Thursday, August 12, 2010



बारिश में बीमारी से करें बचाव

मानसून आ गया है और झमाझम बारिश भी शुरू हो गई है। जगह-जगह पानी का भराव और ट्रैफिक जाम इन दिनों आम है। ऐसे में ढेरों बीमारियां भी हमला बोलने को तैयार रहती हैं। मलेरिया, डेंगू, जॉइंडिस, हैजा जैसी बीमारियां पानी से ही फैलती हैं इसलिए जहां सुहानी बारिश मौसम को मजा देती है वहीं बीमारियों की के वायरस भी पानी में पलते-बढ़ते हैं।

बरसात में बीमारी फैलने का सबसे बड़ा जरिया दूषित पानी है। दूषित पानी से कई बीमारियां घर के अंदर पहुंच जाती हैं। इसके साथ कीचड़ और गंदे पानी में रहने से त्वचा संबंधी रोग भी हो जाते हैं। बरसात में सबसे ज्यादा मामले मलेरिया के होते हैं।

मलेरिया एनाफिलीज मच्छर से होता है। मलेरिया का प्रमुख लक्षण यह है कि एक निश्चित समय पर मरीज को बुखार आता है, सिरदर्द और मितली आने के साथ कंपकपी के साथ ठंड लगती है। मरीज के हाथ-पैरों में दर्द के साथ कमजोरी महसूस होती है।

बरसात के दिनों में डेंगू बुखार भी खूब फैलता है। मलेरिया की तरह यह भी मच्छर के काटने से फैलता है। वायरस से फैलने वाला डेंगू चार किस्म को होता है। यह बीमारी एडीज मच्छर से फैलती है जो ज्यादातर दिन में काटता है।
डेंगू में तेज बुखार, शरीर में और सिर में तेज दर्द होता है। बड़ों के मुकाबले यह बीमारी बच्चों में ज्यादा होती है। आम बोलचाल की भाषा में इसे हड्डी तोड़ बुखार भी कहा जाता है क्योंकि इसके कारण शरीर और जोड़ों में खूब दर्द होता है।
पीलिया भी बरसात के दिनों में होने वाली आम बीमारी है। पीलिया रोग यानी जॉइंडिस में व्यक्ति के शरीर में खून की कमी होने लगती है। भूख मर जाती है और आंखें, नाखून, चेहरा, हथेलियां और धीरे-धीरे पूरा शरीर पीला होने लगता है।
पीलिया के शिकार व्यक्ति की भूख कम हो जाती है और शरीर में पानी और खून की बेहद कमी हो जाती है। अगर समय पर इलाज न मिले तो मरीज की मौत भी हो सकती है। इसके अलावा टाइफाइड भी दूषित पानी से हाने वाली एक बड़ी बीमारी है।

इस बीमारी में मरीज को पहले बुखार आता है जो पांचवें दिन तक लगातार बढ़ जाता है। सिरदर्द के साथ पेट में दर्द होता है। दूसरा हफ्ता आने तक मरीज के बदन पर दाग पड़ने लगते हैं। ऐसे हालात में पहुंचने से पहले ही तुरंत डॉक्टर की मदद लेनी चाहिए।

इन बीमारियों से बचना ही सबसे अच्छी स्थिति है लेकिन सावधानी के बाद भी यदि बीमारी हो जाए तो घबराने के बजाय डॉक्टर के परामर्श से इलाज कराकर जल्द ही सेहत में सुधार किया जा सकता है। मलेरिया से बचने के लिए मच्छरदानी में सोएं, और घर के आसपास पानी न जमा होने दें। घर के पास अगर पानी जमा भी होता है तो उसमें मच्छर और कीटाणु न पनपने पाएं इसके लिए दवाओं का छिड़काव कराएं।

मच्छर काटने के कम से कम 14 दिन बाद मलेरिया के लक्षण सामने आते हैं। अगर डेंगू बुखार है तो तुरंत डॉक्टर की मदद लें और उचित दवा लेकर बुखार कम करें। रोगी को डिस्प्रिन, एस्प्रीन कभी ना दें। हैजा से बचने के लिए पानी को उबाल कर पिएं और खाने को पूरी तरह पकाकर खाएं। साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें। पीलिया होने पर खाने में खास ध्यान देने की जरूरत होती है। पानी उबाल कर पीएं और हल्का खाना खाएं। तले और मसालेदार खाने से बचें। बरसात के मौसम में बीमारियों से बचने के लिए बाहर का खाना बिल्कुल नहीं खाना चाहिए।

