रोटीन की कमी, थायरॉईड संबंधी परेशानी या खून की कमी सबकुछ आपके नाखून कह देते हैं। स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को आप अपने नाखून देखकर भी पता कर सकते हैं।
कैसे पहचानेंगे नाखून से अपने स्वास्थ्य की कमजोरियों को-
*अगर आपके नाखून के आस-पास की त्वचा सूख रही है। तो यह आपके शरीर में विटामिन 'सी', फोलिक एसिड, और प्रोटीन की कमी को दर्शाता है। इसके लिए आप हरी पत्तीदार सब्जियों का सेवन करें। मछली और अण्डे खाएँ।
* नाखूनों पर सफेद धब्बे यह दर्शाते हैं कि आपके शरीर में जिंक और विटामिन 'बी' की कमी है। चना इन दोनों का बड़ा ही बेहतर स्त्रोत है। ज्वार, बाजरा से भी इसकी कमी को पूरा किया जा सकता है।
*नाखूनों का धीमी गति से बढ़ना यह बताता है कि आप प्रोटीन की कमी और विटामिन 'ए' की कमी से जूझ रहे हैं। इसके लिए हौम्योपैथी में कई दवाएँ उपलब्ध हैं। मानसिक अशांति, प्रोटीन और जिंक की कमी नाखूनों की वृद्धि में बाधक होते हैं।
*नाखूनों का भद्दा रंग आपके लगातार नेलपॉलिश के इस्तेमाल की वजह से भी हो सकता है। पीले नाखून धूम्रपान की वजह से होते हैं। जबकि नीले नाखून साँस संबंधी समस्याओं और पीले और हल्के सफेद रंग के नाखून एनीमिया के कारण होता है। इसके लिए चुकंदर का सेवन करना लाभदायक रहता है। विटामिन 'सी' के स्त्रोत वाले फल और सब्जियों का प्रयोग भी कर सकते हैं।
*शरीर के अंदर कैल्शियम और विटामिन की कमी से नाखून कमजोर होकर टूटते रहते है। इसको दूर करने के लिए भोजन में पौष्टिक आहार लेना चाहिए और दूध या दूध से बने पदार्थों का प्रयोग करना चाहिए।
दुनियाभर में हुए कुछ शोधों के अनुसार यह तथ्य प्रमाणित हो चुका है कि विभिन्न बीमारियों में नाखूनों का रंग बदल जाता है। जैसे
• सफेद रंग के नाखून लिवर से संबंधित बीमारियों जैसे हेपेटाइटिस- की खबर देते हैं।
• पीले नाखून (जो आकार में मोटे हों और धीरे-धीरे बढ़ते हों) फेफड़े संबंधी बीमारियों के परिचायक हैं।
• आधे सफेद और आधे गुलाबी नाखून गुर्दे संबंधी बीमारियों का संकेत देते हैं।
• यदि नाखूनों का रंग पीला है या उनकी पर्त सफेद है, तो यह लक्षण शरीर में खून की कमी(एनीमिया)का लक्षण है।
नाखूनों पर ध्यान ना देने से कुछ महिलाओं में हैंग नेल्स तथा स्पून नेल्स जैसी समस्याएं पैदा हो जाती है।
हैंग नेल्स :
हैंग नेल्स में नाखून के किनारे की त्वचा छिलके के जैसी अलग हो जाती है, जिसके कारण नाखूनों में सूजन और जलन होने लगती है। इसके उपचार के लिए विटामिन सी और प्रोटीनयुक्त भोजन का ज्यादा सेवन करना चाहिए।
स्पून नेल्स :
हममें से बहुतों के उत्तल या उभरे हुए नाखून होते है, किसी गेंद जैसी गोलाई लिए हुए, लेकिन यदि आपके नाखूनों के बीच में गड्ढा है तो यह इस बात का संकेत है कि आपके शरीर में आयरन की कमी है। रक्त की कमी से नाखून टेढ़े-मेढ़े और खुरदुरे हो जाते हैं।
बीमारी है नाखून चबाना
आपका बच्चा अगर नाखून चबाता है तो उस जरूर ध्यान दीजिये। ऑनिकोफेजिया सुनने में कुछ अटपटा सा लगता है पर इस परेशानी से बहुत सारे लोग पीड़ित होते हैं। ऐसा नहीं है कि यह समस्या केवल बच्चों में ही होती है। कई बार यह समस्या बड़ों में भी पाई जाती है।
सामान्य तौर पर हम इसे इसे नाखून चबाने के रूप में या नेल-बाइटिंग के रूप में जानते हैं। आमतौर पर आदमी जब तनाव में किसी बात को लेकर उत्सहित होता है तो वह नाखून कुतरता या चबाता है। जब आदमी के पास कोई काम नहीं होता तब भी वह बोर होने पर नाखून काटने का ही काम करता है। शर्म य झुंझलाहट में भी लोग नाखून खाने लगते हैं।
नर्वस-हैबिट के तहत नाखून खाना, अंगूठा चूसना, नाक में उंगली डालना, बाल को मरोड़ना या खींचना, दांत पीसना या अपनी त्वचा को बार-बार छूना शामिल है। आश्चर्य की बात यह है कि ऐसा करने वाला इसे महसूस नहीं कर पाता है जबकि सामने से देखने वाला इसे महसूस कर लेता है। आदत पड़ जाने पर आदमी काम करते हुए, बुक पढ़ते, फोन पर बातें करते और टीवी देखने जैसे कामों को करते हुए भी लोग नाखून चबाते देखे जाते हैं।
कई बार लोग नाखून चबाने के साथ-साथ क्यूटिकल्स और नाखून के इर्द-गिर्द की त्वचा को भी काटते हैं। जहां एक ओर यह देखने में बुरा लगता है वहीं स्वास्थ्य की दषटि से भी यह नुकसान देह होता है।
होम्योपैथिक उपचार:
दवाएँ - होम्योपैथी दवाएँ जो लक्षणागत नाखून से जुड़ी समस्याओं में काम करती हैं वे इस प्रकार हैं। मरक्यूरस सौल, नेट्रम सल्फ, मेडोराइनम, लाईकोयोडियम, सल्फर इत्यादि ।
उपरोक्त दवाये केवल उदहारण के तौर पर दी गयी है| कृपया किसी भी दवा का सेवन बिना परामर्श के ना करे, क्योकि होम्योपैथी में सभी व्यक्तियों की शारीरिक और मानसिक लक्षण के आधार पर अलग -अलग दवा होती है !
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