Wednesday, July 28, 2010

सफेद दाग: छुपाएं नहीं, इलाज करायें।

सफेद दाग जिसे की आयुर्वेद मै श्वेत कुष्ठ के नाम से जानते है एक ऐसी बीमारी है जिससे कोई भी व्यक्ति बचना चाहेगा..इस बीमारी मैं व्यक्ति की त्वचा पर सफेद चकते बनने प्रारंभ हो जाते है ..और कई वार यह पूरे पूरे शरीर पर फैल जाती है। सफेद दाग विचलित कर देने वाला विकार है, पर हरेक सफेद दाग एक सा नहीं होता। कुछ त्वचा पर पड़े दबाव, किसी कपड़े से हुई एलर्जी, संक्रमण या अन्य कारणों से होते हैं, तो कुछ शरीर की इम्यून प्रणाली के बागी होने से उपजते हैं। यह स्थिति विटिलिगो या ल्यूकोडर्मा कहलाती है, जिसे लोग फुलवैरी या गलती से कच्चा कोढ़ भी कह देते हैं। ‘ल्यको का मतलब है ‘सफेद’ और डर्मा का मतलब है ‘खाल’। ल्यूकोडर्मा में असामान्य रूप से खाल का रंग सफेद होने लगता है। शरीर के जिस हिस्से पर इसका प्रभाव पड़ता है वहाँ से मेलेनोसाइटिस पूरी तरह से खत्म हो जाते हैं। सफेद दाग सामाजिक अभिशाप नहीं, एक शारीरिक रोग व विकार है। यह रोग छूने से नहीं फैलता, इसमें सिर्फ चमड़ी का रंग ही सफेद हो जाता है।



कारण:ल्यूकोडर्मा किस वजह से होता है, इसका कारण अभी स्पष्ट नहीं है। लेकिन शरीर पर इन सफेद धब्बों के कुछ संभव कारण हैं

1. खून में मेलेनिन नामक तत्व का कम हो जाना।
2. अत्यधिक कब्ज।
3. लीवर का ठीक से कार्य ना कर पाना या पीलिया।
4. पेट से संबंधित बीमारी या पेट में कीड़ों का होना।
5. टाइफाइड जैसी बीमारियाँ जिन से पेट या आंतों में संक्रमण होने का खतरा हो।
6. अत्याधिक तनाव
7. यह आनुवंशिक भी हो सकता है।

निवारण:
1.खट्टे खाद्य पदार्थों का सेवन करने से बचना चाहिए। इस तरह के पदार्थ शरीर में मेलेनिन की मात्रा को कम करते हैं।
2. माँसाहारी भोजन भी हमारे शरीर में मौजूद सेल्स के लिए बाहरी तत्व की तरह होता है।
3. खाद्य पदार्थों में उपयोग किए जाने वाले रंग भी हानिकारक साबित हो सकते हैं।
4. पोषक तत्व जैसे बीटा कैरोटिन (गाजर में), लाइकोपिन (टमाटर में), विटामिन ई एवं सी (ग्रेप सीड एक्स्ट्रेक्ट में उच्च मात्रा में उपलब्ध) और अन्य खनिज तत्वों को आहार में शामिल करना चाहिये।
5. कई बार ल्यूकोडर्मा के रोगी दवाइयां लेना शुरू तो करते हैं पर थोड़ा आराम मिलते ही बंद कर देते हैं। इससे फिर से तकलीफ बढ़ने का खतरा बना रहता है। ल्यूकोडर्मा के रोगियों को तब तक दवाइयां लेनी चाहिए जब तक पूरा कोर्स न ख़त्म हो जाए।



होम्योपैथिक चिकित्सा
उपचार के लिए होम्योपैथी में बहुत सी दवाएं हैं। कुछ खाने की, तो कुछ लगाने की। उपचार करने में दो तरह की औषधिया काम में लाई जाती है…एक वे जो  रोग प्रति रोधक तंत्र में फेरबदल कर के व्याधी के बढने को रोकती है….और दूसरी वे जो गये हुए रंग को वापिस बनाती है। किसी विशेषज्ञ से उपचार कराया जाए तो लगभग 50 प्रतिशत मामलों में दाग मिट जाते हैं, लेकिन यह सुधार धीरे-धीरे होता है। कुल मिलाकर यह एक ठीक होने लायक बीमारी है…लाईलाज नहीं है…और यदि सही समय पर उपचार प्रारंभ किया जाये तो इसमें अच्छे परिणाम मिलते हैं। होम्योपैथीक दवाएँ जो लक्षणागत ल्यूकोडर्मा में काम करती हैं वे इस प्रकार हैं: - आर्सेनिक एल्बम, नेट्रम म्यूर, इचिनेसिया, लाईकोपोडियम, आर्सेनिक-सल्फ़-फ़्लेवम, सोरिलिया, नेट्रम सल्फ, सिलिसिया, सल्फर आदि।

उपरोक्त दवाये केवल उदहारण के तौर पर दी गयी है।कृपया किसी भी दवा का सेवन बिना परामर्श के ना करे, क्योकि होम्योपैथी में सभी व्यक्तियों की शारीरिक और मानसिक लक्षण के आधार पर अलग -अलग दवा होती है !


डा. नवनीत बिदानी
मोबाईल: 9416336371

Monday, May 24, 2010

बच्चोंका श्वास रोग एवं होम्योपैथिक उपचार



बच्चॊं का श्वास रोग लड़कियों की आपेक्षा लड़कों मे ज्यादा होता है , शैशवावस्था मे दमे के सारे लक्षण व्यक्त नही होते है । सामन्यतया लोग समझते है की निमोनिया बिगड़ गया है , लेकिन यदि बच्चा बार सांस लेने मे दिक्कत महसुस करता है और कुछ समय के लिये लक्षण ठीक भी हो जाते है परंतु कुछ समय बाद फ़िर वही लक्षण हो जाते हैं । यदि साथ मे बुखार या सर्दी के अन्य लक्षण नही मिलते तो यह समझ लेना चाहिये की बच्चे को शवास रोग है।

मुख्य लक्षण-- इस रोग मे बालक की छाती से बार बार और अत्यन्त उष्ण साँसे निकलती है । साँसो मे सीटी बजने जैसी आवाज आती है। बच्चे कॊ श्वास छोड़ने मे परेशानी आती है । हंफ़नी सी आने लगती है। कुछ बच्चॊं मे आवेग आने से पहले नाक से काफ़ी मात्रा मे स्राव आने लगता है । कुछ मे कफ़ युक्त खांसी और बुखार भी होता है।

कारण--- मुख्य रूप से इसके तीन कारण होते है - एलर्जी, संवेगात्मक , और संक्रमण
इन सब का सम्मिलत रुप भी पायाजाता है । एलर्जी की प्रवृति वंशानुगत होती है यह मुख्य रुप से हवा मे मोजुद धुलि कण, धुँआ, परागकण, रोम, महक, और आहार से होती है , मोसम मे आये बदलाव भी एलर्जी का मुख्य कारण होते है।

आहार विहार व्यवस्था-- आराम अधिक दे, शुद्ध वातारण मे रहें। उष्ण और शीत एक साथ सेवन न करें । संतुलित आहार दें । दुध मे सोंठ डालकर दें । शीतल और बाजार की वस्तुओं से परहेज रखें , दही . लस्सी , चावल, तले हुए मसाले दार आहार से परहेज रखें। बच्चे को खुश रखने का प्रयत्न करते रहें।

क्या श्वास रोग/अस्थमा ठीक हो सकता है?
उचित उपचार के साथ अस्थमा के लक्षणों और उसके दौरों में सुधार आता है बीमारी की गंभीरता पर उपचार की अवधि निर्भर करती है उस उपचार के साथ कोई भी व्यक्ति एक सामान्य जीवन जी सकता है पर एक बात का हमेशा ध्यान रहे कि उपचार न कराने पर ये बीमारी गंभीर रूप ले सकती है |



श्वास रोग/अस्थमा -क्या करें और क्या न करें

ऐसा करें

१ धूल से बचें और धूल-कण अस्थमा से प्रभावित लोगों के लिए एक आम ट्रिगर है|
२ एयरटाइट गद्दे, बॉक्स स्प्रिंग और तकिए के कवर का इस्तेमाल करें ये वे चीजें है जहां पर अक्सर धूल-कण होते है जो अस्थमा को ट्रिगर करते है।
३ पालतू जानवरों को हर हफ्ते नहलाएं, इससे आपके घर में गंदगी पर कंट्रोल रहेगा|
४ अस्थमा से प्रभावित बच्चों को उनकी उम्र वाले बच्चों के साथ सामान्य गतिविधियों में भाग लेने दें |
५ अस्थमा के बारे में अपनी और या अपने बच्चे की जानकारी बढाएं इससे इस बीमारी पर अच्छी तरह से कंट्रोल करने की समझ बढेगी |
६ बेड सीट और मनपसंद स्टफड खिलोंनों को हर हफ्ते धोंए वह भी अच्छी क्वालिटीवाल एलर्जक को घटाने वाले डिटर्जेंट के साथ |
७ सख्त सतह वाले कारपेंट अपनाए |
८ एलर्जी की जांच कराएं इसकी मदद से आप अपने अस्थमा ट्रिगर्स मूल कारण की पहचान कर सकते है |
९ किसी तरह की तकलीफ होने पर या आपकी दवाइयों के आप पर बेअसर होने पर अपने डॉक्टर से संर्पक करें |

ऐसा न करें
१ यदि आपके घर में पालतू जानवर है तो उसे अपने विस्तर पर या बेडरूम में न आने दें|
२ पंखोंवाले तकिए का इस्तेमाल न करें |
३ घर में या अस्थमा से प्रभावित लोगों के आस -पास धूम्रपान न करें संभव हो तो धूम्रपान ही करना बंद कर दें क्योंकि अस्थमा से प्रभावित कुछ लोगों को कपडों पर धुएं की महक से ही अटैक आ सकता है |
४ मोल्ड की संभावना वाली जगहों जैसे गार्डन या पत्तियों के ढेरों में काम न करें और न ही खेलें |
५ दोपहर के वक्त जब परागकणों की संख्या बढ जाती है बाहर न ही काम करें और न ही खेलें |
६ अस्थमा से प्रभावित व्यक्ति से किसी तरह का अलग व्यवहार न करें |
७ अस्थमा का अटैक आने पर न घबराएं, इससे प्रॉब्लम और भी बढ जाएगी| ये बात उन माता-पिता को ध्यान देने वाली है जिनके बच्चों को अस्थमा है अस्थमा अटैक के दौरान बच्चों को आपकी प्रतिक्रिया का असर पडता है यदि आप ही घबरा जाएंगे तो आपको देख उनकी भी घबराहट और भी बढ सकती है |

Sunday, May 16, 2010

सोरायसिस बीमारी एवं होम्योपैथिक उपचार |

इस समय देश की 5 फीसदी आबादी सोरायसिस की शिकार है। सोरायसिस त्वचा की ऊपरी सतह का चर्म रोग है जो वैसे तो वंशानुगत है लेकिन कई कारणों से भी हो सकता है। आनु्वंशिकता के अलावा इसके लिए पर्यावरण भी एक बड़ा कारण माना जाता है। यह असाध्य बीमारी कभी भी किसी को भी हो सकती है। कई बार इलाज के बाद इसे ठीक हुआ समझ लिया जाता है जबकि यह रह-रहकर सिर उठा लेता है। शीत ऋतु में यह बीमारी प्रमुखता से प्रकट होती है।

सोरायसिस चमड़ी की एक ऐसी बीमारी है जिसके ऊपर मोटी परत जम जाती है। दरअसल चमड़ी की सतही परत का अधिक बनना ही सोरायसिस है। त्वचा पर भारी सोरायसिस की बीमारी सामान्यतः हमारी त्वचा पर लाल रंग की सतह के रूप में उभरकर आती है और स्केल्प (सिर के बालों के पीछे) हाथ-पाँव अथवा हाथ की हथेलियों, पाँव के तलवों, कोहनी, घुटनों और पीठ पर अधिक होती है। 1-2 प्रतिशत जनता में यह रोग पाया जाता है।



क्या है लक्षण:
रोग से ग्रसित (आक्रांत) स्थान की त्वचा चमकविहीन, रुखी-सूखी, फटी हुई और मोटी दिखाई देती है तथा वहाँ खुजली भी चलती है। सोरायसिस के क्रॉनिक और गंभीर होने पर 5 से 40 प्रतिशत रोगियों में जोड़ों का दर्द और सूजन जैसे लक्षण भी पाए जाते हैं एवं कुछ रोगियों के नाखून भी प्रभावित हो जाते हैं और उन पर रोग के चिह्न (पीटिंग) दिखाई देते हैं।

क्यों और किसे होता है सोरायसिस:
सोरायसिस क्यों होता है इसका सीधे-सीधे उत्तर देना कठिन है क्योंकि इसके मल्टीफ्लेक्टोरियल (एकाधिक) कारण हैं। अभी तक हुई खोज (रिसर्च) के अनुसार सोरायसिस की उत्पत्ति के लिए मुख्यतः जेनेटिक प्री-डिस्पोजिशन और एनवायरमेंटल फेक्टर को जवाबदार माना गया है।सोरायसिस हेरिडिटी (वंशानुगत) रोगों की श्रेणी में आने वाली बीमारी है एवं 10 प्रश रोगियों में परिवार के किसी सदस्य को यह रोग रहता है।

किसी भी उम्र में नवजात शिशुओं से लेकर वृद्धों को भी हो सकती है। यह इंफेक्टिव डिसिज (छूत की बीमारी) भी नहीं है। सामान्यतः यह बीमारी 20 से 30 वर्ष की आयु में प्रकट होती है, लेकिन कभी-कभी इस बीमारी के लक्षण क्रॉनिक बीमारियों की तरह देरी से उभरकर आते हैं। सोरायसिस एक बार ठीक हो जाने के बाद कुछ समय पश्चात पुनः उभर कर आ जाता है और कभी-कभी अधिक उग्रता के साथ प्रकट होता है। ग्रीष्मऋतु की अपेक्षा शीतऋतु में इसका प्रकोप अधिक होता है।

रोग होने पर क्या करें:
सोरायसिस होने पर विशेषज्ञ चिकित्सक के बताए अनुसार निर्देशों का पालन करते हुए पर्याप्त उपचार कराएँ ताकि रोग नियंत्रण में रहे। थ्रोट इंफेक्शन से बचें और तनाव रहित रहें, क्योंकि थ्रोट इंफेक्शन और स्ट्रेस सीधे-सीधे सोरायसिस को प्रभावित कर रोग के लक्षणों में वृद्धि करता है। त्वचा को अधिक खुश्क होने से भी बचाएँ ताकि खुजली उत्पन्न न हो। परहेज नाम पर मात्र मदिरा और धूम्रपान का परहेज है क्योंकि ये दोनों ही सीधे सीधे इस व्याधि को बढाते है.


क्या है उपचार:
सोरायसिस के उपचार में बाह्य प्रयोग के लिए एंटिसोरियेटिक क्रीम/ लोशन/ ऑइंटमेंट की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लेकिन जब बाह्योपचार से लाभ न हो तो मुँह से ली जाने वाली एंटीसोरिक और सिमटोमेटिक होम्योपैथिक औषधियों का प्रयोग आवश्यक हो जाता है।

होम्योपैथिक औषधियाँ: - लक्षणानुसार मरक्यूरस सौल, नेट्रम सल्फ, मेडोराइनम, लाईकोपोडियम, सल्फर, सोराइन्म, आर्सेनिक अल्ब्म, ग्रफाइट्स, इत्यादि अत्यंत कारगर होम्योपैथिक दवाएँ हैं।

उपरोक्त दवाये केवल उदहारण के तौर पर दी गयी है .कृपया किसी भी दवा का सेवन बिना परामर्श के ना करे, क्योकि होम्योपैथी में सभी व्यक्तियों की शारीरिक और मानसिक लक्षण के आधार पर अलग -अलग दवा होती है !

Saturday, May 15, 2010

विश्व होम्योपैथी समुदाय ( Homeopathic World Community )

१ साल के अन्दर ही विश्व होम्योपैथी समुदाय का नेटवर्क दुनिया भर के ७० देशों से २००० होम्योपैथिक चिकित्सकों, छात्रों और होम्योपैथिक चिकित्सा पद्दति के प्रति रुझान रखने वालों के बीच लोकप्रिय हो चुका है। कम्यूनिटी का मुख्य उद्देशय होम्योपैथिक चिकित्सकों के बीच समन्वय और सकारात्मक अनुभवों का आदान प्रदान करना है ।

होम्योपैथिक वर्ल्ड कम्यूनिटी मे शामिल होने केलिये http://www.homeopathyworldcommunity.com पर चटका लगायें ।



In just 1 year Homeopathy World Community Network has over 2000 members representing 70 Countries around the world. Members are physicians and professional health providers who have years of training. Some are students presently taking degree programs at universities, colleges and certificate seminars around the world. Other members joined the movement to learn more after experiencing positive effects from homeopathy

Click HERE to join Homeopathic World Community

Courtesy : Debby Bruck

Tuesday, May 4, 2010

क्या कहते हैं आपके नाखून?

नाखून, जो एक हमारे शरीर में सबसे दृढ संरचनाओ में से हैं, आश्चर्यजनक हैं, वास्तव में यह मृत कोशिकाओं का संग्रह है | सभी चाहते हैं कि उनके नाखून बड़े और सुन्दर दिखें। अगर आपके नाखून हफ्ते में 0.6 से 1.3 मी.मी. बढ़ते हैं तो आप स्वस्थ माने जाएँगे। गर्मियों में इनके बढ़ने की रफ्तार तेज होती है, लेकिन सर्दियों में धीमी। नाखून सामान्य स्वास्थ्य का एक आईना हैं, जो नाखूनों की गुणवत्ता में परिलक्षित होती है, जो शरीर में मौजूदा चिकित्सा अवस्थाओं में होती हैं| इस प्रकार नाखून भी चिकित्सकों के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण नैदानिक उपकरण हैं| आपको यह जानकर आर्श्च होगा कि आपके नाखून भी आपके स्वास्थ्य की सारी पोल खोल देते हैं। आप कैसा खाते हैं, क्या खाते हैं, आपकी सोच और रहन-सहन भी।
आपके खाने के गलत तरीकों, प्रोटीन की कमी, थायरॉईड संबंधी परेशानी या खून की कमी सबकुछ आपके नाखून कह देते हैं। स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को आप अपने नाखून देखकर भी पता कर सकते हैं।


कैसे पहचानेंगे नाखून से अपने स्वास्थ्य की कमजोरियों को-

*अगर आपके नाखून के आस-पास की त्वचा सूख रही है। तो यह आपके शरीर में विटामिन 'सी', फोलिक एसिड, और प्रोटीन की कमी को दर्शाता है। इसके लिए आप हरी पत्तीदार सब्जियों का सेवन करें। मछली और अण्डे खाएँ।
* नाखूनों पर सफेद धब्बे यह दर्शाते हैं कि आपके शरीर में जिंक और विटामिन 'बी' की कमी है। चना इन दोनों का बड़ा ही बेहतर स्त्रोत है। ज्वार, बाजरा से भी इसकी कमी को पूरा किया जा सकता है।
*नाखूनों का धीमी गति से बढ़ना यह बताता है कि आप प्रोटीन की कमी और विटामिन 'ए' की कमी से जूझ रहे हैं। इसके लिए हौम्योपैथी में कई दवाएँ उपलब्ध हैं। मानसिक अशांति, प्रोटीन और जिंक की कमी नाखूनों की वृद्धि में बाधक होते हैं।
*नाखूनों का भद्दा रंग आपके लगातार नेलपॉलिश के इस्तेमाल की वजह से भी हो सकता है। पीले नाखून धूम्रपान की वजह से होते हैं। जबकि नीले नाखून साँस संबंधी समस्याओं और पीले और हल्के सफेद रंग के नाखून एनीमिया के कारण होता है। इसके लिए चुकंदर का सेवन करना लाभदायक रहता है। विटामिन 'सी' के स्त्रोत वाले फल और सब्जियों का प्रयोग भी कर सकते हैं।
*शरीर के अंदर कैल्शियम और विटामिन की कमी से नाखून कमजोर होकर टूटते रहते है। इसको दूर करने के लिए भोजन में पौष्टिक आहार लेना चाहिए और दूध या दूध से बने पदार्थों का प्रयोग करना चाहिए।

दुनियाभर में हुए कुछ शोधों के अनुसार यह तथ्य प्रमाणित हो चुका है कि विभिन्न बीमारियों में नाखूनों का रंग बदल जाता है। जैसे
• सफेद रंग के नाखून लिवर से संबंधित बीमारियों जैसे हेपेटाइटिस- की खबर देते हैं।
• पीले नाखून (जो आकार में मोटे हों और धीरे-धीरे बढ़ते हों) फेफड़े संबंधी बीमारियों के परिचायक हैं।
• आधे सफेद और आधे गुलाबी नाखून गुर्दे संबंधी बीमारियों का संकेत देते हैं।
• यदि नाखूनों का रंग पीला है या उनकी पर्त सफेद है, तो यह लक्षण शरीर में खून की कमी(एनीमिया)का लक्षण है।

नाखूनों पर ध्यान ना देने से कुछ महिलाओं में हैंग नेल्स तथा स्पून नेल्स जैसी समस्याएं पैदा हो जाती है।

हैंग नेल्स :

हैंग नेल्स में नाखून के किनारे की त्वचा छिलके के जैसी अलग हो जाती है, जिसके कारण नाखूनों में सूजन और जलन होने लगती है। इसके उपचार के लिए विटामिन सी और प्रोटीनयुक्त भोजन का ज्यादा सेवन करना चाहिए।

स्पून नेल्स :

हममें से बहुतों के उत्तल या उभरे हुए नाखून होते है, किसी गेंद जैसी गोलाई लिए हुए, लेकिन यदि आपके नाखूनों के बीच में गड्ढा है तो यह इस बात का संकेत है कि आपके शरीर में आयरन की कमी है। रक्त की कमी से नाखून टेढ़े-मेढ़े और खुरदुरे हो जाते हैं।

बीमारी है नाखून चबाना
आपका बच्चा अगर नाखून चबाता है तो उस जरूर ध्यान दीजिये। ऑनिकोफेजिया सुनने में कुछ अटपटा सा लगता है पर इस परेशानी से बहुत सारे लोग पीड़ित होते हैं। ऐसा नहीं है कि यह समस्या केवल बच्चों में ही होती है। कई बार यह समस्या बड़ों में भी पाई जाती है।
सामान्य तौर पर हम इसे इसे नाखून चबाने के रूप में या नेल-बाइटिंग के रूप में जानते हैं। आमतौर पर आदमी जब तनाव में किसी बात को लेकर उत्सहित होता है तो वह नाखून कुतरता या चबाता है। जब आदमी के पास कोई काम नहीं होता तब भी वह बोर होने पर नाखून काटने का ही काम करता है। शर्म य झुंझलाहट में भी लोग नाखून खाने लगते हैं।

नर्वस-हैबिट के तहत नाखून खाना, अंगूठा चूसना, नाक में उंगली डालना, बाल को मरोड़ना या खींचना, दांत पीसना या अपनी त्वचा को बार-बार छूना शामिल है। आश्चर्य की बात यह है कि ऐसा करने वाला इसे महसूस नहीं कर पाता है जबकि सामने से देखने वाला इसे महसूस कर लेता है। आदत पड़ जाने पर आदमी काम करते हुए, बुक पढ़ते, फोन पर बातें करते और टीवी देखने जैसे कामों को करते हुए भी लोग नाखून चबाते देखे जाते हैं।

कई बार लोग नाखून चबाने के साथ-साथ क्यूटिकल्स और नाखून के इर्द-गिर्द की त्वचा को भी काटते हैं। जहां एक ओर यह देखने में बुरा लगता है वहीं स्वास्थ्य की दषटि से भी यह नुकसान देह होता है।

होम्योपैथिक उपचार:
दवाएँ - होम्योपैथी दवाएँ जो लक्षणागत नाखून से जुड़ी समस्याओं में काम करती हैं वे इस प्रकार हैं। मरक्यूरस सौल, नेट्रम सल्फ, मेडोराइनम, लाईकोयोडियम, सल्फर इत्यादि ।

उपरोक्त दवाये केवल उदहारण के तौर पर दी गयी है| कृपया किसी भी दवा का सेवन बिना परामर्श के ना करे, क्योकि होम्योपैथी में सभी व्यक्तियों की शारीरिक और मानसिक लक्षण के आधार पर अलग -अलग दवा होती है !

Tuesday, April 13, 2010

A Report on a free Homoeopathic Camp

Dear Friends,


April 10th 2010, proved to be another mile-stone for Dr. Bidani's Centre for Homoeopathy after having held its free homoeopathic camp, at Hisar, in connection with the 255th Birthday Celebrations of Dr. Samuel Hahnemann, father of Homoeopathy & beginning of World Homoeopathic Awareness Week 2010.

 

The camp was conducted to create awareness among the public about disease and disease prevention. Physicians created awareness about the Scope of Homoeopathy in addressing chronic & serious disorders. They emphasized that Homoeopathic medicines are quite effective & provide good results even in so called incurable diseases. Keeping in mind "Service to Humanity is service to Divinity", free medicines were also distributed for one week to all the patients.


It was indeed a very gratifying day for the entire Homoeopathy faculty. It gave us an opportunity to help and serve people in need. The camp was attended by patients of different age groups who had come from far-off and remote areas. A total of 109 patients benefited from this camp. The majority of patients had Dermatological disorders like eczema, psoriasis, atopic dermatitis & acne vulgaris. There were so many anaemic children to whom a proper iron-rich diet was advised. One very interesting case of Obsessive Compulsive Disorder was given Arsenic Album 10M - 1 single dose, and I am very much eager to see the follow-up of this case.


With Warm Regards,

Dr.Navneet Bidani

Tuesday, March 30, 2010

लाइलाज नहीं माइग्रेन...



सिर जो तेरा चकराए...जी हां आजकल यह आम समस्या बन गयी है। बिजी लाइफ स्टाइल की वजह से आजकल के युवा कम उम्र में ही तमाम बीमारियों के शिकार होने लगे हैं। माइग्रेन भी इन्हीं मे से एक है, सिरदर्द का एक गंभीर रूप जो बार-बार या लगातार होता है, उसे माइग्रेन कहते हैं। माइग्रेन को आम बोलचाल की भाषा में अधकपारी भी कहते हैं। यह नाम इसे इसलिए मिला क्योंकि आम तौर पर इसका शिकार होने पर सिर के आधे हिस्से में दर्द रहता है, जबकि आधा दर्द से मुक्त होता है। वैसे फ्रेंच शब्द माइग्रेन का अर्थ भी यही है। जिस हिस्से में दर्द होता है, उसकी भयावह चुभन भरी पीडा से आदमी ऐसा त्रस्त होता है कि सिर क्या बाकी शरीर का होना भी भूल जाता है। यह कोई छोटा-मोटा दर्द नहीं है। यह आपके सारे दिन की गतिविधियों को ठप्प कर देने वाला दर्द है। माइग्रेन मूल रूप से तो न्यूरोलॉजिकल समस्या है। इसमें रह-रह कर सिर में एक तरफ बहुत ही चुभन भरा दर्द होता है। यह कुछ घंटों से लेकर तीन दिन तक बना रहता है। इसमें सिरदर्द के साथ-साथ जी मिचलाने, उल्टी जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। इसके अलावा फोटोफोबिया यानी प्रकाश से परेशानी और फोनोफोबिया यानी शोर से मुश्किल भी आम बात है। माइग्रेन से परेशान एक तिहाई लोगों को इसकी जद में आने का एहसास पहले से ही हो जाता है।

माइग्रेन की पहचान
• क्या आपको सिर के एक हिस्से में बुरी तरह धुन देने वाले मुक्कों का एहसास होता है, और लगता है कि सिर अभी फट जाएगा?
• क्या उस वक्त आपके लिए अत्यंत साधारण काम करना भी मुश्किल हो जाता है?
• क्या आपको यह एहसास होता है कि आप किसी अंधेरी कोठरी में पड़े हैं, और दर्द कम होने पर ही इस अनुभव से निजात मिलती है?
अगर इनमें से किसी भी प्रश्न का उत्तर हां में है, तो इस बात की पूरी संभावना है कि आपको माइग्रेन हुआ है। इसलिए फौरन डॉक्टर के पास जाकर इसकी पुष्टि कर लेनी चाहिए।
ज्यादातर लोगों को माइग्रेन का पता तब चलता है, जब वे कई साल तक इस तकलीफ को ङोलने के बाद इसके लक्षणों से वाकिफ हो जाते हैं।

माइग्रेन के कारण
माइग्रेन होने के कई कारण हो सकते हैं। काम की थकान, तनाव, समय पर भोजन न करना, धूम्रपान, तेज गंध वाले परफ्यूम से, बहुत ज्यादा या कम नींद लेना इसका कारण हो सकते हैं। इसके अलावा मौसम का बदलाव, हार्मोनल परिवर्तन, सिर पर चोट लगना, आंखों पर स्ट्रेस पड़ना या तेज रोशनी, एक्सरसाइज न करने से भी माइग्रेन की परेशानी उत्पन्न हो सकती है। कई लोगों को तेज धूप, गर्मी या ठंड से भी परेशानी होती है। जिन लोगों को हाई या लो ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर और तनाव जैसी समस्याएं होती हैं उनके माइग्रेन से ग्रस्त होने की आशंका बढ जाती है। कई बार तो केवल इन्हीं कारणों से माइग्रेन हो जाता है।
यही नहीं, अगर आपको किसी ऐसे व्यक्ति से बार-बार मिलना पडे जिसे आप न पसंद करते हों, तो यह भी सिरदर्द का कारण हो सकता है। ऐसा काम भी माइग्रेन का कारण हो सकता है जिसे आप पसंद न करते हों। ज्यादातर लोगों के माइग्रेन से ग्रस्त होने के कारण भावनात्मक होते हैं। भावनाओं को दबाने से भी माइग्रेन हो सकता है। इसलिए भावनाओं को दबाने के बजाय अपने विश्वस्त लोगों से उनकी साझेदारी करें।
बदलती लाइफ स्टाइल के चलते बच्चे भी माइग्रेन का शिकार हो जाते हैं। पढ़ाई का तनाव इसे और बढ़ा देता है। किशोरावस्था से पहले लड़के और लड़कियां दोनों में इसकी संभावना एक समान रहती है। लेकिन बाद में महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा खतरा ज्यादा बढ़ जाता है और माना जाता है कि 15 फीसदी महिलाओं और छह फीसदी पुरुषों को माइग्रेन होता है। इनमें से 60 फीसदी को आधे सिर में और 40 फीसदी को पूरे सिर में माइग्रेन का दर्द होता है।

सिर दर्द का मतलब हमेशा माइग्रेन नहीं होता। लेकिन अगर आपको बहुत तेज दर्द हो रहा है और ऐसा दर्द पहले कभी न हुआ हो, हाथ पैरों में दर्द और कमजोरी महसूस हो रही हो तो तुरंत चिकित्सक की सलाह पर जांच कराएं और समय पर इलाज लें।

माइग्रेन का इलाज
विशेषज्ञों के अनुसार माइग्रेन से निपटने में इस बात का रोल काफी अहम होता है कि आप इसके लिए कितने तैयार हैं। सभी मरीजों में माइग्रेन के पूर्व संकेत (ट्रिगर्स) एक से नहीं होते, इसलिए उनके लिए डायरी में अपनी अनुभूतियां दर्ज करना उपयोगी हो सकता है। इसके बाद आप दवा की सहायता से इन ट्रिगर्स से समय रहते बचकर, माइग्रेन को टाल भी सकते हैं।

संतुलित आहार लें
माइग्रेन में चिकित्सीय इलाज के अलावा संतुलित आहार बहुत जरूरी है। अगर शारीरिक कारणों से माइग्रेन हो तो पहले तो यह समझना चाहिए कि किन तत्वों की कमी या अधिकता के कारण ऐसा हो रहा है। उसके ही अनुसार अपने आहार को संतुलित कर लेना चाहिए। अगर किसी को खाद्य पदार्थो से एलर्जी के कारण माइग्रेन हो तो उसे उन फलों-सब्जियों और अनाज से बचना चाहिए, जिनसे एलर्जी हो सकती है। ऐसा पौष्टिक आहार लें जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाई जा सके। रोज योगाभ्यास करें और विचारों को रचनात्मक बनाए रखें। इसके लिए किसी-किसी दिन उपवास करें। उपवास के दौरान पानी में नीबू का रस मिलाकर छह-सात बार लें। इससे जो ऊर्जा भोजन को पचाने में खर्च होती है, वह बचेगी और उसका उपयोग शरीर अपेक्षाकृत दूसरे महत्वपूर्ण कार्यो पर करेगा। रक्त और लसिका ग्रंथियों को भी थोडा आराम मिलता है। आहार इस तरह तय करें कि पाचन-प्रणाली पर कम से कम बोझ पडे।

चेतावनी : कई बार सिरदर्द दूसरी खतरनाक और जानलेवा बीमारियों का भी संकेत होता है। इसलिए बार-बार होने वाले तेज सिरदर्द, गर्दन दर्द, अकड़न, जी मिचलाने या आंखों के आगे अंधेरा छा जाने को बिलकुल भी नजर अंदाज न करें और फौरन डॉक्टर को दिखाएं।

होम्योपैथिक चिकित्सा
कई बार माइग्रेन के रोगी दवाइयां लेना शुरू तो करते हैं पर थोड़ा आराम मिलते ही बंद कर देते हैं। इससे फिर से तकलीफ बढ़ने का खतरा बना रहता है। माइग्रेन के रोगियों को तब तक दवाइयां लेनी चाहिए जब तक पूरा कोर्स न ख़त्म हो जाए। कई लोगों के साथ ऐसा होता है कि दवा लेने पर माइग्रेन कुछ दिनों के लिए दब तो जाता है पर वह दोबारा उभर जाता है। उनके साथ ऐसा बार-बार होता है।
हालांकि माइग्रेन लाइलाज बीमारी नहीं है, लेकिन अगर यह बढ़ जाए तो काफी परेशान कर सकती है। इसलिए जरूरी है कि कुछ बातों का ध्यान रखकर इस बीमारी से छुटकारा पाया जाए।

औषधियाँ:
होम्योपैथिक दवाएँ जो लक्षणागत माइग्रेन में काम करती हैं वे इस प्रकार हैं।
बेलाडोना, जेलसिमियम, लैकेसिस, स्पाइजिलिया, इग्नेसिया, नेट्रम म्यूर, ओनस्मोडियम, लाईकोपोडियम, नेट्रम सल्फ, सिलिसिया, सल्फर एवं एसिड सल्फर।

उपरोक्त दवाये केवल उदहारण के तौर पर दी गयी है।कृपया किसी भी दवा का सेवन बिना परामर्श के ना करे, क्योकि होम्योपैथी में सभी व्यक्तियों की शारीरिक और मानसिक लक्षण के आधार पर अलग -अलग दवा होती है !